चल तू चलता रहा एक एकाकी (kavita)

January 1975

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यदि तेरी पुकार सुनकर भी कोई पास न आये। चल तू चलता रहा एकाकी अविचल कदम बढ़ाये।

हो ऐसा दुर्भाग्य, न खुलकर बात करे यदि कोई मुख फेरे हो सबने डरकर सारी हिम्मत खोई

तो निज प्राण उलीच हृदय का राग मुक्त तू गाये। चल तू चलता रहा एकाकी अविचल कदम बढ़ाये।

बीहड़ पथ पर छोड़ अगर सब बनें पलायनवादी कोई मुड़कर भी न लखे जब तुझे समझ उन्मादी

तब भी नव पगों से पथ कंटक पिस जाये। चल तू चलता रहा एकाकी अविचल कदम बढ़ाये।

जब बरसाती रैन अंधेरी बन जाये तूफानी, घर के द्वारा बंद हो जाये मिले न ज्योति निशानी

तब सीने पर वज्रघात ले पंजर स्वयं जलाये। चल तू चलता रहा एकाकी अविचल कदम बढ़ाये।

अनुवादक -डा0 हरगोविन्द सिंह


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