मधुमक्खी विशेषज्ञ और प्रख्यात मधुव्यवसा की चार्ल्स वटलर ने पता लगाया है कि छत्ते की मधुमक्खियाँ बन्ध्या नहीं होतीं। अवसर मिले तो वे भी सन्तानोत्पादन कर सकती हैं, पर वे करती नहीं। क्योंकि वे जानती हैं कि प्रजनन के लिए सभी का ललचाना अपने वर्ग के लिए अस्तित्व विनाश का संकट उत्पन्न करना है। अनियन्त्रित सन्तानोत्पादन के लिए आखिर आवश्यक सुविधाएँ कहाँ तक जुटाई जा सकेंगी। मक्खियाँ यह सब अपनी सहज बुद्धि से जानती हैं और संयमी जीवन का पुरुषार्थ भरा आनन्द लेती हैं।
चार्ल्स वटलर का कथन है कि रानी मक्खी कहीं आसमान से नहीं उतरतीं। सब मक्खियाँ फूलों का रस इकट्ठा करने के लिए जहाँ परिश्रम करने निकलती हैं वहाँ कुछ ऐसी भी हरामखोर होती हैं तो छत्ते के जमा शहद पर ही बैठी−बैठी गुलछर्रे उड़ाने लगती हैं। बस यही रानी मक्खी हो जाती हैं और साधारण आकार से कई गुनी बढ़ कर अनवरत प्रजनन कर्म में जुटी रहती हैं।
परिश्रम मक्खियाँ फूलों से रस लाने− छत्ते की समृद्धि बढ़ाने — परिवार के बच्चों को पोषण करने में लगी रहती हैं। इस कर्त्तव्यनिष्ठा के साथ ब्रह्मचारिणी रहने में अपने को बहुसन्तति वाली रानी मधुमक्खी से अधिक सुखी और सौभाग्यशाली मानती हैं।