नीच और ऊँच की पहचान

July 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

रूस के राजा एलेग्जेण्डर अक्सर अपने देश की आन्तरिक दशा जानने के लिए वेश बदल कर पैदल घूमने जाया करते थे। एक दिन घूमते−घूमते एक नगीर में पहुँचे, वहाँ का रास्ता उन्हें मालूम न था। राजा रास्ता पूछने के लिए किसी व्यक्ति की तलाश में आगे बढ़े।

आगे उन्होंने एक हवलदार सरकार की वर्दी पहने हुए देखा। राजा ने उसके पास जाकर पूछा महाशय, अमुक स्थान पर जाने का रास्ता बता दीजिए। हवलदार ने अकड़ कर कहा— “मूर्ख! तू देखता नहीं, मैं सरकारी हाकिम हूँ मेरा काम रास्ता बताना नहीं है। चल हट, किसी दूसरे से पूछ।” राजा ने नम्रता से पूछा — ‘महोदय, यदि सरकारी आदमी भी किसी यात्री को रास्ता बतादें तो कुछ हर्ज थोड़ा ही है। खैर, मैं किसी दूसरे से पूछ लूँगा; पर इतना तो बता दीजिए कि आप किस पद पर काम करते है?”

हवलदार न और भी ऐंठते हुए कहा— “ अन्धा है क्या मेरी वर्दी को देखकर पहचानता नहीं कि मैं कौन हूँ।’ एलेग्जेंडर ने कहा— शायद आप पुलिस के सिपाही हैं। ‘ उसने कहा नहीं उससे ऊँचा।’

राजा—” तब क्या नायक हैं?”

हवलदार—,’उससे भी ऊँचा।”

राजा—” हवलदार हैं?”

हवलदार—” हाँ, अब तू जान गया कि मैं कौन हूँ, पर यह तो बता कि इतनी पूछताछ करने का तेरा क्या मतलब? और तू कौन है?”

राजा ने कहा मैं भी सरकारी आदमी हूँ। सिपाही की ऐंठ कुछ कम हुई, उसने पूछा, ‘क्या तुम नायक हो? राजा ने कहा— नहीं उससे ऊँचा।’

हवलदार — तब क्या आप हवलदार?

राजा—’उससे भी ऊँचा।’

हवलदार—’दरोगा?’

राजा—’ उससे भी ऊँचा।’

हवलदार—’कप्तान?’

राजा—’उससे भी ऊँचा।’

हवलदार—”सूबेदार?”

राजा—”उससे भी ऊँचा।”

अब तो हवलदार घबराने लगा, उसने पूछा—’तब आप मन्त्री जी हैं?’ राजा ने कहा ‘भाई बस एक सीढ़ी और बाकी रह गई है।’ सिपाही ने गौर से देखा तो सादा पोशाक में बादशाह एलेग्जेण्डर सामने खड़े हैं। हवलदार के होश उड़ गये, वह गिड़गिड़ाता हुआ बादशाह के पाँवों पर गिर पड़ा और बड़ी दीनता से अपने अपराध की माफी मांगने लगा।

राजा ने कहा—’माफी माँगने की कोई बात नहीं है। मैं जानता हूँ कि जो जितने नीच हैं, वह उतने ही अकड़ते हैं। जब तुम बड़े बनोगे तो मेरी तरह तुम भी नम्रता का बर्ताव सीखोगे। जो जितना ही ऊँचा है वह उतना ही सहनशील एवं नम्र होता है और जो जितना नीच एवं ओछा होता है, वह उतना ही ऐंठा रहता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118