मनुष्य अपने लिए ही इस सारी दुनिया की रचना हुई मानता है और उसका संसार में है उस पर अटल ही अधिकार जमाता है।
जीवों के दुनिया का अनुमान लगाने वाले गणितज्ञों का अनुमान है कि प्राणियों में 4/5 भाग कीड़े−मकोड़ों का है और शेष 1/5 में पशु पक्षियों और ठंडे जलचरों से लेकर मनुष्यों तक का है।
शेष जीवधारियों की आवश्यकता पूर्ति के लिए भी यह दुनिया बनी है इस पर अहंकारी और स्वार्थी मनुष्य कभी सोचता तक नहीं।