अर्थी करोति दैन्यं लब्धार्थो गर्वपरितोषम्। नष्टधनश्च से शोकं सुखमास्ते निःस्पृहः पुरुष॥
धन को चाहने वाला मनुष्य दीनता करता है और जो धन प्राप्त कर लेता है वह घमण्ड करने लगता है और जिसका धन नष्ट हो जाता है वह शोक करता है किन्तु निस्प्रहजन सुखी रहता है।
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