इंग्लैण्ड के सुप्रसिद्ध अध्यात्मवादी और अतीन्द्रिय विज्ञान के अन्वेषक प्रो0 मायर्स के समकालीन मनोविज्ञान शास्त्री विलयम जैम्स ने मायर्स के जीवन संस्मरणों में लिखा है-वे सूक्ष्म शरीर और अतीन्द्रिय विद्या में जितने अधिक निमग्न रहने लगे, उतने ही वे सुन्दर बनते चले गये। आयु के ढलने से कुरूपता नहीं आई वरन् सौंदर्य बढ़ा। उनके चेहरे पर उत्तरोत्तर एक अलौकिक आभा दीप्तिमान होता चली गई और वे सुन्दर से सुन्दरतम बनते चले गये। मृत्यु के समय उन्हें शारीरिक कष्ट तो था, पर मन बहुत प्रसन्न था। चलते समय उन्होंने उपस्थित लोगों से निश्चिन्तता और हलके मन से कहा-मैं एक अनदेखे और अनजाने प्रदेश में सिर्फ छुट्टियाँ बिताने जा रहा हूँ।