बचपन में यदि आवश्यक मात्रा में प्रोटीन युक्त आहार न मिले तो वे न केवल शारीरिक दृष्टि से दुर्बल रहते हैं, वरन् मानसिक दृष्टि से भी पिछड़े रह जाते हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल मद्रास, आन्ध्र, केरल और मैसूर इन चार राज्यों में ही 35 लाख से अधिक बच्चे पौष्टिक आहार की कमी के कारण भयंकर रुग्णता से ग्रसित थे। इनमें से 23 लाख सूखा रोग से और 12 लाख गठिया से बीमार थे। अन्य छुट−पुट बीमारियों से अथवा सामान्य दुर्बलता से जिन्हें शारीरिक दृष्टि से अविकसित रहना पड़ रहा है उनकी संख्या उससे भी कही अधिक है।
विटामिन, प्रोटीन और खनिज जिस मात्रा में स्वास्थ्य संरक्षण के लिए आवश्यक हैं प्रायः उनसे एक चौथाई ही हमारे बालकों को मिल पाते हैं। गरीब लोग अर्थाभाव के कारण और अमीर लोग चटोरेपन के कारण अनुपयोगी वस्तुएँ उदरस्थ कराने के कुचक्र में अपने बच्चों को उचित आहार देने में असमर्थ रहते देखे जाते है।
कुपोषण के शिकार बालकों में जितनी संख्या गरीबों की होती है, उससे अधिक अमीरों की होती है। गरीब अभावग्रस्तता के कारण अपने बच्चो को पौष्टिक भोजन नहीं दे पाते; पर अमीर लाड़−चाव से ऐसी वस्तुएँ खिलाते है जो कीमती और स्वादिष्ट तो होती हैं, पर अपना उपयोगी अंश पहले ही गाँव चुकी होती हैं। अधिक मात्रा में खिलाकर पाचन क्रिया को नष्ट कर देने का अभिशाप भी अमीरों के साथ ही जुड़ा हुआ है। अभाव की ही तरह अज्ञान भी पग−पग पर हमारे लिए संकट उत्पन्न करता है।