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January 1975

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मुझे रास्ता मालूम है। वह तंग किन्तु सीधा है वह खांड़े की धार जैसा है। उस पर चलने में मुझे आनन्द आता है। जब फिसल जाता हूँ तो जी भरकर रोता हूँ। भगवान् का वचन है-कल्याण पथिक की दुर्गति नहीं होती। इस आश्वासन पर मुझे अटूट श्रद्धा है। इस श्रद्धा को गँवाऊँगा नहीं। जिस दिन काया पूर्णतः वश में आ जायगी उस दिन उस दिव्य ज्योति के दर्शन पाऊँगा, इस पर मेरा अविचल विश्वास है।

-महात्मा गाँधी

सीमित ज्ञान को असीम तक पहुँचाने की जिज्ञासा की तरह सीमित व्यक्तित्व को असीम बनाने के लिए-अपूर्णता को पूर्णता में परिणत करने के लिए भी मानवी अन्तःक्षेत्र में प्रबल उमंगे उठनी चाहिए। महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए तीव्रता की अनिवार्य आवश्यकता है। मन्दगति से किसी प्रकार जीवन शकट को लुढ़काते रहने में कोई बड़ी सफलता नहीं मिल सकती थी। आगे बढ़ने और अधिक पाने के लिए हमारी चेतना को-क्रियाशीलता को उसी प्रकार तीव्रगामी बनाया जाना चाहिए जिस प्रकार कि सौरमण्डल से आगे के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए अधिक तीव्र गति प्राप्त करने की चेष्टा की जा रही है। संकल्पों ने असम्भव समझी जाने वाली बातों को सम्भव करके दिखाया है, भूतकाल की तरह भविष्य भी वैसा होता रहेगा।


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