तिजोरी में बन्द हीरे और पन्ने गर्व अनुभव कर रहे थे कि हमारी कितनी कीमत और कितनी चाह है। श्रीमन्तों के यहाँ ही हम जाते हैं और जहाँ रहते हैं वहाँ संगीन लिए पहरेदार रखवाली के लिए खड़े रहते है इतने भाग्यशाली हैं-हम लोग।
यह चर्चा उस श्रीमन्त के पिछवाड़े एक विधवा की झोंपड़ी में रखी चक्की तक पहुँची। उसने नम्रतापूर्वक उस रत्न समूह से पूछा-‘क्या आप लोग मेरी तरह किसी गरीब के गुजारे का साधन भी बन सकते हैं? क्या आपका अस्तित्व किसी को स्वस्थ श्रम जीवी बनने की प्रेरणा भी देता है?’
रत्न जब अपनी और चक्की की उपयोगिता की तुलना करने लगे तो उनकी गर्वोक्तियाँ मौन हो गईं।
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