प्रगति के जोश में हम विकृति के गर्त में न डूब मरें

January 1975

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मनुष्य प्रगति की दिशा में आगे बढ़े यह उचित है। विज्ञान की प्रगति इस युग की एक बड़ी उपलब्धि है उसने मनुष्य जाति को एक नया उत्साह दिया है कि उज्ज्वल भविष्य के लिए अधिकाधिक सुख सम्वर्धन के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है, सो किया भी जा रहा है। इन्हीं शताब्दियों में वैज्ञानिक खोजों ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है और कितने ही क्षेत्रों में आशा भरा उत्साह उत्पन्न किया है। इस उपलब्धियों के महत्व को झुठलाया नहीं जा सकता।

वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ मानवी सुख-सुविधाओं में जो वृद्धि हुई है उसकी महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता यातायात, कल-कारखाने, कृषि व शिल्प विनोद, चिकित्सा, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में आज का मनुष्य सौ दो सौ वर्ष पूर्व के लोगों की तुलना में कहीं अधिक साधन सम्पन्न है। बिजली, रेडियो, तार, टेलीफोन, प्रेस अखबार आदि के सहारे जो सुविधाएँ मिली हैं वे अभ्यास में आने के कारण कुछ आश्चर्यजनक भले ही प्रतीत न होती हों, पर आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व का कोई मनुष्य आकर यह सब देखे और अपने जमाने की परिस्थितियों के साथ तुलना करे तो उसे प्रतीत होगा कि वह किसी अनजाने दैत्यलोक में विचरण कर रहा है। द्रुतगामी वाहनों की अपनी शान है, रेल, मोटर, वायुयान, पनडुब्बी, जल पोतों के कारण मिलने वाली सुविधाएँ कम नहीं आँकी जानी चाहिए। चिकित्सा एवं शल्य क्रिया की उपलब्धियां कम नहीं हैं सिनेमा और लिए भी मनोरंजन की सुविधा सम्भव हो गई है। अन्तरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में हुई प्रगति ने मनुष्य के चरण, तीन चरण में जीन लोक नाप लेने वाले वामन भगवान जितने लम्बे बना दिये हैं। शस्त्रार्थों की दुनिया में अब मारण का व्यवसाय इतना सरल बन गया है कि एक बच्चा भी पृथ्वी पर निवास करने वाले समस्त प्राणधारियों का अस्तित्व क्षण भर में समाप्त कर सकता है।

“पशु-पक्षियों और वृक्ष-वनस्पतियों की वर्णशंकर जातियाँ उत्पन्न करने की कृत्रिम गर्भाधान, टेस्ट ट्यूबों की- सफलता प्राप्त करके मनुष्य सृष्टि निर्माण विधाता के पद पर आसीन होने की तैयारी कर रहा है। विशालकाय स्वसंचालित यन्त्रों से पौराणिक दैत्यों का काम लिया जा रहा है। वरुण से जल भराने, वायु से पंख झलवाने, अग्नि से ऋतु प्रभाव संतुलित कराने का काम रावत लेता था आज जल-कल, बिजली की बत्ती, फेन, रेफ्रिजरेटर, हीटर, कूलर आदि के माध्यम से वे रावत जैसी उपलब्धियाँ हर किसी के लिए सम्भव हो गई हैं। पुष्पक विमान पर अब हर कोई उड़ सकता है और समुद्र लाँघने की हनुमान जैसी शक्ति अब किसी भी वायुयान और जलयान यात्री को सहज ही उपलब्ध है।

‘सोमियोलाजी’ नामक मस्तिष्क विद्या की एक शाखा के अंतर्गत ऐसे अनुसन्धान हो रहे हैं कि मनुष्यों की चिंतन पद्धति कुछ समय के लिए आवेश रूप में नहीं वरन् स्थायी रूप में बदली जा सकेगी। जिस प्रकार प्लास्टिक सर्जरी से अंगों की काट-छांट करके कुरूपता को सुन्दरता में बदल दिया जाता है उसी प्रकार मस्तिष्क की विचारणा एवं सम्वेदना का आधार भी बदल दिया जाय जिससे वह सदा के लिए अपने मस्तिष्क चिकित्सक का आज्ञानुवर्ती बनने के लिए प्रसन्नतापूर्वक सहमत हो जाय।

समुद्र के खारी पानी को मीठे जल में बदलने की-कृत्रिम वर्षा कराने की रेगिस्तानों को उपजाऊ बनाने की-अणु शक्ति से ईंधन का प्रयोजन परा करने की-समुद्र सम्पदा के दोहन की जराजीर्ण अवयवों का नवीनीकरण करने की योजनाएं ऐसी ही हैं जिनसे आँखों में आशा की नई ज्योति चमकती है।

इन उपलब्धियों से मदोन्मत्त होकर मनुष्य अपने को प्रकृति का अधिपति मानने का अहंकार करने लगा है और अपने को सर्वशक्तिमान बनाने की धुन में मारक अणु आयुध बनाने से लेकर-जीवनयापन की प्रक्रिया में उच्छृंखल स्वेच्छाचार बरतने के लिए आतुरतापूर्वक अग्रसर हो रहा है। सफलताओं के जोश में उसने होश गँवाना आरम्भ कर दिया है। इसका दुष्परिणाम भी उसके सामने आ रहा है। अमर्यादित और अनैतिक प्रगति प्रकृति को स्वीकार नहीं वह उसे रोकने का प्रयास करेगी। ही आखिर उसे भी तो अपना सन्तुलन बनाये रखना है।

अर्नाल्ड टायनवी ने अपने ग्रन्थ ‘ए स्टडी आव हिस्ट्री’ में पाश्चात्य सभ्यता की स्थिति और प्रगति पर उनके दृष्टिकोणों से प्रकाश डाला है और यह निष्कर्ष निकाला है कि ‘प्रगति के अत्युत्साह में दिशा भूलकर हम जिस ओर-जिस तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं उसका अन्त महाविनाश के रूप में ही सामने प्रस्तुत होगा। टायनवी के अन्य ग्रन्य ‘नेशनलिटी एण्ड दि वार’ और ‘दि न्यू योरोप’ में पाश्चात्य जनमानस का विश्लेषण करते हुए उसकी लक्ष्य विहीन प्रगति के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला है कि यह अग्र गमन निकट भविष्य में हमें पीछे हटने से भी अधिक महँगा पड़ेगा।

कल-कारखानों की वृद्धि करके अधिकाधिक सुविधा-साधनों को बढ़ाने की अन्धी दौड़ इन दिनों द्रुतगति से चल रही है। यातायात को सरल और स्वल्प समय साध्य बनाने के लिए जल, थल और नभ में चलने वाले यन्त्र वाहनों का विस्तार हो रहा है। इन यन्त्रों में कोयला, तेल, गैस, बिजली, अणु विषैला धुँआ आकाश में उड़ता है और उससे साँस लेने के लिए उपयोगी-वायु अंश नष्ट होकर विषाक्तता बढ़ती है। यह वायु प्रदूषण इस तेजी से बढ़ रहा है कि निकट भविष्य में सार्वभौम स्वास्थ्य संकट उत्पन्न होने की सम्भावना प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है। कल कारखानों में और बड़े शहरों में उपभोग के बाद जो पानी बचता है वह घुमा-फिराकर नदी, तालाबों में होता हुआ समुद्र में जा पहुँचता है। इस गन्दगी से जल प्रदूषण भी इस गति से बढ़ रहा है कि अगले दिनों पीने योग्य स्वच्छ जल प्राप्त करने की समस्या अधिकाँश लोगों के सामने आ खड़ी होगी।

बढ़ते हुए वायु प्रदूषण का परिणाम यह हो सकता है कि पिछली हिम प्रलय की तरह फिर एक हिम युग सामने आ खड़ा हो और लम्बी अवधि के लिए धरती का एक बड़ा भाग प्राणियों के रहने योग्य न रहे उस पर प्रचण्ड शीत की सत्ता स्थापित हुई दीखने लगे।

अमेरिका के वातावरण ऐजेन्सी के मौसम विशेषज्ञ विलियम काँव का कथन है कि यदि 5 करोड़ टन दूषित पदार्थ अपने वायुमण्डल में और मिल गये तो पृथ्वी का तापमान 11 अंश सेन्टीग्रेड गिर जायगा। जिससे वृक्ष, वनस्पतियाँ और कोमल शरीर वाले प्राणियों का जीवित रहना कठिन पड़ जायगा। तब दुनिया में प्रायः आधी हरियाली नष्ट हो जायगी।

डा0 अर्ल, डबल्यू वारेट ने हिसाब लगाया कि वायुमण्डल में 25 लाख टन दूषित पदार्थ घुस चुके हैं। 5 करोड़ टन के संकट बिन्दु तक पहुँचने में यों अभी 20 गुना अधिक दूषण घुसने के लिए कुछ समय लगेगा पर प्रदूषण जिस क्रम में बढ़ रहा है उसे देखते हुए शायद हजार वर्ष भी इन्तजार नहीं करना पड़ेगा और हिम प्रलय की विभीषिका धरती निवासियों के सामने आ खड़ी होगी। यह प्रदूषण धुन्ध की तरह छा जायगा और सूर्य की किरणें उस छतरी को भेदकर कम मात्रा में ही भूतल तक पहुँच पायेंगी। ऐसी दशा में हिम युग आने की सम्भावना स्पष्ट है।

विलासिता के प्रसाधनों और तुरन्त प्रसन्नता पाने के लिए नशेबाजी की आदतें तेजी से बढ़ रही हैं। कामोपभोग की लालसा अत्यन्त उग्र हो उठी है। स्वादिष्ट व्यंजनों से जिह्वा तृप्ति की आतुरता रोके नहीं रुक रही है। इन सबका प्रतिफल आर्थिक बर्बादी, शारीरिक रुग्णता, मानसिक असन्तुलन एवं सामाजिक अनाचार के रूप में सामने आ रहा है।

होठों को रँगने के लिए काम आने वाले लिपस्टिकों की खपत अमेरिका में 80,000,000 डालर की है। उनमें जो रंग काम आते हैं उनका परीक्षण करने पर पाया गया कि उनमें विषाक्तता की बड़ी मात्रा है। उन रंगों को खिलाने पर चूहे अनेकों बीमारियों के शिकार हो गये। अस्तु सरकार ने उस कार्य में प्रयुक्त होने वाले 17 रंगों को लिपस्टिकों में प्रयोग न करने का प्रतिबन्ध लगा दिया है। अब दूसरे किस्म के नये रंग खोजे गये हैं।

साल्ट लेक अमेरिका के डाक्टर स्पेन्स ने प्रख्यात मासिक ‘लिस्टन’ के अगस्त 1969 के अंक में पृष्ठ 5 पर तमाखू के फलस्वरूप होने वाली हानियों की सुविस्तृत चर्चा की है। उसमें पाये जाने वाले 24 घातक विषों का उल्लेख किया है और उनके दुष्परिणामों से सिगरेट पीने वालों को सचेत किया है। उनका शोध निष्कर्ष यह है कि सिगरेट, प्रत्येक पीने वालों की आयु में 18 मिनट की कमी करती चली जाती है।

अमेरिका के सामान्य नागरिकों का ध्यान अब तमाखू के दुष्परिणामों की ओर अधिकाधिक आकर्षित होने लगा है फलस्वरूप पिछले ही दिनों 2,10,00,000 व्यक्तियों ने सिगरेट पीना छोड़ा है इनमें 1,00,000 तो डाक्टर ही हैं। जिन्होंने यह समझ लिया है कि इस व्यसन को अपनाकर वे अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं।

स्विट्जरलैंड की सेन्डोज कम्पनी की प्रयोगशाला में डा0 एलवर्ट हाफमेन इस शोध कार्य में निरत थे कि नाड़ी संस्थान पर प्रभावशाली असर डालने वाले रसायन तलाश किये जायें। जई आदि की पत्तियों पर बनने वाली एक फफूँद का नाम एकगट रखा गया यह नशीली भी होती है यह कुछ सुधार संशोधन एवं सम्मिश्रण के साथ बाजार में कई प्रकार से चिकित्सा उपचारों के लिए बिकती है। अब तक प्राप्त हुए नशों में यह सबसे विलक्षण प्रकार का है। इसमें मात्र मदहोशी ही नहीं आती चित्र−विचित्र प्रकार के दृश्य भी दिखाई पड़ते हैं और ऐसा लगता है मानों उसकी नसों में से कोई विलक्षण बिजली का प्रवाह फूट रहा हो।

आस्ट्रेलिया में सबसे अधिक बीयर (हलकी शराब) पी जाती है। वहाँ प्रति व्यक्ति उसकी वार्षिक खपत 52 गैलन है। इसके बाद दूसरा नम्बर चैकोस्लेविया वालों का है जहाँ औसतन हर व्यक्ति 29 गैलन इस शराब को एक वर्ष में पी जाता है।

भारत इस क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं। बढ़ती हुई गरीबी, बेकारी और अस्वस्थता के बावजूद उसने नशेबाजी में सभ्यताभिमानी देशों से कम प्रगति नहीं की है। यहाँ नशेबाजी पूरे जोश पर है और अगले दिनों उसके गगनचुम्बी बनने के पूरे-पूरे आसार मौजूद हैं।

पाश्चात्य देशों में कामोपभोग की दृष्टि से एक नई विचारधारा अत्यन्त प्रबल वेग से यह उठी है कि यौनचर्या को भावनात्मक न बनने दिया जाय और दाम्पत्य-जीवन को यौन सदाचार के बंधनों में न बँधनों में न बाँधा जाय। घर-परिवार चलाने के लिए विवाह किये जायें पर पति-पत्नी दोनों को ही रतिक्रिया करने का अन्यत्र उपभोग करने की पूरी छूट रहे। इसमें कोई किसी का बाधक न बने वरन् एक दूसरे की सहायता करके उसके मनोरंजन को अधिक सुविधा प्रदान करते हुए विश्वस्त मित्रता का परिचय दे।

अमेरिका में इन दिनों “क्लब 101” नामक ऐसे सहस्रों संस्थान हैं जहाँ नर-नारी स्वच्छन्द यौनाचार की तृप्ति के लिए नित नये साथी सहज ही प्राप्त करते रहते हैं। इस मान्यता वाले व्यक्तियों को ‘स्विगर्स’ कहा जाता है। कहते हैं कि इस वर्ग के नर-नारियों की संख्या वहाँ लाखों से आगे बढ़कर करोड़ों तक पहुँच गई है।

‘स्विगर्स’ अब पाश्चात्य देशों में कोई अनैतिक वर्ग नहीं रहा वरन् उसका अपना एक दर्शन है। नृतत्व शास्त्री गिलवर्ट वारटैल की ‘ग्रुप सैक्स’ (सामूहिक भोग) पुस्तक एक करोड़ से अधिक बिकी है। कैलीफोर्निया के मनोवैज्ञानिक जेम्स ग्रोल्ड ने उस आन्दोलन को एक लोक मान्यता प्राप्त प्रचलन बताया है और कहा है कि प्रायः 20 लाख विवाहित और अविवाहित नर-नारी ‘क्लब 101’ विनोद गृहों की सदस्यता स्वीकार कर चुके हैं। इस विषय पर प्रायः 50 पत्र-पत्रिकाएं लेख और विज्ञापन छापती है।

पाश्चात्य देशों में ‘दी सेक्स बुक’ की 30 लाख प्रतियाँ पिछले ही वर्ष बिकी हैं। जर्मनी के लूथरिन युवा केन्द्रों ने इसे अपनी पाठ्य-पुस्तक बनाया है। जे0 हरवले ने इसका अमेरिका संस्करण तैयार किया गया है और विलमैक्स ब्राइड ने इसे चित्रों से सजाया है जिसमें रतिक्रिया का प्रत्यक्ष चित्रण किया गया है और समलिंगी मैथुन एवं आत्म-रति को निरापद बताया गया है। कामोपभोग को अधिक समय तक-अधिकाधिक उत्साहवर्धक अधिक कौतुक कौतूहलपूर्ण कैसे बनाया जा सकता है यही सुविस्तृत शिक्षण इन पुस्तकों में है। वे यह भी कहते हैं, यौनाचार को समस्त कानूनी और सामाजिक बन्धनों से हटाकर उसे अन्न, जल, वायु की तरह स्वच्छन्द उपभोग की प्रक्रिया बना दिया जाना चाहिए।

यही बात स्वादिष्ट व्यंजनों के आहार से जिह्वा की स्वाद तृप्ति के बारे में कही जा रही है। प्रकृति के अनुरूप आहार-विहार के आचरण को दकियानूसी बताया जा रहा है और आहार-विहार को प्रत्येक प्रतिबन्ध से मुक्त, मात्र प्रसन्नता वृद्धि के लिए प्रयुक्त करने की बात का जोरों से समर्थन हो रहा है। साथ ही साथ इस उद्धत उच्छृंखलता के दुखद परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

अमेरिका की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य समिति की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उस देश में 17 में से 1 व्यक्ति मानसिक रोगों से पीड़ित है। इनमें से आधे अस्पतालों में पड़ रहते हैं और आधे अपने घरों में ही सनकते रहते हैं। दाँतों की खराबी के सम्बन्ध में तो स्थिति और भी अधिक दयनीय है प्रायः आधी जनता के दाँत खराब है। इस संकट के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मानसिक रुग्णता और दाँतों की खराबी का कारण है, अमेरिकनों की आर्थिक समृद्धि। जिसका सही उपयोग न जानने के कारण वे ठूँस-ठूँस कर खाते हैं- भरपेट शराब पीते हैं और अन्धाधुन्ध दवाइयाँ खाते हैं।

अमेरिका में 3 करोड़ 60 लाख मानसिक तनाव के अभ्यस्त रोगी हैं। उन्हें निद्रा लाने एवं तनाव घटाने के लिए मनःशान्ति प्रदायक नशीली गोलियाँ खानी पड़ती हैं। इस प्रकार की 50 गोलियों की कीमत प्रायः 30 रुपये के बराबर होती है। यह गोलियाँ हर दिन कई-कई खानी पड़ती हैं अस्तु उन पर उस देश में प्रायः 1 अरब रुपया हर साल खर्च होता है। स्वार्थपूर्ण व्यक्तिवाद और अनियन्त्रित इन्द्रिय भोगों के फल आर्थिक बर्बादी, मानसिक असन्तुलन और असामाजिक एकाकी जीवन के रूप में सामने आना ही चाहिए सो क्रमशः आता भी जा रहा है।

अमेरिकी जन- गणना की रिपोर्ट है कि पिछले दस वर्षों में तलाकों की संख्या 80 प्रतिशत अधिक बढ़ गई है। इस वर्ष पूर्व हर वर्ष प्रायः चार लाख तलाक स्वीकार होते थे, पर अब उनकी संख्या सात लाख से भी अधिक बढ़ गई है। परिस्थितियों को देखते हुए यह अनुमान लगाया जाता है कि अगले इस वर्ष में यह वृद्धि अब की अपेक्षा दूनी गति से बढ़ जायगी।

अमेरिका ही कोई अपवाद नहीं है। महामारी की छूत संसार के हर देश को लग गई है। जो जितना समृद्ध, शिथिल और साधन सम्पन्न है वह उसी अनुपात से सुखोपभोग के उन्मादी आवेश में उसी क्रम से अग्रसर हो रहा है। अमेरिका की चर्चा तो इसलिए बार-बार हो जाता है कि वहाँ के बुद्धिजीवी अपने देश की हर भली-बुरी स्थिति


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