जिस प्रकार बहता हुआ जल पत्थरों को चीरता हुआ, अपने स्त्रोत सागर में पहुँचता है उसी प्रकार साधक, कठिन परिस्थितियों में से गुजरता हुआ, लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है।