बगदाद के बादशाह के पास कहीं से एक फल आ गया। देखने में ही वह भोंड़ा था। सो उसने उठा कर गुलाम को दे दिया। गुलाम बड़े चाव से खाने लगा।
बादशाह ने पूछा-‘इसका स्वाद कैसा है? गुलाम ने कहा- बहुत मीठा।’
बादशाह सोचने लगा मैंने बहुत तरह की चीजें जिन्दगी में खाई हैं फिर ऐसे स्वादिष्ट फल को चखने से क्यों चूकें? फल एक ही था और अनोखा। बादशाह से रहा नहीं गया। उसने गुलाम से कहा- इसी में से एक टुकड़ा काट मुझे दे दो। गुलाम पहले तो देने में बहुत आना-कानी करता रहा, पर जब मालिक की डाँट पड़ी तो देने के सिवाय और कोई चारा रहा ही नहीं।
बादशाह ने चखा तो वह बहुत कडुआ निकला। तुरन्त ही थूक दिया। साथ ही अचम्भे के साथ पूछा- यह तो बहुत कडुआ है तो मीठा क्यों कहा-स्वादिष्ट क्यों बताया?
गुलाम ने सिर झुका लिया और रुंधे कण्ठ से कहा-‘मालिक जब आप हर घड़ी मेरा इतना ख्याल रखते हैं और एक से एक बढ़िया चीजें खाने को देते हैं तो आपकी दी हुई एक कड़ुई चीज को सिर आंखों पर रखना मुझे क्यों बुरा लगेगा?
ईश्वर हमें असंख्य मधुर उपहार देता रहा है कभी कोई एक कड़ुई चीज दे दी-कठिन परिस्थिति सामने खड़ी कर दी तो उसे भी सिर आँखों पर धरते हुए सन्तोष क्यों न करो?
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