एक जागीरदार अपने ठिकाने का विस्तार और वैभव दार्शनिक सुकरात को सुना रहा था। डींगें सुनते-सुनते जब बहुत देर हो गई तो सुकरात ने एक पृथ्वी का नक्शा मँगाया और पूछा-बताना इसमें तुम्हारा ठिकाना कहाँ हैं।
नक्शे में उस ठिकाने का उल्लेख न था केवल प्रान्त ही मटर के बराबर जगह में दिखाई पड़ता था उसने उसी की ओर इशारा किया।
सुकरात ने फिर पूछा यह तो एक प्रान्त का नक्शा हुआ तुम अपने ठिकाने का स्थान और अनुपात बताओ। जागीरदार ने कहा इस नक्शे के अनुपात से मेरा ठिकाना एक सुई का नोंक के बराबर होना चाहिए।
सुकरात हँस पड़े। उनने ब्रह्मांड के नक्शे में पृथ्वी को एक तिल भर बताते हुए कहा- इस पृथ्वी में भी तुम्हारा ठिकाना अदृश्य जितना कम है फिर समस्त ब्रह्मांड की तुलना में तो वह अत्यन्त उपेक्षणीय होगा। इतनी छोटी वस्तु पाकर तुम इतनी बड़ी डींगें क्यों हाँकते हो ?