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January 1976

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अन्तःकरण मध्येतु ज्योतिरात्मा प्रवर्तते। लिंगदेह तुतं प्राहुर्योगिनस्तत्त्ववेदिनः॥ तत्प्रतीतौ भवेन्मुक्तिर्नान्यतो जन्मकोटिभिः। तदा लक्षणमात्मनो ज्योतीरूप प्रपश्यति॥ विधृम इव दीप्तार्च्चिरादित्य इवदीप्तिमान्। विद्युतोऽग्निरिवाकाशे पश्यन्त्यात्मानमात्मनि॥ नेत्रे पश्यति यज्जयोतिस्तारा रुपं प्रकाशकम्। स जीवः सर्व भूतानामात्मानं च समाहितः ॥ यदा प्रकाशते ह्यात्मा घटे दीपो ज्वलन्निव। ज्ञानमुत्पद्यते पुंसा क्षयात्पापस्य कर्मणः॥

-महायोग विज्ञान

अन्तःकरण में भी आत्म-ज्योति प्रकाशित है उसे लिंग देह या कारण शरीर कहते हैं। उसका अनुभव होने से ही मुक्ति होती है। अन्यथा नहीं । इसलिए इस आत्म-ज्योति का दर्शन करना चाहिए।

निर्धूम ज्योतिर्मय दीप्ति अथवा सूर्य, विद्युत् अथवा अग्नि की तरह हृदयाकाश में यह परम-ज्योति प्रकाशित हुई देखें, यही आत्म-ज्योति सम्पूर्ण प्राणियों में संव्याप्त है यह जब आत्मा में प्रकाशित होती है तो पाप कर्म क्षीण हो जाते हैं और तत्वज्ञान प्रकाशित होता है।


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