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Akhand Jyoti
Year 1976
Version 2
पड़े रोशनी...
पड़े रोशनी बनकर धरती पर प्रतिबिम्ब तुम्हारा!
January 1976
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Page Titles
आत्म साधना मानव संस्कृति का उच्चतम शिखर
जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ और संसार का सबसे बड़ा लाभ
साधना का विज्ञान और स्वरूप
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साधना- अपने आपे को साधना
जीवात्मा के तीन शरीर और उनकी साधना
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मूर्छा से जागृति−आत्मिक प्रगति
साधना के विविध स्तर एवं पक्ष
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योग साधना से चरम लक्ष्य की प्राप्ति
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चित्तवृत्ति निरोध का साधन, अभ्यास
तप−साधना अतीव लाभदायक प्रक्रिया
तप द्वारा दिव्य शक्तियों का जागरण
प्रतीक उपासना की आवश्यकता और उपयोगिता
देव पूजन से पूर्व आत्म−शुद्धि
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आत्मशोधन के षट् कर्म
जप द्वारा चेतना का उच्चस्तरीय शिक्षण
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शब्द की प्रचण्ड शक्ति और मंत्र साधना
जप से परिपोषण शक्ति का उद्भव और उपयोग
आत्म जागरण के लिए ध्यान योग की आवश्यकता
ध्यान योग से एकाग्रता की दिव्य शक्ति का उद्भव
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प्राण योग—प्रचण्ड ऊर्जा का उत्पादन
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उच्चस्तरीय प्राणयोग सोऽहम् साधना
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अपनों से अपनी बात: स्वर्ण−जयन्ती वर्ष की विशेष साधना
आत्मबोध चिंतन—तत्त्वबोध मनन
पड़े रोशनी बनकर धरती पर प्रतिबिम्ब तुम्हारा!
सूर्य की तरह (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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