सजातीय मिलन (kahani)

January 1975

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आंसुओं की दो बूंदें आंखों से ढुलकीं और गिरते पड़ते एक जलाशय में जाकर इकट्ठी हो गई। सजातीय मिलन से दोनों ने प्रसन्नता अनुभव की और परस्पर एक दूसरों परिचय पूछने लगी।

पहली ने कहा- मैं उस युवती की आँखों से ढुली जिस के पति को एक दूसरी युवती ने अपने प्रेम जाल में फँसा लिया और वह बेचारी निरी होकर रह गई।

दूसरी बूँद ने कहा- ओ, हो तब तो तुम मुझ से ही सम्बन्धित हो। मैं उस युवती की आँखों से ढुली जिसने तुम्हारी मालकिन को निरीह बनाया था पर कुछ ही दिन बाद वह युवक तीसरी युवती की ओर खिसक गया तो मेरी मालकिन सिहर उठी, कि मैंने क्यों अनैतिक व्यक्ति पर भरोसा किया।उसे पश्चाताप का रोना आया तो मैं जमीन परा आ गिरी और किसी प्रकार यहाँ आ पहुँची।


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