सेन्टपाल ने लिखा है-‘मैं दमिश्क के प्रधान पादरी से प्राधिकृत होकर चला तो मैंने दोपहर को मार्ग में एक अनन्त विस्तार वाले सूर्य जैसे प्रकाश को चमकते देखा। वह प्रकाश मुझे घेरे रहा और रास्ते भर मेरे साथ यात्रा करता रहा। जब मैं धरती पर बैठा तो मैंने एक आवाज सुनी-ऐ आत्मा, ऐ आत्मा, मुझे पीड़ा मत दे। काँटों को लात मारने से तेरा कुछ न बनेगा।’
मैंने पूछा-‘भगवन् आप इस प्रकार वचन बोलने वाले कौन है?’ उसने कहा मैं जीसस हूँ। वही जीसस जिसको तुम पीड़ा पहुँचाते हो।
सेन्टपाल ने उस संकेत को समझा और अपनी गतिविधियों में से विघातक तत्व को हटाकर सच्चे ईसानुयायी की तरह प्रेम और सेवा की रीति-नीति पर चलना आरम्भ कर दिया।
----***----