Quotation

May 1975

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प्रकृति ने शरीर को इस प्रकार बनाया है कि उसे सावधानी बरतने पर सुदृढ़ सुरक्षित रखा जा सकता है। बीमार होने पर अपने ही प्रयत्न प्रायश्चित से उसे सुधारा जा सकता है इस राज मार्ग को छोड़ कर दूसरों का सहारा तकते और सहायता की ओर दौड़ते हैं और उन्हें निराश ही रहना पड़ता है। क्या शरीर, क्या मन, क्या जीवन। सर्वत्र स्वावलम्बन की ही प्रतिष्ठा है, पराये अनुदान पर कोई कब तक जीवित रह सकता है।


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