आदर्शवादी प्रतिभाओं की प्रतिक्षा

July 1974

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अनुकरण की प्रवृत्ति मनुष्य स्वभाव का महत्वपूर्ण अंग बनकर रहती है। हम जैसा देखते है वैसा करते है। बच्चा अभिभावकों को—साथियों को जिस शब्दावली का−भाषा का प्रयोग करते सुनता है उसी को बोलने और समझने लगता है। चरित्र और स्वभाव के सम्बन्ध में भी साथियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। वातावरण का प्रभाव पड़ना एक तथ्य है। जिन लोगों के बीच—जिन परिस्थितियों के बीच—रहना पड़ता है वैसी ही आदतें बन जाती है। रुचि विचित्रता, आदतों की भिन्नता और प्रकृति की पृथकता न तो जन्मजात होती है और न अनायास उत्पन्न होती है; उनके निमार्ण में समीपवर्ती व्यक्तियों और परिस्थितियों का भारी हाथ रहता है।

अनाचार समर्थक−अभिरुचि बढ़ जाने से वातावरण में अपराधी प्रवृत्तियों का प्रवाह उत्पन्न होता है। सामान्य मनःस्थिति के लोग उसी की धारा में बहने लगते हैं। हवा के रुख की ओर ही पत्ते उड़ते हैं। बहुत लोग जो कुछ करते हैं उसी का अनुकरण करने की−उसी दिशा में चलने की लोक प्रवृत्ति उभरती है।

जन−प्रवाह की अवाँछनीय से विरत रहने के लिए इसी प्रकार वातावरण बनाने आवश्यक है जिसमें सामान्य लोगों को चल पड़ने की प्रेरणा मिल सके। यह कार्य प्रखर एवं मनस्वी व्यक्तियों के आगे आने से ही संभव होता है। हवा का रुख वे ही बताते हैं—प्रवाहों को वे ही मोड़ते हैं। वातावरण बनाने का बहुत कुछ श्रेय उन्हीं को होता है।

विचार और क्रिया को जिन्होंने मिलाकर अपनी आस्था का परिचय दिया है वे कुमार्गगामी होते हुए भी प्रतिभावान होते हैं और अपने संपर्क क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। एक वेश्या अनेकों को व्यभिचार सिखा देती है। नशेबाज, चोर, जुआरी आदि कुमार्गगामी अपनी बुरी लतें उनमें से अधिकाँश सिखा देते हैं जो उनके संपर्क में आते हैं। विचार यदि कर्म में उतर सकने जैसा प्रौढ़ हो तो उनसे प्रतिभा उभरती है और उसका प्रभाव पड़ता है।

सन्मार्गगामी प्रतिभाएँ अपने समाज एवं समय को प्रभावित कर सकने में पूरी तरह सफल रही हैं। गाँधी जी ने अपने प्रभाव से ऐसा वातावरण बनाया था जिसने असंख्य लोगों को सत्याग्रही सैनिकों के रूप में कष्टसाध्य त्याग, बलिदान करने के लिए अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा कर दिया। भगवान बुद्ध की प्रेरणा से लाखों भिक्षु और भिक्षुणी अपनी सुख−सुविधाएँ छोड़कर जन−प्रवाह बदलने के लिए कर्मक्षेत्र में उतरे थे। लैनिन के अनुयायी साम्यवादी आन्दोलन को समर्थ बनाने में सफल हुए थे। शिवाजी प्रताप, गुरुगोविन्द सिंह आदि के ऐसे अगणित प्रमाण इतिहास के पृष्ठों पर भरे पड़े हैं जिनमें प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों ने अपने प्रभाव से युगांतरकारी वातावरण बनाया और उसे प्रवाह में बहने के लिए असंख्यों को प्रोत्साहित किया।

समय की पुकार जिस परिवर्तन की है—उसके अनुरूप लोग−मानस तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए अग्रिम पंक्ति में उन योद्धाओं को आना पड़ेगा जो अपनी आस्थाओं को कार्यान्वित करते हुए सर्व साधारण के सम्मुख अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर सकें।

त्याग और बलिदान की पुण्य परम्परा अपनायें बिना यह महान् प्रयोजन और किसी भी प्रकार पूरा न हो सकेगा। इसका आरम्भ दुर्बल मनःस्थिति के लोगों से नहीं कराया जा सके ता। वे पीछे तो चल सकते हैं पर अग्रिम पंक्ति में खड़े होने का साहसिक शुभारम्भ कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते। युग परिवर्तन का शुभारम्भ तो त्याग और बलिदान के भाव भरे आदर्श प्रस्तुत कर सकने वाले अग्रगामी साहसी शूरवीरों द्वारा ही संभव होगा। युग की माँग और पुकार उन्हीं के उभरने, उठने की प्रतीक्षा कर रही है।


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