जिन्दगी को कलात्मक दृष्टि से जिया जाय

January 1975

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इस संसार में कितने ही प्रकार के कला-कौशल हैं। उनमें से जो जिस कला में निष्णात हो जाता है वह उस क्षेत्र में ख्याति भी पाता है और सुविधा भी। कला का आकर्षण सर्वविदित है। जो सबके पास नहीं है, किसी ने जिस विशेषता को पाया या उगाया है उस अद्भुत को देखने के लिए सामान्य जनों का आकर्षित होना स्वाभाविक है। कलाकारों को विभूति सम्पन्न माना जाता है, अस्तु उनकी ओर सर्वसाधारण का मन सहज ही खिंच जाता है।

कलाएँ अगणित हैं। गीत, वाद्य, नृत्य, अभिनय, चित्रकारी, साहित्य, काव्य, शिल्प आदि के नाम से वे प्रख्यात हैं। सरस भावुकता से इनका घना सम्बन्ध है। निष्ठुर प्रकृति और जड़ बुद्धि के लोग कलाकार नहीं हो सकते। सरसता को ही कला की जन्मदात्री माना जाता रहा है। कहना न होगा कि कलाकार अपनी उपलब्धियों पर स्वयं ही प्रमुदित रहता है और दूसरों को भी आकर्षित करता है यह दुहरी सफलता उसे भीतर और बाहर के दोनों क्षेत्रों में उत्साह प्रदान करती रहती है। इसलिये लोग न केवल कलाकारों से प्रभावित रहते हैं वरन् स्वयं भी कला का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं।

शरीर और साधनों की विशेषता पर अवलम्बित कलाओं से सम्पन्न होना उन्हीं के लिए सम्भव है जिन्हें उपयुक्त सुविधाएँ मिली हैं। किसी का कण्ठ मधुर न हो तो वह प्रयत्न करने पर भी प्रख्यात गायक नहीं बन सकता। अंगों की कोमलता और सरसता युक्त व्युत्पन्न मति जिन्हें मिली है वे नर्तक अभिनेता आदि हो सकते हैं। यही बात साहित्यकार अथवा कवि बनने के सम्बन्ध में है। कागज, कलम और स्याही के आधार पर साहित्य सृजन नहीं हो सकता। स्कूली पढ़ाई भी उसमें बहुत काम नहीं आती इसके लिए विलक्षण प्रतिभा चाहिए। भले ही वह जन्म-जात रूप से मिली हो अथवा उपयुक्त परिस्थितियाँ, अत्यन्त गहरे मनोयोग पूर्वक अनवरत साधना करके प्राप्त की गई हों। हर हालत में विशिष्ठ परिस्थितियाँ तो उपलब्ध होनी ही चाहिए।

साधन सुविधाओं का अभाव देखकर किसी को यह न मान बैठना चाहिए कि कलाकार बनने का द्वार हमारे लिए सर्वथा बन्द है। ईश्वर ने हर किसी को इसके लिए एक द्वार ऐसा खुला रखा है जो निताँत सरल है और उसमें प्रवेश करके श्रेष्ठतम कलाकारिता का श्रेय प्राप्त किया जा सकता है।

जीवन जीने की कला, संसार में दृष्टिगोचर होने वाली कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है। जिसको सही रीति से जिन्दगी जीना आ गया उसे अत्यन्त उच्चकोटि का कलाकार कहना चाहिए। वह दूसरों को प्रभावित, आकर्षित करने से लेकर अन्तःकरण को प्रमुदित करने तक के उन समस्त लाभों को कहीं अधिक मात्रा में प्राप्त करता है जो भौतिक विशेषताओं से सम्पन्न कलाकारों में से किसी-किसी को कभी-कभी या कठिनाई से ही उपलब्ध होते हैं।

करीने और सलीके की जिन्दगी जी लेना इतना बड़ा काम है जिस पर समुचित गर्व किया जा सकता है। ऐसे लोग हर दृष्टि से गौरवशाली ही माने जायेंगे। व्यक्तित्व को देवोपम विशेषताओं से सुसज्जित कर लेना इतनी बड़ी कला है कि उसके लिए समस्त संसार को श्रद्धावनत अभिनन्दन करना पड़ता है।

अपने मानवी गौरव की रक्षा के लिए सचेष्ट रहने वाले मर्यादा युक्त गतिविधियाँ अपनाते हैं और चरित्रवान प्रामाणिक लोगों की पंक्ति में बैठने का प्रयत्न करते हैं। बड़प्पन नहीं, उनका लक्ष्य-आदर्श होता है। उन्हें अमीरी नहीं महानता प्यारी लगती है। सामान्य जन जहाँ प्रचुर भौतिक साधनों द्वारा वर्चस्व और ऐश्वर्य द्वारा विलासिता एवं अहंता की पूर्ति करने में संलग्न रहते हैं और सोचते हैं कि इस दिशा में जितनी अधिक सफलता प्राप्त की जा सकेगी उतना ही मान गौरव बढ़ेगा। इसके विपरीत आदर्शवादी यह सोचता है कि अपने व्यक्तित्व को श्रेष्ठ सज्जनों जैसा विनिर्मित करके लोगों के सम्मुख अनुकरणीय आदर्शों का प्रकाश दिया जा सकता है और उन्हें ऊँचा उठाने में सहायता कर सकने वाला मार्ग-दर्शन किया जा सकता है। जो ऐसा कर सके उसे अपने आपको गौरवास्पद अनुभव करने का पूरा अधिकार है। इस आत्म-गौरव की अनुभूति जिसे निरन्तर होती रहे, उसे ऐसे आन्तरिक आनन्द की उपलब्धि होती रहेगी जिसके आगे भौतिक क्षेत्र की समस्त कलाओं एवं विशेषताओं का सन्तोष हलका और उथला प्रतीत होता रहे।

बालकों जैसा स्वच्छ हृदय छल, कपट से सर्वथा रिक्त सरल व्यवहार सौम्य सादगी से भरी सरलता-विनम्र सज्जनता-निर्दोष क्रिया-कलाप-मधुरता और ममता से भरे वचन व्यवहार किसी भी व्यक्तित्व को इतना सुकोमल बना देते हैं कि उसका आन्तरिक सौंदर्य देखते-देखते दर्शकों की आंखें ही तृप्त नहीं ऐसे पारिजात पुष्प पर न जाने कितने मधु लोलुप कीट-पतंग मंडराते रहते हैं और उसके पराग से लाभान्वित होकर धन्य बनते रहते हैं।

संयम की शोभा देखते ही बनती है। इन्द्रिय संयम की महिमा पर जिसे विश्वास है, उसकी आँखों का तेज, वाणी का प्रभाव, चेहरे का ओज, संपर्क में आने वालों को सहज ही प्रभावित करेगा। बुद्धि की प्रखरता और विवेकशील दूरदर्शिता की कमी न रहेगी। वासना और तृष्णा पर नियंत्रण करने वाला व्यक्ति सहज ही इतने साधन और अवसर प्राप्त कर लेता है जिससे महानता के उच्च-शिखर पर चढ़ सकना तनिक भी कष्टकर न रहकर अत्यन्त सरल बन जाय। ऐसे लोग शरीर और मन के दोनों ही क्षेत्रों में समुचित समर्थता से सम्पन्न रहते हैं। न तो वे रुग्ण रहते हैं और न दीन दुर्बल। उन्हें कभी भी कातर स्थिति में नहीं देखा जा सकता है। विपत्तियाँ भी उनके धैर्य और साहस को चुनौती नहीं दे सकतीं।

अपने साधनों और उपकरणों को सम्भालकर स्वच्छता और व्यवस्था के साथ रख सकना कलात्मक दृष्टिकोण की सहज उपज है। जीवन जीने की कला पर जिसे आस्था है उसके शरीर को, वस्त्रों को, घर को, सामान को गन्दा, कुरूप एवं अव्यवस्थित नहीं देखा जा सकता। कलाकार सौंदर्य का उपासना करता है। सौंदर्य का अर्थ सज-धज, टीपटाप, तड़क-भड़क का फूहड़ प्रदर्शन करते फिरना नहीं वरन् यह है कि हर वस्तु को अपना सहज सौंदर्य यथा स्थान-यथा स्थिति में रहते हुए प्रकट करने का अवसर मिले। करीने से रखे हुए बर्तन-कपड़े, पुस्तकें एवं अन्यान्य उपकरण सहज ही शोभायमान प्रतीत होंगे और यह घोषणा करेंगे कि इन वस्तुओं का उपयोग करने वाले में कला-संवेदन जीवित है।

शरीर को मैला-कुचैला, कपड़ों को फटा-टूटा रखना न तो सादगी है और न ब्रह्मज्ञान। यह बेढंगापन आदमी के आलसी और प्रमादी होने का विज्ञापन है। वस्तुएँ भले ही थोड़ी हों-भले ही सस्ते मोल की हों पर वे जब तक पास हैं जब तक उन्हें उतना ही सम्मान देना चाहिये जितना कि हम अपने व्यक्तित्व के लिए चाहते हैं। वस्तुओं का भी एक व्यक्तित्व है भले ही उनमें बोलने-सोचने की शक्ति न हो, पर है तो इस संसार की एक महत्वपूर्ण इकाई ही। फिर जो वस्तुएँ अपने संपर्क में है उन्हें अपनी विशेषताओं से युक्त होने का अवसर मिलेगा ही। कोयला बेचने वाले के कपड़े-फर्श आदि काले हो जाते हैं। सुगन्धकार की वस्तुओं में इत्र की ओर घासलेट बेचने वाले की दुकान में बदबू सहज ही बिखरी रहती है। जिसका व्यक्तित्व अस्त-व्यस्तता ने कुरूप बनाकर रख दिया है उसकी हर चीज गंदगी और फूहड़पन से लदी होगी। बेतरतीब घर, कपड़े, शरीर तथा सामान को देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि इस व्यक्ति का स्तर क्या होना चाहिए।

जीवन जीने की कला में सौंदर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। शरीर की बनावट कैसी है यह अपने हाथ की बात नहीं। प्रकृति प्रदत्त आकृति को शिरोधार्य करना ही पड़ेगा। किन्तु यदि अपना शरीर कुरूप कहे जाने की श्रेणी में आता हो तो भी निराश होने की कोई बात नहीं। हँसने मुस्कराने की-प्रसन्न रहने की आदत डालकर चेहरे को इतना सुन्दर बनाया जा सकता है कि कोई दर्शक मन्त्र मुग्ध हुए बिना न रह सके। दाँत चाहे कितने ही भद्दे क्यों न हों जब वे खिलते हों तो मोतियों की लड़ी को सजाते हैं। मुसकराहट चेहरे का जादू है यदि उसमें व्यंग अहंकार या कुटिलता का विष घुला हुआ न हो। आन्तरिक हलकेपन का-सन्तोष का-सहज सौम्यता का पुट जिसमें लगा हुआ हो वह मुसकराहट सचमुच एक उच्च-कोटि की कला है। हँस सकने और हँसा सकने वाला कलाकार सदा ही लोगों के ऊपर अपनी गहरी छाप छोड़ता रहेगा।

समय का पालन-नियमित दिनचर्या-उद्देश्यपूर्ण क्रिया-कलाप जैसे सद्गुणों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति निर्दिष्ट क्रिया-कलाप में अपने को व्यस्त रख सकता है और निर्धारित लक्ष्य में आशातीत सफलता प्राप्त कर सकता है। असफलताओं का प्रमुख कारण एक ही रहता है पूरे मनोयोग और पूरी श्रम-साधना का समन्वय न होना। यह असंबद्धता उन्हीं में पाई जाती है जो अपनी दिनचर्या को व्यस्त एवं व्यवस्थित रखने का प्रयत्न नहीं करते। जब जैसे जी आया जब वैसे समय गुजार दिया- जब जैसा भाया वैसा कर लिया की बेढंगी आदत जिसके पीछे लग गई वह कितना ही सुयोग्य क्यों न हो हर क्षेत्र में असफल रहेगा और दुर्भाग्य का रोना रोयेगा। समय और मन का समन्वय और नियमित क्रम निर्धारण की बात कहने-सुनने में तुच्छ जैसी लगती है, पर व्यवहार में लाने पर प्रतीत होगा कि यह ऐसा योगसाधन है जिसके फलस्वरूप पग-पग पर चमत्कारी वरदान उपलब्ध होते हैं।

आय-व्यय सन्तुलन मिलाना-उपयोगी मदों को उभारना और अनावश्यक खर्चों को काटना यह अर्थ सौंदर्य जिसे आता है वह न तो कभी ऋणी बनता है और न दरिद्री कहलाता है। आजीविका बढ़ाने के प्रयत्न जिस हद तक सफल हों उसी हद तक अपने निर्वाह का स्तर रखा जाय तो कम आमदनी में भी शान्ति और शान के साथ रहा जा सकता है। कितने ही अच्छी आमदनी वाले व्यक्ति अपव्यय के आदी होते हैं और अनावश्यक मदों में पैसे को उड़ाकर आवश्यक खर्च के लिए रोते-झींकते हैं। इसे आर्थिक फूहड़पन कहना चाहिए। इस बुरी आदत का परिणाम दरिद्रता तक ही सीमित नहीं रहता वरन् अवाँछनीय आजीविका कमाने की विवशता के रूप में भी सामने आता है। अपव्ययी नीतिवान नहीं रह सकता। जो नीतिवान नहीं उसकी अप्रामाणिकता उसे हर किसी की आँख में तिरस्कृत ही बनाये रहेगा। अमीरी का ढोंग बनाने के लिए बरता गया अपव्यय वस्तुतः परले सिरे की मूर्खता है, इस रहा पर वे ही चल सकता हैं जिन्हें कलात्मक जीवन के लिए शालीनता के समन्वय की बात का ज्ञान नहीं होता।

हम जिन्दगी जीने की कला सीखें। अपने दृष्टिकोण, चिन्तन, व्यवहार को कलात्मक बनायें। व्यवस्था का प्रत्येक क्रिया-कलाप में समावेश करें। सौंदर्यवान अपने प्रत्येक संबद्ध पदार्थ को स्वच्छ बनाये। अपने वचन और व्यवहार जीवन जिया जा सकता है। कलाकारिता का यह अति महत्वपूर्ण क्षेत्र हर किसी के सामने खुला पड़ा है-इस मार्ग पर कदम बढ़ाते हुए हममें से कोई भी सर्वोत्कृष्ट कलाकारिता की उपलब्धि का रसास्वादन कर सकता है।


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