(बाबूलाल जैन “जलज”)
आज विश्व में ऊंचा कर दो, भारत मां का भाल।अंधकार अज्ञान हटा दो, लेकर ज्ञान मशाल।।
खेतों में नव मेंड़ें बांधो।उच्च लक्ष्य जीवन का साधो।।दूर हटाओ आस-पास का–कूड़ा-कचरा-कीचड़-कांदो।।
स्नेह-दीप से जगमग कर दो; घर-आंगन चौपाल।आज विश्व में ऊंचा कर दो, भार मां का भाल।।
आंधी-पानी की गति मोड़ो।मानवता से नाता जोड़ो।।होंगे सफल मनोरथ पूरे–कल पर कोई काम न छोड़ो।।
पाटो खेत विषमताओं के, लेकर हाथ कुदाल।आज विश्व में ऊंचा कर दो, भारत मां का भाल।।
देश-भक्ति का करो न सौदा।रौंदो नहीं प्रेम का पौधा।।करो नहीं तैयार भूलकर–आत्म-शान्ति का कुटिल मसौदा।।
समता के आंगन में नाचो, दे देकर नव ताल।आज विश्व में ऊंचा कर दो, भारत मां का भाल।।
धरती अपनी अम्बर अपना।आज भगीरथ सा तप करना।।निज प्राणों की आहुति देकर–दिव्य देश का गौरव रखना।।
आज तुम्हारा मुंह निहारते, बड़े-बड़े दिग्पाल।आज विश्व में ऊंचा कर दो, भारत मां का भाल।।
लेकर अपना ज्ञान नगीना।ऊंचा मस्तक चौड़ा सीना।।आज धरा को स्वर्ग बना दो–बहा-बहाकर खून पसीना।।
जग जाहिर है पास तुम्हारे, सत्य अहिंसा ढाल।आज विश्व में ऊंचा कर दो, भारत मां का भाल।।
*समाप्त*