ध्यायेद्योगी यदा मन्त्र गात्र कम्पोऽथ जायते।
—(यो0 शि0)
शरीर में कम्प और रोमाँच होने का कारण यह है कि उस मंत्र की शक्ति से साधक की प्राणशक्ति का उत्थान होने लगता है और उसके प्राण उठकर परमात्मा में लीन हो जाते हैं।
न च मूर्च्छा क्षुधा तृष्णा नैवालस्यं प्रजायते। न च रोगो जरा मृत्युर्देवदेहः स जायते॥
—घेरण्ड संहिता 3॥26
खेचरी मुद्रा की साधना करने वाले को मूर्च्छा भूख, प्यास, आलस्य, रोग, बुढ़ापा आदि नहीं सताते हैं, उसकी स्थिति देवोपम हो जाती है।
वाक्सिद्धिः कामचारित्वं दूरदृष्टिस्तथैव च। दूरश्रुतिः सूक्ष्मदृष्टिः परकायप्रवेशनम्॥ भूवन्त्येतानि सर्वाणि खेचरत्वं च योगिनाम्।
—शिव संहिता 3। 63
खेचरी साधना से वाक् सिद्धि, दूरदृष्टि, दूर श्रवण, सूक्ष्म दृष्टि, परकाया प्रवेश, आदि सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।