इंग्लैण्ड का बादशाह जेम्स था। बादशाह को न धन की कमी थी और न यश की फिर भी वह लोगों को तुच्छ अहंकार वृत्ति का पोषण कर धन संचय में लगा हुआ था। अमीरों को धन के बदले उपाधियाँ बेचता था। सब जानते हैं कोरी उपाधियाँ मनुष्य को महान नहीं बना सकतीं। सद्गुण ही उसे महानता की ओर अग्रसर करते हैं। फिर भी कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो झूठी उपाधियाँ पाकर अपने अहं की तुष्टि करते हैं और दूसरे लोगों के सम्मान की अपेक्षा करते हैं।
एक बार सम्मान प्राप्ति की इच्छा से एक व्यक्ति उसके दरबार में आया। बादशाह को समझते देर न लगी उन्होंने पूछा-’आपको कौन सी उपाधि चाहिए ?”
‘मैं सज्जन बनना चाहता हूँ।’
बादशाह चौंका। इस तरह की उपाधि लेने के लिए आज तक कोई व्यक्ति न आया या। वह कुछ क्षण सोचता रहा फिर पूछा-मैं आपको सर, ड्यूक और लार्ड जैसी उपाधियों से विभूषित कर सम्मान तो दिला सकता हूँ, पर सज्जन बनाना मेरे वश की बात नहीं। क्योंकि कोई मनुष्य उपाधि से नहीं- श्रेष्ठ कार्यों से ही सज्जन बनता है।’
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