शुभ कार्य करने में शीघ्रता करो, ऐसा न हो जुबान बन्द हो जाय, हिचकियाँ आने लगें और शक्ति जवाब दे जावे।
शुभ कार्यों को अपने हाथों से शीघ्र करो किसी और का मुँह देखना और पीछे की आशा करना झूठा है।
-महात्मा
दुःख-निवृत्ति का केवल एक ही मार्ग है। दुःख का अनुभव सब करते हैं, पर उसका वास्तविक कारण जानने की इच्छा किसी-किसी की ही होती है। दुखी होने से चिन्तित और निराश रहने से दुख की निवृत्ति नहीं हो सकती। वह तो तभी सम्भव है जब उसके मूल कारण को जानकर उसके निवारण का प्रयत्न किया जाय। यह संसार दुख रूप ही है। इसमें जितनी भी वस्तुयें है वे सब क्षणिक और अस्थिर हैं। क्षण-क्षण में उनका रूप बदलता है। जो वस्तु अभी प्रिय दिखती है, कुछ कारण उत्पन्न होने पर थोड़ी ही देर में यह अप्रिय बन जाती है। कामनाओं और वासनाओं का भी यही हाल है। एक तृप्त नहीं हो पाई कि दूसरी नई उपज पड़ी। तृष्णाओं का कहीं अन्त नहीं। वासनाओं की कोई सीमा नहीं, भोग से, संग्रह से उन्हें कौन शान्त कर पाया है। घी डाल कर किसने आग बुझाई है? बहिर्मुखी जीवन से मुख मोड़ कर अन्तर्मुखी दृष्टि अपनाए बिना आज तक किसी को शान्ति नहीं मिली। हमारे लिए भी इसके अतिरिक्त और कोई उपाय या मार्ग नहीं है।
भगवान बुद्ध
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