उस्ताद अलाउद्दीन खाँ (kahani)

July 1976

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जिस भी कार्य में-जिस भी दिशा में प्रवीणता प्राप्त करनी हो उसका उत्साह एवं तत्परतापूर्वक दैनिक अभ्यास करना नितान्त आवश्यक है। किसी बात को सुन-समझ भर लेने से कोई काम नहीं बनता। प्रवीणता तब आती है जब उन कार्यों को दैनिक अभ्यास में प्रमुखता दी जाय और उसे लम्बे समय तक लगातार जारी रखा जाय।

उस्ताद अलाउद्दीन खाँ सितार बजाने का ‘रियाज’ बारह-बारह चौदह-चौदह घण्टे हर रोज करते थे। वे अपने उस्ताद के निर्देश की समय-समय पर चर्चा किया करते थे जिसमें कहा गया था कि- ‘जिस दिन रियाज न करो-उस दिन रोजा रखो।’

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