भारतीय स्वतन्त्रता के अग्रगन्य सेनानी खान अब्दुल जिन्हें बादशाह खान कहा जाता है। गफ्फार खाँ उन दिनों डेरा इस्माइल खाँ की जेल में कैद थे। उन्हें सपरिश्रम कारावास की लम्बी सजा मिली थी।
बूढ़ा शरीर बीस सेर गेहूं हर दिन पीसना उनके लिए बहुत कष्ट कर था तो भी वे परिश्रम और ईमानदारी के साथ दिन भर लगे रहकर निर्धारित कार्य को पूरा कर ही लेते थे।
जेल के एक सहृदय छोटे कर्मचारी से उनका कष्ट नहीं देखा गया। हाथों में पड़े छाले और दुखते कंधे बादशाह खान को कितना कष्ट देते हैं यह उसे विदित था। सो सोचने लगा किसी प्रकार उनकी सहायता की जाय।
वह सहृदय कर्मचारी अनाज पीसने की व्यवस्था का अधिकारी था। सो उसने एक सस्ती तरकीब खोज निकाली। बीस सेर गेहूं में पन्द्रह सेर आटा और पाँच सेर गेहूं मिलाकर लाया और चुपके से चक्की चलाने लगे। पिसे हुए आटे को पीसने में आपके लिए सरलता भी रहेगी और आराम का अवसर भी मिल जायगा।
खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने उस सहृदय अधिकारी सहानुभूति के लिए गहरी कृतज्ञता प्रकट की। किन्तु पिसा हुआ आटा यह कहकर वापस कर दिया छल कपट करके शरीर को सुविधा तो मिलेगी पर आत्मा को जो कष्ट होगा और भी भारी पड़ेगा।