प्रदर्शन और उद्वेग से बचना ही बुद्धिमत्ता है।

May 1975

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कोई अपने मन में कितना ही बड़ा क्यों न हो उसके साधन कितने ही अधिक क्यों न हो, उसका वह बड़प्पन उसके अपने तक ही सीमित रहेगा। दूसरे अपने कामों में व्यस्त है। किसी का बड़प्पन नापने और उससे प्रभावित होने की किसी को फुरसत नहीं, इस तथ्य को यदि लोग समझ लें तो कम से कम प्रदर्शन और ठाठ बाठ के नाम पर जो धन, समय एवं चिन्तन नष्ट होता रहता है उसकी सहज ही बचत हो सकती है और उस क्षमता को शान-वान की, बड़प्पन प्रदर्शन की मूर्खता से बचाकर किसी उपयोगी काम में लगाया जा सकता है।

अपने सौरमण्डल के प्रायः सभी ग्रह दिखाई देते हैं। सूर्य को छोड़कर वे जरा-जरा से जुगनू जैसे दीखते हैं। यद्यपि वे पृथ्वी से भी बहुत बड़े हैं। उनका बड़प्पन देखने की न तो हमारी रुचि है और न आवश्यकता। वे अपनी जगह बड़े या छोटे जैसे भी हों वैसे बने रहें हम अपने कार्यों में व्यस्त है, अपनी समस्याओं में उलझे हैं उनके बड़प्पन को देखने, जानने पर भी हम क्यों और किसलिए प्रभावित होंगे?

बृहस्पति सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है। इतना बड़ा कि सभी 8 ग्रह उस अकेले में ही समा जायं। वह पृथ्वी से 1300 गुना बड़ा है और उससे 60 करोड़ मील दूर है। इस दूरी की तुलना में बेचारा चन्द्रमा जो सिर्फ 2 लाख मील है बगल में बैठा हुआ प्रतीत होगा।

बृहस्पति की आकर्षण शक्ति इतनी है कि धरती पर रहने वाला कोई डेढ़ मन वजन का मनुष्य वहाँ जाकर 4 मन भारी हो जायगा। वह अपनी धुरी पर अत्यन्त द्रुतगति से घूमता है। यह चाल अन्य ग्रहों से अधिक है। वहाँ पाँच घण्टे का दिन और पाँच घण्टे की रात होती है। वहाँ पहले अन्तरिक्ष यात्री चन्द्रमा ‘सीरस’ पर सवारी गाँठेंगे और वहीं से खोजबीन आरम्भ करेंगे। जब आवश्यक जानकारियाँ प्राप्त हो जायेंगी तभी बृहस्पति पर उतरेंगे।

बृहस्पति का व्यास 88 हजार मील है। उस पर हजारों मील मोटी गैस के बादलों की परत छाई हुई है। सूर्य से 48 करोड़ 30 लाख मील दूर होने के कारण वहाँ गर्मी पहुँचाने वाली किरणें बहुत स्वल्प मात्रा में पहुँचती है इसलिए वह अत्यधिक ठंडा है। अन्य ग्रह सूर्य के समीप हैं। हमारी पृथ्वी मात्र सवा नौ करोड़ मील दूर है। मंगल 14॥। करोड़ मील शुक्र 6॥। करोड़ मील और बुध 3॥ करोड़ मील है। अत्यधिक दूरी होने के कारण सूर्य साम्राज्य में रहते हुए भी वह बहुत बातों में आत्म निर्भर है। उसे पूरा औपनिवेशिक स्वराज्य मिला हुआ है। कामनवेल्थ का वह सम्मानित सदस्य होते हुए भी अपने बलबूते पर ही अपना क्रिया-कलाप चलाता है।

गैस बादलों की मोटी परत के नीचे बृहस्पति पर बर्फ की मोटी परत जमी है। उस पर कभी-कभी 30 हजार मील लम्बे और 7 हजार मील चौड़े लाल धब्बे दिखाई पड़ते हैं। अनुमान यह है कि यह उसमें ज्वालामुखी फटते रहने और उनके लावा उगलने के कारण दिखाई पड़ते है।

बृहस्पति के अनेक छोटे-बड़े चन्द्रमा है। इनमें से अभी 12 ही देखे जाने जा सके हैं। इनके नाम कोलस्टा, जेनिमेंद्र, इव, योरोपा, एमस्यिया आदि हैं। सोचा जा रहा है कि जब सौरमण्डल की यात्रा पर निकला हुआ मनुष्य बृहस्पति की खोज पर जायगा तब पहले उसे इन्हीं में से किसी चन्द्रमा पर रुक कर अपनी खोज आरम्भ करनी होगी और वस्तुस्थिति का पता लगाने के बाद उस धरती पर पैर रखने की हिम्मत करनी होगी। शनि के 9, यूरेनस के 5 नेपच्यून के 2 चन्द्रमा है। 20 खरब 779 करोड़ मील की यात्रा का साधन जुटाकर जब सौरमण्डलीय यात्रा आरम्भ होगी तब यह चन्द्रमा ही मूल ग्रहों पर उतरने के प्रथम सोपान होंगे। उस यात्रा का सबसे अन्तिम ग्रह प्लूटो होगा, वह आकार में पृथ्वी के ही बराबर है, पर सूर्य से इतनी अधिक दूर है कि वहाँ से उसका प्रकाश टिमटिमाती मोमबत्ती जितना ही दिखाई देगा। हमारी पृथ्वी का जीवन प्राण सूर्य, प्लूटो को अपने अस्तित्व भर की जानकारी देने वाला एक छोटा-सा दीपक भर लगेगा।

ऊपर की पंक्तियों में बृहस्पति की विशालता की उपलब्ध जानकारी का थोड़ा-सा अंश दिया गया है। अभी और भी बहुत कुछ ऐसा जानना, बताना शेष है जो उस विशाल ग्रह के वैभव को प्रकट कर सके।

यदि हमारी ही तरह ओछी बुद्धि का बृहस्पति ग्रह होगा तो सोचता होगा सौरमण्डल के सारे ग्रह उसकी धाक मानेंगे और पृथ्वी आदि ग्रहों पर रहने वाले प्राणी निरन्तर उसका नमन बन्दर करेंगे, पर ऐसा होता कहाँ है। हमें किसी के बड़प्पन या छोटे होने से क्या लेना देना हमारी अपने छोटेपन या बड़प्पन की समस्याएं ही क्या कम सिर दर्द है जो दूसरों का लेखा-जोखा लेने में माथापच्ची करें।

कल्पना की जा सकती है कि जिस प्रकार बृहस्पति का बड़प्पन हमें थोड़ा कौतूहल भर देता है उसके वैभव से हम तनिक भी प्रभावित नहीं है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति धन वैभव का प्रदर्शन करने के लिए खर्चीला ठाठ-बाठ बनाये और सोचे कि देखने वाले उसकी शान-शौकत देखकर अवाक् रह जायेंगे तो इस प्रकार का सोचना सर्वथा ओछेपन और बचकानापन ही कहा जायेगा। लोग अपने कामों में व्यस्त है हमें अपने महत्वपूर्ण कार्यों में उस शक्ति को नियोजित करने में लगा रहना चाहिए जो खर्चीला और बेकार का आडंबर बनाने में अकारण नष्ट होती रहती है।

इसी प्रकार विपत्तियों की भावी सम्भावनाओं की कल्पना करके हमें उद्विग्न होने की आवश्यकता नहीं है। काली घटाएँ आती है- घुमड़ती, गरजती हैं और हवा के प्रवाह से इधर से उधर छितराती चली जाती हैं। बरसती तो कोई-कोई और कभी-कभी ही हैं। अस्तु भविष्य की अनिष्ट सम्भावनाओं का विचार करके मानसिक सन्तुलन डगमगाने की कोई जरूरत नहीं है। कुछ वर्ष अष्टग्रही योग आया था। दैवज्ञ उसके कारण संसार पर आने वाली भयंकर विपत्तियों की भविष्यवाणी करते थे, पर वैसा कुछ हुआ नहीं। अभी भी सन् 75 में ऐसी ही अंतर्ग्रही ही विभीषिका की भविष्यवाणी की जा रही है। जिस पर यदि गम्भीरता से विचार किया जाय तो भयभीत होने का कारण विद्यमान है, पर वैसा करने से कुछ बनेगा नहीं।

खगोलशास्त्री जान गौरविन और स्टीवन प्लेजमान की संयुक्त रूप से लिखित पुस्तक ‘बृहस्पति का प्रभाव’ में सन् 1982 में सौरमण्डल की एक विशेष स्थिति होने का है।

लेखक द्वय ख्यातिनामा विज्ञानी है। गौरविन प्रख्यात ब्रिटिश पत्रिका ‘नेचर’ के सम्पादक है और प्लेजमान है गोडार्ड अन्तरिक्ष केन्द्र के अनुसन्धानकर्ता। वे बाजारू ज्योतिषियों की गणना में नहीं आते। इन लोगों का कहना है- सन् 82 में यूरेनस, नेपच्यून, प्लूटो जैसे दूरवर्ती ग्रहों समेत सौरमण्डल के अन्य ग्रह सूर्य के इर्द-गिर्द अपेक्षाकृत अधिक निकट एकत्रित हो जायेंगे इससे सूर्य की चुम्बकीय गतिविधियां बहुत बढ़ जायेंगी। उसके धब्बों से विशाल तूफान उठेंगे और सुविस्तृत ज्वालाओं की लपटें फैलेंगी। इसका भयंकर प्रभाव पृथ्वी पर पड़ेगा। रेडियो संचार व्यवस्था टूट जायगी। उत्तरी गोलार्ध में प्रकाश बहुत चमकेगा। गर्मी बढ़ेगी और ऊपरी सतह की हवाओं के रुख में भारी गड़बड़ी पैदा होगी। संसार के कितने ही भागों में भूकम्प होंगे और तूफान आयेंगे।

जो हो- अष्टग्रही योग चला गया। चला सन् 75 भी जायगा। विभीषिकाएँ आती और चली जाती हैं। उस ओर अधिक ध्यान न देकर यदि हम अपने सामने प्रस्तुत कार्यों में ही लगे रहें तो चिन्ता, आशंका ओर उद्विग्नता से सहज ही बचे रह सकते हैं। डरने की अपेक्षा करने में लगे रहना अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118