शक्ति का उपार्जन ही नहीं सदुपयोग भी

January 1975

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मोटी दृष्टि से बड़ी वस्तु अधिक बहुमूल्य मालूम पड़ती है और छोटी को महत्वहीन समझा जाता है, पर बारीकी से देखने पर मूल्य परिमाण का नहीं वरन् वस्तु के भीतर छिपी शक्ति को पहचानने और उसका उपयोग करने का है। सामान्य जड़ी-बूटियाँ तथा रासायनिक पदार्थों का निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सम्मिश्रण करने पर वे चमत्कारी औषधियाँ बन जाती है। यह सूक्ष्म शक्ति का उपयोग ही है। जड़ समझी जाने वाली धातुएं भी भस्म बना कर अनुपात एवं परिमाण में सेवन की जाती है तो संजीवनी का काम करती है।

पदार्थ की मात्रा अधिक होगी तो उसका उपयोग एवं लाभ भी अधिक होगा यह मोटी बात हैं गहराई से किसी छोटे से छोटे पदार्थ के लघुत्तम भाग की -अणु परमाणु की-क्षमता पर जब विचार करते हैं तो आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है कि परमाणु कहलाने वाले नगण्य से पदार्थ घटक, अपने में कितनी अद्भुत क्षमता दबाये बैठे है। इससे भी गहराई में उतरते हैं तो मात्र विद्युत तरंगें भी अनन्त समुद्र सागर में उठने वाली लहरों की तरह लहराई दीखती है। उन्हीं का मूर्त रूप परमाणु हैं। इन परमाणुओं का साफ बाजार अणु है और फिर अणुओं का संगठित पदार्थ बनकर सामने आता है।

बड़ी वस्तुएं छोटे-छोटे घटकों से मिलकर बनी हैं और छोटे से छोटा घटक किसी बड़े पदार्थ के साथ जुड़ा हुआ अवयव है। स्वतन्त्र सत्तावान होते हुए भी प्रत्येक परमाणु को किसी का अंग बनकर रहना पड़ता है। पदार्थ को भी अपनी अस्तित्व मूर्त रूप में लाने के लिए इन तुच्छ समझे जाने वाले घटकों का संग्रह करके आत्मसात् करने में सफलता प्राप्त करनी पड़ती है। अन्योन्याश्रय की इसी क्रम पद्धति को अपनाकर संसार का काम चल रहा है। यदि कोई किसी को अपना न माने हर कोई स्वतन्त्र स्वच्छंद विचरे तो फिर उस स्वतन्त्रवादी की तो दुर्गति होती है कोई उपयोगी पदार्थ न बन सकने के कारण यह संसार भी धूलि भर अणु-अन्धड़ के अतिरिक्त और कुछ न रह जायगा।

व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध परमाणु और पदार्थ जैसा है। परमाणुओं का संगठन अणु हैं। मनुष्यों का प्राथमिक उत्पादन, अभिवर्धन एवं संगठन-परिवार के रूप में बनता है और उन परिवारों की इकाइयाँ मिलकर समाज बनाती हैं। समाज को व्यक्ति के विकास का समुचित आधार बनाना पड़ता है और व्यक्ति को समाज की प्रगति एवं शान्ति को निज की ही मान कर रहना पड़ता है। जहाँ भी इस महाक्रम का व्यक्तिक्रम हुआ कि अव्यवस्था फैल जाती है और उस आग की लपेट में आने वाले क्षेत्र को विविध-विधि अड़चनों का सामना करना पड़ता है।

परमाणु छोटे-छोटे विद्युत कणों के संगठन से बने हुए हैं। वे विद्युत कण धन या ऋण विद्युन्मय होते हैं धन विद्युन्मय कणों को प्रोटोन और ऋण विद्युत कणों को इलेक्ट्रॉन कहते हैं। इलेक्ट्रॉन प्रोटोन की तुलना में हलके होते हैं।

परमाणु की संरचना सूर्य मण्डल से मिलती-जुलती होती है। सौरमण्डल में जिस प्रकार सूर्य का स्थान केन्द्र में होता है और वह अपनी धुरी पर घूमता है तथा अन्य ग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं में दौड़ते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। उसी प्रकार परमाणु रचना में एक मध्य केन्द्र होता है और अनेक इलेक्ट्रॉन केन्द्र के चारों ओर तीव्र गति से अपनी-अपनी कक्षाओं में भ्रमण करत हैं।

इस अनुशासित क्रम बद्धता ने ही सौरमण्डल को व्यवस्थित शृंखला में बाँध रखा है। उसी से अणु परमाणु अपने क्रिया-कलाप में संलग्न है। यही वह रीति-नीति है जिसे अपनाकर मनुष्य, परिवार और समाज की गतिविधियाँ संचालित हो रही हैं शरीर को ही ले वह छोटे-छोटे जीव कोषों की सम्मिलित इकाई मात्र है। वे कोष यदि विगठित होने लगें तो जीवन का अन्त ही समझिये।

शक्ति का सर्वत्र विपुल भण्डार भरा पड़ा हैं। जड़-चेतन सभी में अपरिमित शक्ति स्रोत भरे पड़े हैं। कठिनाई एक ही है कि वे प्रसुप्त स्थिति में हैं उन्हें किसी प्रकार जगाया जा सके तो प्रतीत होगा कि शक्ति सागर की प्रचण्ड लहरें कण-कण में लहरा रहा हैं

अणु विखण्डन को इन दिनों नये शक्ति-स्रोत के रूप में विकसित किया जा रहा है। भाप, कोयला, तेल, बिजली, गैस आदि ईंधनों के भण्डार क्रमशः चुकते चले जा रहे हैं। अस्तु यह उचित समझा गया कि अनन्त अणु शक्ति को मानवी उपभोग के लिए प्रस्तुत किया जाय। इसके लिए अणु की भीतरी शक्ति को उभार कर ऊपर लाने के लिए- उसकी मूर्छा जगाने के लिए विखण्डन प्रक्रिया अपनाई गई है। इसके लिए अपेक्षाकृत अधिक सरल और सुविधाजनक पदार्थ यूरेनियम चुना गया हैं यों सिद्धान्ततः विस्फोट किसी भी पदार्थ के अणु का हो सकता है।

यूरेनियम एक खनिज है जिसमें विखण्डनशील और उर्वर पदार्थों का सम्मिश्रण है। उर्वर को भी विखण्डनशील बनाया जा सकता है। उर्वर यूरेनियम पर जब न्यूट्रान चोट करते हैं तो वह प्लूटोनियम में परिवर्तित हो जाता है जो विखण्डन की दृष्टि से और भी अधिक उपयुक्त होता है परमाणु ईंधन सामान्य ईंधनों की अपेक्षा अत्यधिक शक्तिशाली होता है एक घनफुट यूरेनियम में इतनी शक्ति होती है जितनी 17 लाख टन कोयले में- अथवा 72 लाख बैरल तेल में- अथवा 320 खरब घन फुट प्राकृतिक गैस में पाई जाती है।

मोटी दृष्टि से उर्वर प्रधान समझा जाने वाला यूरेनियम सूक्ष्म दृष्टि से परखने पर शक्ति का भण्डार सिद्ध होता है यह विखण्डन यदि उपयोगी दिशा में हो और उस शक्ति का बिखराव रोक कर रचनात्मक कार्य में लगा दिया जाय तो उसका परिणाम इतना बड़ा होता है कि ईंधन की शक्ति उत्पादन की सारी समस्याओं को जरा-सा यूरेनियम हल कर दे। किन्तु यदि स्वच्छन्द उच्छृंखल छोड़ दिया जाय तो वही विखंडन विस्तृत क्षेत्र का-उसमें रहने वाले धन-जन का सर्वनाश कर सकता है।

अणु विस्फोट से उत्पन्न रेडियो विकिरण का प्रभाव यों हवा, पानी और वनस्पति आदि सभी पर होता है। पर धातुएँ उसे अधिक चूसती हैं और अपने भीतर देर तक जमा करने के लिए सोख लेती है। जेवर पहले हुए लोग अणु विस्फोट से अधिक प्रभावित होते हैं। विस्फोट के प्रभाव से बचने के लिए भूमि खोद कर शरण गृह बनाये जा रहे हैं उनमें धातु निर्मित वस्तुएँ न हों इसका ध्यान रखा गया है।

भली-बुरी परिस्थितियों का अपना महत्व है पर उनका प्रभाव हर किसी पर समान नहीं होता। मनुष्य भी अपनी स्थिति के अनुरूप ही बाहर प्रभाव अथवा असर डाल सकते हैं। विकिरण को धातुएं चूसती है और खाइयाँ बचाव करती हैं। अपनी आन्तरिक स्थिति धातु या खाई जैसी होगी तो प्रभावों से प्रभावित होने अथवा बचे रहने की परिस्थिति भी उसी आधार पर बन जायगी।

पेन्सिलवेनिया के रेडियोलाजी के प्रो0 मारिस ने इलियोनिस में स्थित एक अणु शक्ति रियेक्टर के आस-पास के क्षेत्रों में बच्चों की मृत्यु दर काफी बढ़ जाने की सूचना दी है। यह स्थान शिकागो से 80 मील दक्षिण पश्चिम में स्थित हैं। रियेक्टर चालू होने से पूर्व इस क्षेत्र में बच्चों की मृत्यु दर उतनी ही थी जितनी अन्य क्षेत्रों में पर अब वह दर आश्चर्यजनक रूप में बढ़ गई है। कहा जाता है कि उस क्षेत्र में रेडियो विकिरण की मात्रा बढ़ जाने से उसका प्रभाव बच्चों के लिए अधिक अहितकर सिद्ध हुआ है।

यह तथ्य सिद्ध करते हैं कि शक्ति का उत्पादन उतना कठिन नहीं जितना कि उसके अवाँछनीय प्रभावों को रोकने के सम्बन्ध में सतर्कता बरतना। सम्पदायें एवं सफलताएँ सदा लाभदायक ही नहीं होती उनको व्यर्थ एवं अनर्थ जैसी दिशा में उपलब्धियाँ भी विघातक ही होंगी।

अणु शक्ति का उत्पादन रचनात्मक दिशा में करने का उनके उत्पादकों का इरादा नहीं है। वे अपने प्रतिद्वन्द्वी को समाप्त करने और विश्वव्यापी वर्चस्व जमाने के लिए उसे प्रयुक्त करने की महत्वाकाँक्षाओं को अपने भीतर दबाये हुए हैं। कभी-कभी तो अपना प्रयोजन दबी जवान से स्पष्ट भी कर देते हैं।

वेल ऐरो सिस्टम कम्पनी के उपाध्यक्ष डानवज्रर ने योजना बनाई थी कि अन्तरिक्ष में उड़ा कर सैकड़ों अणु बम एक साथ रूस पर छोड़े जायें और उसके समृद्ध नगरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए।

अन्तरिक्षयानों की सफलता पर अमेरिकी पत्र न्यूज एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट ने बिना छिपाये इन प्रयत्नों का रहस्यमय उद्देश्य प्रकट करते हुए स्पष्ट शब्दों में लिखा है- “हमारा ध्येय अन्तरिक्ष में प्रभुत्व स्थापित करना है।”

शक्तियों की प्रतिद्वंद्वी शक्ति भी होती हैं। क्रिया की प्रतिक्रिया से -ध्वनि की प्रतिध्वनि से-पदार्थ की छाया से सभी परिचित हैं। शक्ति भी अपनी प्रतिद्वंद्वी शक्ति उत्पन्न करती है जैसे कि देवत्व का प्रतिपक्षी असुरत्व चुनौती देने के लिए सामने आता है अणु का प्रतिअणु-पदार्थ का प्रतिपदार्थ भी वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है। एण्टी एटम- एण्टी मैटर- एण्टी युनिवर्स हलचल में जितनी शक्ति सन्निहित है ठीक उतनी ही उसके प्रतिपक्ष में भी सन्निहित है उसे भी यदि पकड़ने और प्रयुक्त करने में सफलता मिल जाय तो आज के ही साधन कल दूना प्रयोजन पूरा कर सकते हैं।

मनुष्य के अन्दर देवत्व है इसका सदुपयोग विकास के लिए हो सकता है। इसके प्रतिपक्षी असुरत्व का भी अपना उपयोग हैं। क्रोध एवं घृणा को अवाँछनीयता से लड़ाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। लोभ और मोह को व्यक्तिगत लाभ से हटा कर सर्वजनीन प्रगति एवं समृद्धि के लिए जुटाया जा सकता है। कोमल संवेदनाएं जिन्हें ‘काम’ कहते हैं शरीर को निचोड़ने की अपेक्षा कलात्मक उल्लास के विकास में संलग्न होकर व्यक्तित्व को प्रफुल्ल बनाने की भूमिका सम्पादन कर सकती हैं। अहंकार को आत्म-गौरव एवं आत्म-बोध की दिशा में मोड़ा ज सकता है। देवत्व का प्रतिपक्ष असुरत्व है पर वह भी सर्वथा अनुपयोगी नहीं है। अणु शक्ति की प्रतिपक्षी प्रतिअणु शक्ति भी यदि वैज्ञानिकों के हाथ लग गई ता मनुष्य को सर्वशक्तिमान बनने में देर ने लगेगी। प्रश्न यहाँ भी सदुपयोग दुरुपयोग का प्रधान रहेगा। शक्ति की इस संसार में कमी नहीं। जौ मौजूद है उसे समेट लेना कोई बड़ी बात नहीं हैं बड़ी बात उस विवेकशीलता का उत्पादन है जिसके आधार पर दुरुपयोग की रोक-थाम और सदुपयोग की प्रेरणा कार्यान्वित हो सकती है बुद्धिमता की सबसे बड़ी देन उपलब्ध सदुपयोग कर सकने की क्षमता ही होती हैं यदि वह मिल सके तो अणु शक्ति का तथा अन्यान्य आश्चर्यचकित करने वाली सामर्थ्यों का उपार्जन सार्थक हो सकता हैं


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