तपोहि परमंश्रेयः सम्मोहमितरत्सुखम्।
वाल्मीकि (7। 84। 9)
तप (कष्टसहिष्णुता) ही परम कल्याण को करने वाला होता है। तप से रहित जो सुख है वह तो बुद्धि के सम्मोह को उत्पन्न करता है।
जिह्व प्रवेशसंभूतवह्निनोत्पादितः खलु। चन्द्रात्सवति यः सारःसा स्यादमरवारुणी। चुम्बतीयदि लम्बिकाग्रमनिशं जिह्वासरस्यन्दिनी, साक्षाराकट्वम्लदुग्ध सदृशीमध्वाज्व तुल्यतथा।
—गोरख
अर्थ—जिह्वा को उलटी करके गले में जहाँ कव्वा लटकता है वहाँ लगायें। ऐसा करने से मस्तिष्क में जो चन्द्रमा है उसका रस गर्मी से पिघल के जिह्वा पर आता है यही—अगर वारुणी या मोमन्स है। इसका स्वाद कभी नमकीन कभी कडुआ, खट्टा, चरपरा और कभी दूध जैसा, कभी मीठा शहद सा, धूत जैसी चिकना सा जान पड़ता है।