आचार्य की उदारता (kahani)

May 1975

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गुरुकुल में एक अनगढ़ शिष्य आ गया, उसे चोरी करते कई बार पकड़ा गया। हर बार शिष्यों ने उसे आचार्य के सामने उपस्थित किया और कहा-इसे आश्रम से निकाल दें आचार्य ने आग्रह अनसुना कर दिया। अन्त में छात्र झल्ला गये और बोले यदि आप इस चोर को यहाँ से नहीं निकालते तो हम सब यहाँ से चले जायेंगे।

आचार्य ने छात्रों को बुलाया तुम सब विवेकशील हो उचित-अनुचित के परिणाम जानते हो। यह अनाड़ी है अपना भला-बुरा नहीं जानता। यदि इसे यहाँ से निकाल दूँ तो उसका भविष्य घोर अन्धकारमय बन जायगा और हम इतने विवेकशील एक अनाड़ी को न सुधार सके इस कलंक से आश्रम कलंकित होगा। सो तुम सब भले ही चले जाओ पर मैं उस अनाड़ी को पूरी तरह सुधारने तक यही रखूँगा। छात्र शान्त हो गये। साथ ही आचार्य की उदारता का ऐसा प्रभाव उस अनाड़ी पर पड़ा कि उसने सदा के लिए चोरी करना छोड़ दिया।


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