अन्धा हाथ में लालटेन लेकर (kahani)

May 1975

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अन्धा हाथ में लालटेन लेकर सड़क पर चल रहा था, ताकि सामने से आने वाले उसे पहचान सकें और रास्ता छोड़ दें। पर एक राहगीर उससे टकरा ही गया। अन्धे ने झुँझला कर कहा− देखते नहीं मेरे हाथ में लालटेन है। तुम्हें क्या कुछ नहीं दीखता?

राहगीर ने सन्तुलित शब्दों में कहा− मित्र आपकी लालटेन तो बुझी हुई है। आप यह तो पता लगाते कि जिस लालटेन से दूसरों को प्रकाश देने चले हैं वह स्वयं भी प्रकाशित है या नहीं।


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