शिष्य ने गुरु से पूछा देव, नदियों का पानी तो मीठा होता है फिर समुद्र जो उन्हीं नदियों के जल संग्रह से अपना भण्डार भरता है खारे जल से क्यों भरा रहता है?
गुरु ने कहा-वत्स उदारता, दान, सेवा और समर्पण का अपना मिठास है। वही नदियों के जल को मीठा बनाये रहता है। समुद्र ने केवल लेना और संग्रह करना ही जाना है उससे उसके अन्तरंग में पश्चाताप के ज्वार-भाटे उठते रहते हैं और कृपणता का कडुआपन उसके पानी को भी अपेय बना देता है।