खाद्य मोर्चे पर सभी सम्बन्धित व्यक्तियों को समान साहस और समान त्याग, बलिदान के साथ लड़ने की आवश्यकता है। इस संकट को मिल-जुलकर ही पार किया जा सकता है।
उत्पादक कृषक वर्ग को चाहिए कि अधिक धन पैदा करने वाली फसलों का मोह छोड़कर अन्न, शाक उपजाने पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। तमाखू, अफीम, चाय, काफी, सोंफ, जीरा, धनिया, गुलाब, हल्दी, जूट आदि कितनी ही वस्तुएं ऐसी हैं जो पैसा तो बहुत देती हैं, पर खाद्य समस्या के हल करने में उनका कोई योगदान नहीं है। इनमें उत्पादक का आर्थिक लाभ तो बढ़ता है, पर उतनी जमीन में अन्न उपजाने से देश की खाद्य समस्या सुलझाने में जो योगदान मिलना चाहिए था वह नहीं मिलता।
गेहूँ की ही फसल वर्ष में उत्पन्न होती है। प्रयत्न यह होना चाहिए कि वर्ष में दो तीन फसलें देने वाले अनाज उत्पन्न किये जायँ। केवल वर्षा के दिनों में ही उगकर पक जाने वाले अनेकों धान्य हैं। मक्का, ज्वार, बाजरा, चना, मडुआ, काँगनी आदि धान्य तीन-चार महीने में ही पक कट जाते हैं। इसके बाद उसी खेत में चना, मटर, सरसों, अरहर, मूँग, उड़द आदि की दुहरी फसल भी उत्पन्न हो जाती है। गेहूँ की फसल के अतिरिक्त इन फसलों पर भी पूरा ध्यान दिया जाय।
शाकों की फसल वर्ष में दो तीन बार तक पैदा हो जाती है। आलू, शकरकन्द, प्याज, गाजर, मूली, चुकंदर, शलजम आदि वजनदार जड़ों वाले शाक तो न केवल तरकारी का वरन् भारी होने के कारण अन्न की भी बहुत हद तक पूर्ति करते हैं। इनके अतिरिक्त लौकी, कद्दू, टिंडे, बैंगन, टमाटर आदि की फसलें न केवल खाद्य में जीवन तत्वों की आवश्यकता पूरी करते हैं, वरन् अधिक वजन में उत्पन्न होने के कारण कम दाम में पेट का अधिक भाग घेरने और उत्पादक को अधिक पैसा देने वाले भी होते हैं। अस्तु शाकों का उत्पादन अधिकाधिक किया जाय खरबूजा, तरबूजा, ककड़ी, खीरा आदि बोये जायँ जो गरीबों के लिए फलों की भूमिका निभा सकें। घरों में, खाली जगहों में तथा टोकरियों, पेटियों में शाक-भाजी उत्पन्न करने का शौक घर-घर लगाया जाय शाक वाटिका लगाने की कला गृह-उद्योग के रूप में विकसित की जाय।
खाने की आदतों में सुधार किया जाय। चोकर सहित आटा, हाथ का कुटा चावल प्रयुक्त किया जाय। इससे प्रायः 5 प्रतिशत खाद्य पदार्थ अधिक प्रयोग करने के लिये मिलेगा। साथ ही पौष्टिक तत्व भी मिलेंगे। जिन शाकों को छिलके समेत पकाया, खाया जा सकता हो उन्हें बिना छीले ही पकाया, खाया जाय। दालें छिलके समेत साबुत ही पकाई जायँ।
भात का मांड नष्ट न होने दिया जाय। पकने की ऐसी विधि विकसित की जाय जिससे न पोषक तत्व नष्ट होने पावे और न पदार्थों की बरबादी होने पाये।
सप्ताह में एक दिन या एक न्जूनडडडड पूर्ण उपवास शाकाहार पर रहने का, स्वास्थ्य संवर्धक एवं अन्न बचाने वाला अभियान चलाया जाय।
गेहूँ, चावल जैसी वर्ष में एकबार उगने वाली और महंगी फसल की अपेक्षा जल्दी तथा अधिक उगने वाले अनाज खाने में लोगों की रुचि उत्पन्न की जाय।
विवाह शादियों में न्यूनतम व्यक्तियों के प्रीति-भोजों का प्रचलन रहे और खाद्य पदार्थों की संख्या सीमित कि जाय। इससे अन्न की बर्बादी रुकेंगी। झूठन छोड़ना एक राष्ट्रीय अपराध माना जाय।
अन्न तथा खाद्य पदार्थ रखने की ऐसी व्यवस्था रखी जाय जिससे चूहे, कीड़े उसे नष्ट न करें और सीलन सड़न से उसकी बर्बादी न हो।
अधिक अन्न उत्पादन के लिए किसानों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो। सहकारी समितियाँ उनके लिए अच्छे बीज, खाद, सिंचाई उपकरण आदि की व्यवस्था करें। उत्पादन बढ़ाने वाली जानकारियों से कृषक वर्ग को परिचित कराया जाय।
अन्न की जमाखोरी तथा मुनाफाखोरी पर सरकारी तथा सामाजिक प्रतिबन्ध लगाये जायँ। हम सब मिलजुलकर अधिक खाद्य उत्पादन का, विवेकपूर्वक उपयोग करने का, बर्बादी रोकने का, जमाखोरी, मुनाफाखोरी रोकने का ध्यान रखें तो वर्तमान खाद्य संकट से निपट सकना कठिन नहीं रहेगा, वरन् सरल बन जायेगा।
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