सूर्य की तरह (kavita)

January 1976

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उगो सूर्य की तरह, गगन पर बन प्रकाश छा जाओ।

और अँधेरा इस जगती का, जलकर स्वयं- मिटाओ।।

मंद हवा बनकर बाँटो नव प्राण, थकी साँसों को।

फूलों-सी मुस्कान बनो, बिखरा दो उच्छश्वासों को।।

बन अषाढ़ के मेघ, भिगो दो, सूखी धरती का तन।

जिससे नव उल्लास जगे, भर उठे मोद से कण-कण।।

और साथ में कोई सुखकर संदेशा भी लाओ।

उगो सूर्य की तरह, गगन पर बन प्रकाश छा जाओ।।

बनो सुशीतल छाया तरु की, श्रांति पथिक की हर लो।

औरों को उल्लास बाँटकर, जीवन सार्थक कर लो।।

सरिता के सम बहो, प्राण भरने दाने-दाने में।

देने में जो खुशी- अरे! वह रखी कहाँ पाने में?

सतत् समर्पण द्वारा, सागर की बड़वाग्नि बुझाओ।

उगो सूर्य की तरह, गगन पर बन प्रकाश छा जाओ।।

पर्वत से, दृढ़ विश्वहितों के शुभ संकल्प करो तुम।

निर्झर बनकर प्यास बुझाने को अनवरत झरो तुम।।

राह दिखाओ सदा दूसरों को- बनकर ध्रुवतारा।

पड़े रोशनी बनकर धरती पर प्रतिबिम्ब तुम्हारा।।

बनो उषा की लाली- जन-जन के मन-कमल खिलाओ।

उगो सूर्य की तरह, गगन पर बन प्रकाश छा जाओ।।

हृदय बनाओ अपना- जैसा विस्तृत नील गगन है।

सहन शील बन जाओ- जैसा धरती का आँगन है।।

सागर बनकर रत्न राशि बाँटो श्रमशील मनुज को।

बनो ओस के कण-नम कर दो दिन की तपती रज को।।

शशि बन, निशि में भी पथिकों के हित प्रकाश फैलाओ।

उगो सूर्य की तरह, गगन पर बन प्रकाश छा जाओ।।

और अँधेरा इस जगती का, जलकर स्वयं- मिटाओ।।

-माया वर्मा


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