रियोकन एक झोंपड़ी में रहते थे। उनकी विद्या बुद्धि प्रख्यात थी, सो आये दिन विद्वान और बड़े लोग उनसे मिलने आते।
पड़ौस के गाँव में एक चोर रहता था। उसने सोचा जिसके पास इतने लोग आते हैं उसके पास जरूर कुछ माल-मत्ता होना चाहिए, सो वह एक रात चुपके से झोंपड़ी में घुस आया।
देर तक कुरेद-बीन करने के बाद भी जब उसके हाथ कुछ नहीं लगा तो निराश खाली हाथों वापिस लौटने लगा।
रियोकन चुपचाप पड़े यह सब देख रहे थे। खाली हाथ लौटते चोर को उन्होंने पुकारा और कहा दोस्त, थोड़ा रुको। खाली हाथ जाना मुझे सहन नहीं हो सकेगा सो लो मेरे यह पहनने के कपड़े लेते जाओ।
चोर बहुत गरीब था। वह ठिठक गया और कपड़े ले जाने के लिए सहमत हो गया। ठंड के दिनों ऊनी पजामा, जरसी का मिलना उसे बहुत भला लगा। बिना कुछ बोले वह चला तो गया पर उसकी आंखें कृतज्ञता से चमक रही थीं।
रियोकन का मन उन कृतज्ञता भरी आँखों ने मोह लिया। वे नंगे धड़ंगे बैठे ठंड में थर-थरा रहे थे, पर सोच यह रहे थे कि-काश, मैं उसे यह खूब सूरत चाँद भी दे सका होता।
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