यथेष्टं धारणं वायोरनलस्य प्रदीपनम्। नादादिव्यक्तिरारोग्यं जायते नाडिशोधने॥
—गोरक्ष पं0 1।101
नाड़ी शोधन हो जाने पर अग्नि दीपन, आरोग्य, नाद का स्फुरण, प्राण धारण आदि की सामर्थ्य प्राप्त होती है।
आविर्भूत प्रकाशानाम नुपद्रुत चेतसाम्। अतीतानागतज्ञानं प्रत्यक्षान्त विशिष्यते।
—वाक्य प्रदीप
चित्त जब, सत् और तम से रहित होकर दीप्तिमान होता है और फिर रज को भी त्याग कर स्थिर हो जाता है, तो भूत और भविष्य की प्रत्येक बात स्पष्ट दिखाई देने लगती है।