अपनों से अपनी बात

January 1975

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अखण्ड-ज्योति इस अंक के साथ अपने जीवन के 37 वर्ष समाप्त करके 38वें वर्ष में प्रवेश करती है। अपने इस छोटे से जीवन काल पर उसे गर्व है। मनुष्य शरीर के लिए जिस प्रकार अन्न-जल की आवश्यकता है उसी प्रकार मानवी चेतना को सजीव रखने के लिए उत्कृष्ट चिन्तन और आदर्श कर्तव्य के लिए सक्षम बनाने वाले तत्व चिन्तन की आवश्यकता है। विषाक्त अन्न-जल से शरीर, दुर्बल, रुग्ण होता है और अकाल में ही काल कवलित हो जाता है विकृत दृष्टिकोण से मनुष्य में दुर्भावनायें बढ़ती हैं-दुष्प्रवृत्तियाँ पनपती हैं। वह अनेक आधि−व्याधियों से ग्रसित होकर अपने और अपने समाज के लिए भार बन जाता है। इस विपन्नता से मानवी चेतना को उबारना अपने स्थान पर अति महत्वपूर्ण है। इसे अन्न-जल जुटाने से भी अधिक आवश्यक माना जा सकता है। अखण्ड-ज्योति ने अपने अद्यावधि जीवन काल में ऐसे आलोक का निर्माण किया है जिसके सहारे जन मानस को ऊँचा उठने और बढ़ने की प्रेरणा मिले। सही दिशा में-पूरी कर्तव्य निष्ठा और अनवरत श्रम करने वालों को जो सन्तोष एवं गर्व होना चाहिए, वह अखण्ड-ज्योति को भी है।

अखण्ड-ज्योति वाचन-विनोद की सामग्री जुटाने वाला छपे कागजों का पुलिंदा नहीं रही। उसने जन जीवन में प्राण फूँकने की आवश्यकता पूरी करने के लिए ही अपने समस्त प्रयासों को जुटाये रखा है। उसका परिणाम सामने है। एक लाख से ऊपर नव युग की संरचना में संलग्न कर्मठ युग सैनिकों के रूप में अपना परिवार कुछ कर गुजरने के लिए कमर बाँध कर कर्म क्षेत्र में खड़ा है। राजनैतिक स्वतन्त्रता के बाद लोगों का ध्यान अर्थ समृद्धि की ओर तो गया पर यह भुला दिया गया कि एक सहस्राब्दी से भारत जिन कारणों से दुर्दशा ग्रस्त रहा है, उनको हटाया जाना भी आवश्यक है। राजनैतिक क्रान्ति के उपरान्त अपने देश में बौद्धिक क्रान्ति की, नैतिक क्राँति की और सामाजिक क्रान्ति की अनिवार्य आवश्यकता समझी जानी चाहिए थी। क्योंकि इन्हीं क्षेत्रों के पिछड़ेपन ने हमें लम्बे समय तक दुर्दशा ग्रस्त रखा और आज दयनीय परिस्थितियों में ला पटका। इन क्षेत्रों की विकृतियों के रहते हम न राजनैतिक स्वाधीनता का पूरा लाभ उठा सकते हैं और न आर्थिक समृद्धि का।

नए वर्ष का नये प्रयास के लिए आमन्त्रण

अखण्ड-ज्योति का कार्य यों लेखन और प्रकाशन के माध्यम से आरम्भ हुआ पर उतने तक सीमित नहीं रहा। पाठकों ने प्रेरणा ग्रहण की-वे बदलें-और दूसरों को बदलने वाले प्रचारात्मक और संघर्षात्मक शत सूत्री कार्यक्रमों में संलग्न हो गये। व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण का सुविस्तृत सेवा क्षेत्र सामने पड़ा है। सत्ता, सम्मान, पद और ख्याति के भूखे लोग वहाँ दौड़ते हैं जहाँ उन्हें यह छोटी चीजें जल्दी और बड़ी मात्रा में मिल सकें। नींव का पत्थर बन कर मानवी गरिमा का भवन खड़ा करना कठिन काम है। इस कर्म क्षेत्र में उतरने के लिए किसी को साहस नहीं हो रहा था। प्रसन्नता की बात है कि अखण्ड-ज्योति परिवार ने उस महती आवश्यकता को पूरा करने में एक अनोखी भूमिका निबाही। नव युग के अवतरण में संलग्न कर्मवीर युग सैनिकों की एक सुदृढ़ सेना खड़ी करदी। उसके क्रिया-कलापों ने समूचे देश को, जन-मानस को जिस तत्परता के साथ झकझोरा अपने उस परिवार पर अखण्ड-ज्योति को सन्तोष एवं गर्व अनुभव करने का पूरा अधिकार है।

हमने मंजिल का एक पड़ाव पूरा कर लिया। अभी लक्ष्य दूर है। इसलिए कूच को पूरे उत्साह के साथ जारी रखना है। कभी अखण्ड-ज्योति एक प्रकाशन था-फिर एक मिशन बना, अब वह युगान्तर की अभिनव भूमिका का निर्वाह करने में संलग्न एक सुगठित परिवार है। अब हमें अखण्ड-ज्योति शब्द का प्रयोग युग सैनिक के संघबद्ध सैन्य दल के रूप में ही करना चाहिए। हमारी यात्रा तब तक अनवरत गति से चलती ही रहेगी जब तक मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता।

अखण्ड-ज्योति मिशन का जन्म दिन बसन्त पंचमी है। यह अपने परिवार का सबसे बड़ा प्रेरक पर्व है। एक-एक करके अनेकों महत्वपूर्ण कदम इसी शुभ दिन से आरम्भ करते रहे हैं। इस बार उस परम्परा का निर्वाह हमें दूने उत्साह के साथ करना है। इस बार 16 फरवरी को बसन्त पर्व है। उस दिन संयोगवश रविवार भी है। रविवार को आमतौर से सरकारी छुट्टी रहती है। इस सुविधा के कारण वह दिन प्रभातफेरी, सामूहिक गायत्री जप, हवन, संगीत, प्रवचन, दीप दान, श्रद्धांजलि समर्पण जैसे कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न किया जा सकता है। सामूहिक रूप से मिल-जुल कर और व्यक्तिगत रूप से अपने-अपने घरों में जहाँ जो कुछ सम्भव हो सके किसी न किसी रूप में हर्षोत्सव का आयोजन किया जाना चाहिए। इससे उत्साह और उल्लास की वृद्धि होगी। अपने और सम्मिलित होने वालों के मन में एक उमंग उत्पन्न होती है और उसे अभीष्ट लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुछ कर गुजरने में प्रयुक्त किया जा सकता है। अपने परिवार ने बसन्त पर्व को अपना सबसे बड़ा भाव-त्यौहार माना है। इस मान्यता में शिथिलता न आने पावे इसलिए अखण्ड-ज्योति के प्रत्येक सदस्य को इस दिशा में कुछ तैयारी अभी से आरम्भ कर देनी चाहिए। विचारशीलों को इस आयोजन में सम्मिलित करने और मिशन के उद्देश्यों, कार्यक्रमों और अब तक जो हो चुका है, आगे जो होने वाला है उसकी रूप-रेखा से सर्व साधारण को परिचित कराया जाना चाहिए। इसके लिए बसन्त पर्व का अवसर तो अनिवार्य रूप से प्रयुक्त होना चाहिए।

यह तथ्य कभी भी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि अभिनव चेतना के प्राण फूँकने में अखण्ड-ज्योति ने मिशन के मेरुदण्ड की भूमिका निबाही है। आगे भी उसके माध्यम से बहुत कुछ होना है। उसके पाठक कुछ ही दिन में आत्म-निर्माण और समाज-निर्माण की भूमिका निबाहने लगते हैं। अस्तु पत्रिका के सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए बसन्त पर्व पर विशेष प्रयत्न किया जाना चाहिए। इस दिशा में किया गया प्रयत्न मिशन के प्रति सच्ची और सार्थक भाव भरी श्रद्धांजलि हो सकती है। टोलियाँ बनाकर यदि इस प्रयास के लिए निकला जाय तो पिछले वर्ष की तुलना में अगले वर्ष की ग्राहक संख्या अवश्य ही अधिक हो सकती है। इस वर्ष तो यह प्रयत्न इसलिए और भी अधिक आवश्यक हो गया है कि कागज, छपाई, स्याही की कमर तोड़ महंगाई ने पत्रिका का चन्दा ड्यौढ़ा कर देने के लिए बाध्य कर दिया है। यों कुछ पृष्ठ भी बढ़ा दिये गये हैं पर इससे क्या-पाठकों की जेब से तो अधिक ही जायगा। इस घोर महँगाई के जमाने में लोगों को अपने जीवन निर्वाह के साधन जुटाने कठिन पड़ रहें हैं। ऐसी दशा में पत्रिका का बढ़ा हुआ चन्दा अखर सकता है और ग्राहक संख्या घट सकती है। यदि ऐसा होता है तो मिशन के प्रसार-विस्तार को गहरा धक्का लगेगा। यह स्थिति न आने पावे इसलिए इस वर्ष तो पत्रिका के ग्राहक बनाये रखने और बढ़ाने के लिए और भी अधिक ध्यान रखा जाना चाहिए। इस श्रद्धांजलि को प्रतिष्ठा का प्रतिस्पर्धा का प्रश्न बनाया जाना चाहिए।

इस बसन्त पर्व से एक कार्य और हाथ में लिया जाना चाहिए कि प्रत्येक अखण्ड-ज्योति सदस्य अपनी पत्रिका को कम से कम दस व्यक्तियों को पढ़ाया करे। “एक से दस” के रूप में विकसित होने का यह सहज किन्तु सर्वोत्तम तरीका है। अपने परिवार, संपर्क एवं प्रभाव क्षेत्र में जिन्हें भी विचारशील समझा जाय उनके पास पत्रिका पहुँचाने और वापिस लाने का क्रम चलना ही चाहिए। थोड़ी व्यवहार कुशलता का परिचय दिया जाय तो हर अखण्ड-ज्योति सदस्य के पीछे दस अनुपाठक हो सकते हैं और आज यदि उसके पाठक एक लाख हो तो अगले महीने से ही उनकी संख्या बढ़कर दस लाख हो सकती है। देखने में छोटा किन्तु व्यवहार में यह अत्यधिक प्रभावी प्रयास है। इस बसन्त पर्व पर ग्राहक बढ़ाने के प्रयास के साथ-साथ प्रत्येक सदस्य को दस अनुपाठक बनाने का भी संकल्प लेकर चलना चाहिए।

हमारी इच्छा यह है कि अखण्ड-ज्योति के सभी भावनाशील सदस्यों को अगले दिनों हमारे व्यक्तिगत संपर्क सान्निध्य में रहकर कुछ सीखने और सिखाने का आदान-प्रदान चलता चाहिए। शान्ति-कुंज में हमें कितने दिन रहना पड़ेगा और बिस्तर कभी भी खाली करना पड़ सकता है, ऐसी दशा में फिर कभी की प्रतीक्षा न करके ‘कल नहीं आज’ की नीति अपनाई जानी चाहिए और स्वजनों को कुछ समय हमारे पास रहने की तैयारी करनी चाहिए। यों प्रत्यक्षतः प्रवचन सुनने और अमुक साधन करने भर की बात प्रतीत होती है, पर परोक्ष रूप से देखा जा सकता है कि उसमें अदृश्य किन्तु अति महत्वपूर्ण आदान-प्रदान की विशिष्टता जुड़ी हुई है। साधनाएँ तो घर पर भी की जा सकती हैं, प्रवचन अखण्ड-ज्योति में छापे जा सकते हैं। वैसे जो कहा बताया जा चुका है, उसके अतिरिक्त कोई नई बात है भी नहीं, पर जिस उद्देश्य के लिए शान्ति-कुंज ने परिजनों को आमन्त्रित किया है उसमें विशिष्ठ एक सूक्ष्म आदान-प्रदान की बात मुख्य है जिसके लिए सान्निध्य आवश्यक हो जाता है। गर्मी पाने के लिए आग के समीप बैठना पड़ता है। प्राणों का आदान-प्रदान भी सान्निध्य की अपेक्षा करता है।

नवम्बर 74 की अखण्ड-ज्योति में शान्ति-कुंज में इन दिनों चल रहे शिक्षण सत्रों का विस्तृत विवरण छपा है। उस अंक को परिजन अपने लिये व्यक्तिगत निमन्त्रण समझें और देखें कि वे अपने लिए किस सत्र को अधिक उपयोगी समझते हैं और कब पहुँचने की अनुकूलता अनुभव करते हैं। जिन्हें जो अनुकूल प्रतीत हो उसमें आने की तैयारी करनी चाहिए। जिन्हें शिक्षण और सान्निध्य उच्च उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक प्रतीत होता हो उन्हीं का आना सही है। मात्र दर्शन या आशीर्वाद के लिए आने की काई उपयोगिता नहीं। दर्शन छपे फोटो से, आशीर्वाद पत्र से मिल सकता है। इन छोटे कामों के लिए किसी को किराया-भाड़ा और समय खर्च करने की आवश्यकता नहीं है। इन प्रशिक्षण सत्रों में केवल उन्हीं को आमंत्रित किया गया है जो लगातार अखण्ड-ज्योति पढ़ते रहे हैं और हमारे मन्तव्यों को गहराई तक समझ चुके हैं। अशिक्षित, अपरिचित लोग पर्यटन और प्रशिक्षण की एक म्यान में दो तलवारें ठूँसते हैं तो वे दुहरा लाभ उठाने की अपेक्षा दोनों ही आनन्द खो बैठते हैं। स्त्री, बच्चे, मित्र, पड़ोसी, सम्बन्धी लेकर इन अति महत्वपूर्ण सत्रों में चल पड़ना अवाँछनीय भावुकता है, इससे सत्रों का स्तर गिरता है और हमारी शिक्षण योजना का उपहास बनता है। इसलिए इन सत्रों में उच्च उद्देश्यों से प्रेरित होकर ही आना चाहिए। दर्शन, आशीर्वाद, पर्यटन जैसे छोटे प्रयोजनों के साथ शिक्षण को मिलाकर गड़बड़ी पैदा नहीं करनी चाहिए।

यह अंक जिन दिनों पाठकों के हाथ में पहुँचेगा शान्ति-कुंज में कनिष्ठ वानप्रस्थ चल रहा होगा। दो महीने का अवकाश लेकर अपने कर्मठ कार्यकर्ता इस शिक्षण में सम्मिलित होते हैं उन्हें एक महीने शान्ति-कुंज में सैद्धांतिक शिक्षा प्राप्त करनी होती है और पीछे एक महीने के लिये शाखाओं में संलग्न, शिविर संचालन एवं प्रचार कार्य के लिए जाना पड़ता है। यह सत्र 20 नवम्बर से चल रहे हैं। अब अंतिम सत्र 20 जनवरी से 20 फरवरी तक हरिद्वार में चलेगा और 20 मार्च तक कार्यक्षेत्र में रहकर दो महीने की अवधि पूरी करनी पड़ेगी। इसके बाद यह अवसर एक वर्ष बाद आयेगा जिन्हें अवकाश हो 20 जनवरी से आरम्भ होने वाले सत्र के लिए स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं।

इसके बाद दस-दस दिन के जीवन-साधना सत्र 20 फरवरी से 12 मई तक चलेंगे। इसके बाद वह शृंखला 1 जुलाई से आरंभ होगी। इसमें तीन शिक्षाएँ जुड़ी हुई हैं। पाँच-पाँच दिन के प्रत्यावर्तन सत्रों में जो अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनन्दमय कोश जागृत करने की पंचकोशी उच्चस्तरीय गायत्री साधना सिखाई जाती थी, उसका पूरा समावेश है। जपयोग, विन्दुयोग, लययोग, प्राणयोग, ब्रह्मयोग की सरल किन्तु आलोक भरी उस साधना को जोड़ दिया गया है जिसका लाभ पिछले वर्ष हजारों निष्ठावान साधक उठा चुके हैं और हजारों के आवेदन-पत्र पड़े हुए हैं। दूसरा आधार इस दस दिवसीय शिक्षा का यह है कि जीवन जीने की कला, संजीवनी विद्या के सभी महत्वपूर्ण पक्ष समझा दिये जायें और यह तथ्य हृदयंगम कराया जाय कि अपने गुण, कर्म, स्वभाव, दृष्टिकोण एवं कर्तव्य में क्या परिवर्तन करके सामने पड़ी जटिल समस्याओं को सुलझाया जाना और समृद्धियों, विभूतियों से भरी प्रगति को प्राप्त कर सकना कैसे सम्भव हो सकता है। निरर्थक बने हुए इसी जीवन को सार्थक कैसे बनाया जा सकता है। कहना न होगा कि व्यावहारिक अध्यात्म का नाम ही संजीवनी विद्या रहा है। इसे अपनाकर हम हलका-फुलका और हँसी-खुशी का समुन्नत जीवन जी सकते हैं। तीसरा आधार जीवन साधना सत्र का है- संभाषण कला का अभ्यास। निजी जीवन में प्रभावशाली वार्तालाप का क्रम जनसाधारण के सामने विचार विनिमय के सिद्धांत-गोष्ठियों और सभाओं में प्रवचन करने की क्षमता का विकास। आमतौर से लोग संकोच वश उन विचारों को दूसरों के सामने व्यक्त नहीं कर पाते जिन्हें कहना आवश्यक भी है और उपयोगी भी। इस संकोचशीलता को हटाने और निर्भीक अभिव्यक्ति का अभ्यास भी इस दस दिवसीय साधना का एक अंग है।

अखण्ड ज्योति परिवार के विचारशील व्यक्तियों को इन सत्रों में सम्मिलित होने की तैयारी करनी चाहिए। प्रत्यावर्तन सत्रों की तुलना में समय तो दूना अवश्य लगेगा पर इस परिष्कृत प्रशिक्षण का लाभ भी कई गुना है। जो लोग प्रत्यावर्तन में सम्मिलित हो चुके हैं उन्हें भी इनमें सम्मिलित होने की स्वीकृति मिल सकती है। जिनने पाँच दिवसीय प्रत्यावर्तन सत्रों के लिए आवेदन पत्र दे रखे हैं वे उन्हें रद्द समझें और अब जीवन साधना सत्र ही चलेंगे यह मानकर दस दिन का अवकाश निकालने और उसमें सम्मिलित होने के आवेदन पत्र नये सिरे से भेजें।

गर्मी की छुट्टियों में ग्रेजुएट स्तर के अध्यापकों के लिए पन्द्रह-पन्द्रह दिन के तीन सत्र लगाये जाने हैं। पहला 14 मई से 28 मई तक। दूसरा 29 मई से 12 जून तक। तीसरा 13 जून से 27 जून तक। पूर्व सूचना तीन सप्ताह के दो सत्रों की छपी थी पर अब अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने की दृष्टि से वह अवधि तीन सप्ताह से घटाकर पन्द्रह दिन कर दी गई है। इनमें अध्यापकों के अपने पद के अनुरूप गरिमा को विकसित करना-स्कूली पाठ्य क्रम के साथ-साथ छात्रों को विवेकशीलता चरित्र निष्ठा एवं समाज सेवा के भाव भरते रहने की विशिष्ठ कुशलता की अभिनव विधि-व्यवस्था सिखाई जायगी। आशा की जानी चाहिए कि इस जानकारी के आधार पर शिक्षक और छात्र दोनों ही अपने महान उद्देश्य की पूर्ति में बहुत हद तक सफल हो सकेंगे। प्रौढ़ शिक्षा-जीवन शिक्षा की दिशा में किस प्रकार वातावरण तैयार किया जा सकता है और व्यवस्था जुटाई जा सकती है इस मार्ग दर्शन के सहारे अध्यापक अपने क्षेत्र में समाज-सेवा के एक अति महत्वपूर्ण अभियान का नेतृत्व कर सकते हैं।

इन पन्द्रह दिनों में लेखन शिक्षा की विशेष कक्षा जुड़ी रहेगी। पत्र पत्रिकाओं के लिए सा गर्भित लेख लिखने और उन्हें प्रकाशित करा सकने में सफलता प्रदान करने वाले वे सभी तथ्य बता दिये जाते हैं जो आमतौर से सर्वविदित नहीं हैं किन्तु उन्हें जाने बिना उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी सफल लेखक नहीं बन पाते। पुस्तक लेखन अपने आप में एक विशिष्ठ कला है। उसे अनुभवी ही जानते हैं। प्रकाशन व्यवसाय में प्रवेश करने की-प्रेस चला कर आजीविका कमाने की-स्थानीय चार पन्ने वाले साप्ताहिक पत्र चलाने की कितनी ही योजनाओं का मार्ग-दर्शन भी इसी पन्द्रह दिवसीय शिक्षण योजना से जोड़ दिया गया है। जिस प्रकार जीवन साधना सत्रों में भाषण कला का आकर्षण समावेश है, ठीक उसी प्रकार अध्यापन सत्रों को दूसरे शब्दों में लेखन सत्र भी कह सकते हैं। आवश्यक नहीं कि स्कूलों के अध्यापक ही इसमें भाग लें अन्य व्यक्ति भी जिनका शिक्षा के सुधार ओर प्रसार में अभिरुचि है इसमें भाग ले सकते हैं पर उनकी निजी शिक्षा बहुत कम नहीं होनी चाहिए।

इन्हीं दिनों तीन-तीन महीने के महिला जागरण सत्र चल रहे हैं। यह अंक पहुँचने तक जनवरी से मार्च तक का सत्र चला रहा होगा। अब अगला सत्र 1 अप्रैल से 30 जून तक का चलेगा। इनमें आठवें दर्जे से अधिक पढ़ीं महिलाएँ एवं वयस्क कन्याओं को प्रवेश मिल सकेगा। नारी जीवन को सफल बनाने वाले प्रायः सभी सिद्धान्त इन सत्रों में सिखाये जाते हैं। स्वास्थ्य संरक्षण, शिशु पालन, घर की स्वच्छता और व्यवस्था, अर्थ सन्तुलन में नारी का योगदान, संयुक्त परिवार को सुदृढ़ रखने के आधार, आनन्द, उल्लास एवं सहयोग, सद्भाव का वातावरण बनाये रहने के सूत्र, विवाहित जीवन की मधुरता, सफलता और सार्थकता के रहस्य, परिवार में धार्मिकता का समावेश, कुरीतियों और मूढ़ मान्यताओं के दुष्परिणाम आदि अनेकों सारगर्भित शिक्षायें इन सत्रों में दी जाती हैं जिनके आधार पर घर-परिवार में स्वर्गीय परिस्थितियों का निर्माण किया जा सकता है।

सामान्य संगीत शिक्षा, की व्यवस्था रखी गई है। सिलाई, कई तरह के खिलौने बनाना, डबल रोटी, बिस्किट आदि बनाना, साबुन, मोमबत्ती, सुगन्धित तेल, शर्बत आदि बनाना, शाक वाटिका, वस्तुओं की टूट-फूट और मरम्मत जैसे गृह-उद्योगों का समावेश हैं। लाठी चलाना, फौजी शिक्षा इसी बीच दे दी जाती हैं धार्मिक शिक्षा में हवन कराना- पुंसवन, नामकरण, अन्न प्राशन, विद्यारम्भ, मुण्डन, जन्म दिन, विवाह दिन, इन संस्कारों का कराना, रामायण-कथा, सत्य नारायण-कथा एवं प्रवचन करने का अभ्यास कराया जाता है। अपने यहाँ एक महिला प्रौढ़ विद्यालय वे चला सकें और स्थानीय महिला संगठन के महिला जागरण का नेतृत्व अपने हाथ में ले सकें, इतनी प्रवीणता इन तीन महीनों की स्वल्प अवधि में उन्हें प्राप्त हो जाती है।

अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों को अपने घर की एक महिला इस प्रशिक्षण के लिए भेजनी चाहिए ताकि वे उनके कन्धे से कन्धा मिला कर नव-निर्माण में योगदान दे सकें और महिला जागरण की मुहीम सँभाल सकें। अपने घर-परिवार का सुनियोजित पुनर्निर्माण करने की योग्यता के सम्पादन का प्रथम और प्रत्यक्ष लाभ तो है ही। बच्चों समेत या बीमार महिलाओं को प्रवेश नहीं मिलता।

इन सत्रों में प्रवेश पाने के लिये अखण्ड-ज्योति परिवार के सभी प्रबुद्ध नर-नारियों को आग्रह पूर्वक आमन्त्रित किया जा रहा है। जिनकी स्थिति इनमें सम्मिलित होने की है उन्हें (1) अपना पूरा नाम (2) पूरा पता (3) शिक्षा (4) जन्मतिथि (5) व्यवसाय (6) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने का आश्वासन (7) शिक्षा काल में निर्व्यसन, अनुशासन प्रिय एवं सज्जनोचित शील, सदाचार बरतने की घोषणा (8) जिस महीने के जिस सत्र में सम्मिलित होना हो उसका उल्लेख (9) अखण्ड-ज्योति के नियमित पाठक कब से रहे हैं इसकी जानकारी (10)जीवन के महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय घटनाक्रमों का विवरण इन दस बातों की पूरी जानकारी समेत आवेदन पत्र भेजना चाहिये और स्वीकृति प्राप्त होने के पश्चात ही आने की तैयारी करनी चाहिये।

शान्ति कुँज की युगान्तर चेतना प्रक्रिया अगले दिनों अधिक विस्तृत और व्यवस्थित शिक्षा योजना का विस्तार करेगी। इस प्रयोजन के लिये वर्तमान इमारत छोटी पड़ती है। नया निर्माण आरम्भ कराया जा रहा है। यदि अर्थ प्रबन्ध की अड़चन हल हो सकी तो आशा की जानी चाहिये कि नये 40 कमरे जून 75 तक बनकर तैयार हो जायेंगे। तब 1 जुलाई से नव-निर्माण के लिये युग सैनिकों को प्रशिक्षित करने की योजना को अधिक विस्तृत एवं व्यवस्थित बनाया जा सकेगा।

अखण्ड ज्योति का 28वाँ बसन्त पर्व आगामी 16 फरवरी को आ रही है उस अवसर पर हमें (1) सामयिक समारोह, (2) ग्राहकों की वृद्धि का प्रयत्न (3) पत्रिका दस को पढ़ाते रहने का संकल्प (4) शाँति कुज में चल रहे प्रशिक्षित में सम्मिलित होने की तैयारी यह चार प्रयत्न करने के लिये अभी से कटिबद्ध होना चाहिये। मिशन के जन्म दिन का यह पावन पर्व इस प्रकार मनाया जाना चाहिये कि उससे निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में उत्साहवर्धक सहयोग मिल सकें।


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