यथा वायुं समाश्चित्य वर्तन्ते सर्व जन्तवः। तथा गृहस्थमाश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमा:॥ यस्मत्त्रयोऽप्या श्रमिणों दानेनान्नेन चान्वहम् गृहस्थेनैव धार्यन्ते तस्माज्ज्येष्ठाश्रमो गृही !
जिस प्रकार सारे प्राणी वायु के आश्रित रहते हैं उसी प्रकार सारे आश्रम गृहस्थ के आश्रित रहते हैं। ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास तीनों आश्रमों को अन्नादि के दान से पालन करने वाला गृहस्थाश्रम ही सबसे श्रेष्ठ है।