जीवात्मा मरने के बाद कुछ मध्यावधि विश्राम पाने के उपरान्त कर्मफल भोगने एवं भावी जीवन-यात्रा का क्रम आगे बढ़ाने के लिए नया जन्म ग्रहण करती है, यह अध्यात्मवादी प्रतिपादन आये दिन प्राप्त होते रहने वाले प्रमाणों से सहज ही सिद्ध हो जाता है। पुनर्जन्म की स्मृतियों, प्रेतात्माओं का अस्तित्व तथा बहुत छोटी अवस्था में असाधारण प्रतिभा का परिचय देने वाली घटनाओं से मरणोत्तर जीवन की सहज पुष्टि होती रहती है।
इस संदर्भ में एक नया पक्ष और भी है। वह यह है कि जीव-सत्ता अपनी संकल्प शक्ति का एक स्वतन्त्र घेरा बनाकर खड़ा कर देती है और जीव को अन्य जन्म मिलने पर भी वह संकल्प सत्ता उसका कुछ प्राणाँश लेकर अपनी एक स्वतन्त्र इकाई बना लेती है। और इस प्रकार बनी रहती है, मानो कोई दीर्घजीवी प्रेत ही बनकर खड़ा हो गया हो। अति प्रचंड संकल्प वाली ऐसी कितनी ही आत्माओं का परिचय समय-समय पर मिलता रहता है। लोग इन्हें ‘पितर’ नाम से देवस्तर की संज्ञा देकर पूजते जाये जाते हैं। वे अपने अस्तित्व का प्रमाण जब तब इस प्रकार देते रहते हैं कि आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। इतने पुराने समय में उत्पन्न हुई वे आत्माएँ अभी तक अपना अस्तित्व बनाये हुए है, यह प्रेत विद्या के लोगों के लिए भी अचम्भे की बात है, क्योंकि वे भी प्रेतयोनि को स्वल्पकालीन मानते हैं। अब उन्हें भी एक नये ‘पितर’ वर्ग को मान्यता देनी पड़ी है। जो मात्र भूत-प्रेत नहीं होते, वरन् अपनी प्रचंड शक्ति का दीर्घकाल तक परिचय देते रहते हैं।
लन्दन की यूनिवर्सल न्यूज एजेन्सी ने फरवरी 1932 में लार्ड वेस्टवुरी की मृत्यु का समाचार एक विस्तृत टिप्पणी के साथ समाचार-पत्रों में प्रकाशित कराया था। उस टिप्पणी का एक अंश यह भी था कि—”यह बात बिलकुल सच साबित हुई कि जो कोई फीरोन बादशाहों की कब खोदकर ममी के अंग अथवा उसकी अन्य कोई चीज निकालेगा तो उसकी बहुत दुर्गति के साथ मृत्यु होगी।”
मिश्र के पिरामिडों में उस देश के प्राचीन राज पुरुषो के मृतशरीर ऐसे मसालों से पोतकर रखे गये हैं जिससे वे हजारों वर्षों तक सुरक्षित रह सकें। इनके साथ-साथ उनके उपयोग की प्रिय वस्तुएँ भी गाढ़ी गई है; जिनमें बहुमूल्य बर्तन, वस्त्र, शस्त्र, खाद्य-पदार्थ ही नहीं जीवित नौकर, घोड़े और स्त्रियाँ भी गाढ़ी गई हैं। इस कौतूहल पूर्व कृत्य पर अधिक प्रकाश डालने की दृष्टि से मिश्र जाकर लार्ड वेस्टवुरी ने कब्रों की खुदाई की थी और बहुत ही ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त की थी। ‘टुट अँख अमेन’ की कब्र से इस प्रकार की वस्तुओं के अवशेष खोदकर बड़ी मात्रा में निकाले गये थे। इस विषय में अधिक रुचि रखने वाले इंग्लैंड के एक धनपति लार्ड कारनावन ने खुदाई का सारा खर्च अपनी जेब से दिया था। इस खुदाई में लार्ड रिचार्ड वेथल ने भी बहुत दिलचस्पी दिखाई थी। जो वस्तुएँ मिलीं उनके आधार पर पिरामिड निर्माण से सम्बन्धित अनेकों रहस्यों पर प्रकाश डाला जा सकना सम्भव हो सका। इंग्लैंड के अखबारों ने इस शोध सामग्री के आधार पर पिरामिड कालीन सभ्यता एवं मान्यताओं पर विस्तृत लेख छापे थे और इतिहास के एक पृष्ठ पर प्रकाश डालने वाले प्रयास के लिए उन खुदाई कराने वालों को मुक्त कण्ठ से सराहा था।
पर इससे क्या खुदाई से सम्बन्धित अधिकाँश व्यक्तियों को शेष जीवन बड़ी भयंकर परिस्थितियों में से गुजारना पड़ा। उन्हें एक से एक डरावनी घटनाओं का सामना करना पड़ा और अत्यन्त—हत्या, एवं दुर्घटना के शिकार होकर वे सभी अकाल मृत्यु के ग्रास हुए। लार्ड वेस्टवुरी को न जाने क्या सूझी कि वे अपने निवास सेन्टजेम्स पेलेस के सात तल्ले पर चढ़ कर कूद पड़े और मृत्यु के शिकार हो गये। उनका बेटा इससे पहले ही असामयिक मृत्यु से मर चुका था। खुदाई से संबंधित अन्य लोग भी यही अनुभव करते हैं कि उन्हें कोई प्रेतात्मा आकर डराती तथा हैरान करती है। कइयों को तो प्राणघातक विपत्तियों का सामना करना पड़ा और मरते-मरते बचे। कुछ डरके मारे विक्षिप्त स्थिति तक जा पहुँचे और दुर्दशाग्रस्त होकर मरे। लार्ड वेस्टबुरी की मृत्यु का समाचार जिस लम्बी टिप्पणी के साथ समाचार-पत्रों में छुपा था, उसमें इन दुर्घटनाओं का संक्षिप्त किन्तु दहला देने वाला विवरण दिया गया था।
मिश्र के पिरामिडों का निर्माण ईसा से कई शताब्दियों पूर्व हुआ था। उस समय के प्रेत हजारों वर्षों तक कैसे अपनी प्रौढ़ावस्था में बने हुए हैं, यह आत्मवादियों के लिए अचम्भे की बात है। इस प्रकार की सूक्ष्म-सत्ताओं का अस्तित्व जहाँ पाया जाता है, वहाँ यही निष्कर्ष निकालना पड़ता है। मनुष्य की संकल्प शक्ति और प्राण शक्ति में आत्मा नहीं, उसकी किरणें मात्र हैं, पर उनमें भी इतनी सामर्थ्य होती है कि अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व खड़ा करके मूल आत्मा की वृत्ति प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करती रहें। इस स्तर के कितने ही ऋषियों, महामानवों एवं सिद्ध पुरुषों का अस्तित्व जब-तब अनुभव में आता रहता है।
इस सिलसिले में एक और भी इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह सामने आई है कि जड़-पदार्थों से बने ऐसे माध्यम जिनके साथ जीवित मनुष्यों का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा हो, अपना प्रेत अस्तित्व बना लेते हैं और मूल पदार्थ के नष्ट हो जाने पर भी अपने अस्तित्व का वैसा ही परिचय देते रहते हैं, जैसा कि मरने के बाद मनुष्य अपना परिचय प्रेत रूप में प्रस्तुत करता रहता है।
समुद्री इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंगों का उल्लेख है, जिसमें सामने से आते हुए जहाज के साथ सम्भावित टक्कर से बचाने के लिए मल्लाहों ने अपना जहाज तेजी से मोड़ा और उस प्रयास में उनका अपना जहाज उलट कर नष्ट हो गया। यह जहाज जो सामने से आ रहा था और जिसकी टक्कर बचाने के लिए मल्लाह आतुरतापूर्वक प्रयत्न कर रहे थे, यहाँ यह कौन था, कहाँ का था—ठीक सामने टकराने जैसी स्थिति में क्यों हो रहा था—उसके चालक उसे बचा क्यों नहीं रहे थे—वह पीछे वहाँ से कहाँ चला गया? आदि प्रश्नों के उत्तर सन्तोषजनक नहीं मिले और यह मान लिया गया कि सम्भवतः वह मल्लाहों की आँखों का भ्रम था, वस्तुतः उस प्रकार के जहाज का अस्तित्व सिद्ध नहीं हुआ।
जाँच कमेटियों की रिपोर्ट में डूबने वाले और न डूबने वाले जहाजों तथा मल्लाहों की ऐसी अनेकों गवाहियाँ है जिन्होंने समुद्र की सतह पर ऐसे जहाज देखे जिनका अस्तित्व प्रमाणित नहीं किया जा सका। रिपोर्टों में उसे भ्रम बता कर जाँच पर पर्दा डाल दिया, पर उन मल्लाहों और यात्रियों का समाधान न हो सका, जिनने अपनी आँखों से सब कुछ देखा था। भ्रम तो एक दो को हो सकता था, सारे मल्लाह और परियात्री एक ही तरह का दृश्य देखें यह कैसे हो सकता है। रिपोर्ट अपनी जगह कायम रही और दर्शकों की मान्यताएँ अपनी जगह। पीछे यह अनुमान लगाया गया कि डूबे हुए जहाजों के प्रेत अपने जीवनकाल की आवृत्ति में समुद्र तल पर भ्रमण करते रहते हैं। यह उनका सूक्ष्म शरीर होता है, जिसमें सघन ठोस तत्व तो नहीं होते पर छाया आकृति ठीक वैसी ही होती है जैसी कि उनके जीवित काल में थी। डूबे हुए जलयानों के प्रेत होते हैं, यह अनुमान आरम्भ में उपहासास्पद ही माना गया था पीछे उनके प्रमाण इतने ज्यादा मिलते गये कि उस मान्यता को एक विचारणीय शोध विषय माना गया। अभी भी मृत जलयानों का प्रेत रूप में जीवित है, यह किसी प्रामाणिक कसौटी पर खरा सिद्ध नहीं हुआ है। इसलिए उस मान्यता को भ्रम स्तर पर ही रखा गया है। फिर भी शोधकर्ताओं को स्वयं इस निष्कर्ष से सन्तोष नहीं हुआ है। वे यह कहते रहते हैं कि उपलब्ध प्रमाण साधन अपर्याप्त हो सकते हैं और भविष्य में कई ऐसे उपकरण या सिद्धान्त निकल सकते हैं जो इन बहुचर्चित प्रेतों के सम्बन्ध में कुछ अधिक सन्तोषजनक तथ्य प्रस्तुत कर सकें।
निर्जीव पदार्थों के भी प्रेत होते हैं, इस संदर्भ में समुद्री इतिहास के बाद स्थल—इतिहास की भी एक कड़ी आकर और भी जुड़ जाती है। रेल दुर्घटनाओं में ड्राइवरों के अनेकों बयान ऐसे हैं जिनमें उनने सामने से धड़धड़ाती हुई एक रेल आती देखी और उसकी टक्कर बचाने का प्रयास करते हुए कड़ा ब्रेक लगाने में उनका इंजन उलट गया; अथवा वे हतप्रभ होकर अपना सञ्चालन-सन्तुलन खो बैठे। सामने से रेल क्या थी, कहाँ से आई थी, इसका कोई प्रमाण न मिला तो इसे ड्राइवरों की मनगढ़न्त कहानी अथवा मनोविकृति भर कहकर उपेक्षित कर दिया गया। पर ऐसे घटनाक्रम अनेकों थे। जिनमें टक्कर से दुर्घटना अथवा बचाव के लिए किये गये खतरनाक प्रयासों का पता चलता था। प्रमाणहीन बात को मान कैसे जाय और इतने लोग अकारण भ्रम फैलाते हैं, यह भी कैसे गले उतारा जाय? अन्ततः अनुमानों की शृंखला इस तरह भी जुड़ी कि जिस तरह डूबे हुए जलयानों के प्रेत समुद्र की सतह पर घूमते पाये जाते हैं, उसी प्रकार दुर्घटना में ग्रसित रेलों के भी प्रेत हो सकते हैं और उनके दृश्य देखकर सामान्य बुद्धि का ड्राइवर उन्हें एक यथार्थता मान सकता है।
‘पदार्थ’ का प्रेत ‘प्रति पदार्थ’ विश्व का प्रेत ‘प्रतिविश्व छाया पुरुष की तरह साथ-साथ विद्यमान रहता है उसकी चर्चा विज्ञान जगत में इन दिनों प्रमुख चिन्तन का विषय बनी हुई है। मनुष्य का प्रेत होता है, यह भी जाना और माना जाता रहा है। अब यह नया तथ्य सामने आया है कि महत्वपूर्ण घटनाओं के’—महत्वपूर्ण पदार्थों के और प्रचण्ड संकल्प-सत्ताओं के भी प्रेत हो सकते हैं। स्थूल के नष्ट हो जाने पर भी सूक्ष्म का अस्तित्व बना रहता है। इस सूक्ष्म का गहन अन्वेषण हो सके तो हमारे ज्ञान-विज्ञान में एक नई किन्तु अति महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ सकती है।