धर्म के किसी विषय पर चर्चा करते हुए आश्रम के छात्रों में दो दल हो गये। विवाद इतना बढ़ा कि आवेश उबल पड़ा और हाथापाई हो गई।
गुरु आये। उन्होंने कहा− धर्म साधना को कोई भी पक्ष मुक्ति युक्त क्यों न हो किसी भी पक्ष में स्वभाव की विकृति के लिए कोई स्थान नहीं है। क्रोध और आवेशपूर्वक जो कुछ भी कहा जायगा वह सब धर्म होते हुए भी अधर्म बन जायगा।
छात्रों के तमतमाते हुए चेहरे ठण्डे हो गये।