अच्छा होता हम अपनी धरती ही सुधारते और बेचारे चन्द्रमा को अपने भाग्य पर छोड़ देते। अभी तक हमार मूर्खताएं धरती तक ही सीमित रही हैं उन्हें ब्रह्मांडव्यापी बनाने में मुझे तो ऐसी कोई बात प्रतीत नहीं होती जिस पर विजयोत्सव मनाया जाय। -वट्रेड रसेल
को प्रकाश में लाते रहते हैं। अन्य देशों में वैसा उत्साह कम रहने के कारण आंकड़े भी उतनी सरलता से नहीं मिलते। चर्चा में प्रमुखतापूर्वक अमेरिका के अधिक उदाहरण दिये जाने का यही कारण है।
समय आ गया है कि जोश के साथ होश कायम रखने की बात पर सतर्कतापूर्वक ध्यान दिया जाय। वैज्ञानिक प्रगति की जाय पर उसके विनाशक पक्ष को भी ध्यान में रखा जाय। बुद्धिवाद को प्रश्रय मिले-वैयक्तिक सुविधा और समाज-सुधार की बात भी आगे बढ़े पर यह न भुला दिया जाय कि कहीं अपने पैरों में ही कुल्हाड़ी तो नहीं मारी जा रही है। विकास के नाम पर विनाश को तो आमन्त्रित नहीं किया जा रहा है।