अपनों से अपनी बात - गुरुपूर्णिमा पर्व और अगले वर्ष का साधना−क्रम

July 1974

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अखण्ड−ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपनी विशिष्ट एवं असामान्य स्थिति अनुभव करनी चाहिए। उन्हें लम्बे समय से लगातार इस पत्रिका के पृष्ठों पर लिपटी हुई एक अलौकिक प्रकाश प्रेरणा मिलती रही है। इस अनवरत अमृत वर्षा का प्रभाव चेतना सम्पन्न आत्माओं पर होगी ही चाहिए। जिनका रुझान दुष्ट प्रयोजन से ऊँचा उठकर नव−जीवन क्षेत्र में प्रवेश पाने के लिए अग्रगामी हुआ, निश्चय ही उनके भीतर कुछ पूर्व सञ्चित दिव्य संस्कार होने चाहिए अन्यथा समय की भयावह विकृत्तियों के नाश−पाश में से निकल कर इन दिनों आदर्शवादी चिन्तन की ओर उन्मुख हो सकना भी बड़ा कठिन है। युग प्रवाह भोग और स्वार्थ की परिधि से एक इञ्च भी आगे नहीं बढ़ने दे सकता। जिनके चिन्तन में उत्कृष्टता के तत्व घुस गये है जो आदर्शवादी जीवनयापन के लिए साहस एकत्रित कर रहे हैं उन्हें आज की स्थिति में असामान्य ही कहा जायगा। अखण्ड ज्योति के पाठक अहंकारवश नहीं वस्तुस्थिति के विश्लेषण के आधार पर अपने इसी स्थिति में पायेंगे। उन्हें अनुभव होगा कि उनके जीवन पुष्प को खिलने का सुअवसर आ रहा है और कोई माली उनके विकास के लिए—संरक्षण के लिए ही नहीं—देवता के चरणों तक पहुंचा देने के लिए भी अपनी भावना सँजोये बैठा है।

परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपना व्यक्तित्व इसी विशिष्ट स्थिति से आच्छन्न देखना चाहिए और लोग−प्रवाह से भिन्न प्रकार का कर्तृत्व अपनाने के लिए—व्यक्तित्व विकसाने के लिए साहस बटोरना चाहिए। युग−प्रवाह भिन्न प्रकार की गतिविधियों का निर्धारण वस्तुतः असाधारण साहस का काम है। जिन परिस्थितियों में सर्वत्र लोभ और मोह ही एकमात्र लक्ष्य बनकर रह रहा है, उनमें उत्कृष्टता और आदर्शवादिता की—सर्वथा विचित्र दीखने वाली गतिविधियों का अपनाना एक असाधारण शौर्य पराक्रम ही माना जायगा। हमें ऐसे ही साहसी शूरवीरों में अपने को गिनना चाहिए। लोगों के पीछे चलने की परावलम्बी भेड़चाल को अस्वीकार करना चाहिए और अग्रिम पंक्ति में आकर कर्तृत्व इस स्तर का बनाना चाहिए जो दूसरों के लिए प्रकाशपूर्ण मार्ग−दर्शन का आधार बन सके।

साधना−क्रम अगले वर्ष के लिए निर्धारित करना चाहिए और इनमें से जिस सूत्रों को जिस हृदय तक अपनाया जाना सम्भव हो उसके लिए साहसपूर्वक संकल्प करना चाहिए और तत्काल उस निश्चय को कार्यान्वित करने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए। यह सूत्र छोटे दीखने पर भी महान् सम्भावनाएँ अपने भीतर छिपाये बैठे हैं जो इन्हें कार्यान्वित करेंगे वे देखेंगे कि अगले वर्ष में उनने कितनी आशाजनक प्रगति सम्पन्न कर ली। अगले वर्ष के लिए प्रस्तुत दस सूत्री साधना−क्रम इस प्रकार हैं—

नित्य प्रातःकाल भगवान् का नाम स्मरण और प्रकाश का ध्यान करने की नियमितता रखी जाय। हमें गायत्री मन्त्र सर्वश्रेष्ठ जँचा है। यह किसी देश जाति, वर्ग,धर्म की परिधि में सी मित नहीं—सार्वभौम लगा है। हमारी दृष्टि में अपनी साम्प्रदायिक मान्यताओं को बनाये रहते हुए भी अतिरिक्त रूप से गायत्री जप कर सकता है। यदि किसी को आपत्ति हो तो अपना प्रिय अन्य ईश्वर नाम भी स्मरण किया जा सकता है अथवा पूर्व क्रम के साथ−साथ गायत्री मन्त्र जोड़ा जा सकता है। प्रकाश का ध्यान सार्वभौम—सर्व धर्म समर्पित एवं समस्त अध्यात्म साधनाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है।

प्रातःकालीन पीत वर्ण सूर्य का ध्यान आँखें बन्द करके जप के साथ ही करना चाहिए। यह सूर्य सविता देवता का—ब्रह्मवर्चस् का —सद्ज्ञान प्रकाश का प्रतीक माना जाय। भगवान् सूर्य की प्रकाश किरणें हमारे शरीर में प्रवेश करके उसके स्थूल एवं सूक्ष्म संस्थानों में प्रवेश करती हैं और कण−कण को ज्योतिर्मय बनाती है यह ध्यान किया जाय। अपना रक्त माँस, अस्थि समूह, हृदय, यकृत,मस्तिष्क, पेट, आंतें आदि समस्त भीतरी बाहरी अंग प्रकाश से ओत−प्रोत होते है। दसों इन्द्रियाँ उससे ज्योतिर्मय होती है। समस्त काय−कलेवर धवल बलिष्ठता से भर जाता है। यही दिव्य प्रकाश सूक्ष्म शरीर में —मस्तिष्क में—प्रवेश करके मन, बुद्धि,चित्त, अहंकार के अन्तःकरण चतुष्टय को प्रकाशवान बनाता है,उस क्षेत्र में प्रविष्ट समस्त अन्धकार का निराकरण करता है। इसके आगे वही प्रकाश हृदय स्थल में अवस्थित ‘कारण शरीर’ में प्रवेश करके अपनी आस्था, निष्ठा, श्रद्धाभाव,संस्थान को अवलोकित करता है। अपना कण−कण प्रकाशवान बन जाता है और ध्याना लक्ष्य सूर्य की तरह अपना समस्त व्यक्तित्व प्रकाश पुंज बनता है। अन्तर केतमस् से निवृत्ति मिलती है और उस प्रकाश से अपना संपर्क क्षेत्र प्रकाशमान होता है।

इस ध्यान केन्द्र प्रभातकालीन सूर्य के साथ वे अतिरिक्त प्रेरणाएँ भी जुड़ी हुई समझी जाँय जो हिमालय के एक विशेष केन्द्र में विशेष प्रेरणाओं के रूप में हम सबको विशेष रूप उपलब्ध होती है। वे हमारे अवरुद्ध हृदय कपाटों को विशेष रूप से खोलती हैं और सामान्य से असामान्य बन सकने के लिए अतिरिक्त क्षमता प्रदान करती हैं।

प्रातःकाल न्यूनतम आधा घण्टा और अधिकतम डडडड डडडड डडडड डडडड ध्यान हम सबको करना चाहिए। स्नान की हर दृष्टि से उपयोगिता है, पर जो कारणवश स्नान न कर सकें वे मल−मूत्र से निवृत्त होकर हाथ, पाँव धोकर भी इस उपासना क्रम को कर सकते हैं।

अपने परिवार में आस्तिकता और उपासना का वातावरण बनाया जाय। घर में गायत्री का एक चित्र किसी उपयुक्त स्थान पर लगाया जाय। अपना दैनिक कार्य आरम्भ करने से पूर्व घर का हर सदस्य उसके सम्मुख खड़े होकर प्रणाम किया करे और कम से कम पाँच पत्र मन ही मन जप किया करे। इसके बाद दफ्तर जाने, स्कूल जाने,भोजन बनाने आदि के कार्य घर के लोग किया करें। दैनिक कार्य आरम्भ करने से पूर्व यह धार्मिक श्रीगणेश करने की आदत पड़ जाने से उसके दूरगामी परिणाम होंगे। हमारे हर परिवार में यह परम्परा प्रचलित की जाय।

जीवन समस्याओं को सुलझाने वाला, प्रकाश देने वाले सत्साहित्य पढ़ने के लिए कम से कम आधा घंटा समय अवश्य निकाला जाय, उसे रास्ता चलते, दफ्तर में, दुकान में अथवा फुरसत के समय कभी भी किया जा सकता है। जो पढ़ा जाय उसमें से अधिक प्रेरणाप्रद तथ्यों को एक कापी में नोट किया जाय और रात को या जब भी अवकाश हो उन नोट की गई बातों पर कम से कम आधा घण्टा चिन्तन मनन किया जाय। उन प्रेरणाओं को क्या अपने जीवन−क्रम में उतारना सम्भव है? यदि है तो किस क्रम से, कितनी मात्रा में—इन प्रश्नों पर विचार करने का नाम ही चिन्तन−मनन है।

हर दिन नियमित दिनचर्या बनाकर काम किया जाय। या तो रात को ही बनाली जाय या सवेरे उठते ही। समय तनिक भी बर्बाद न हो और न उसमें अस्तव्यस्तता प्रमाद के शत्रुओँ से छुटकारा पाया जा सकता है। व्यवस्थित क्रम से पूर्ण मनोयोग के साथ कठिन लायक श्रम करने वाला ही किसी दिशा में कुछ कहने लायक प्रगति कर सकता है। हममें से हर किसी का जीवन−क्रम ऐसा ही व्यवस्थित होना चाहिए।

शरीर, वस्त्र, घर,सामान आदि की सफाई पर पूरा ध्यान रखा जाय। असम्मानजनक शब्द छोटे या बड़े डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड 48 समय पर ही खाया जाय। पैसा खर्च करते या करते समय यह सोच लिया जाय कि यह कार्य नितान्त आवश्यक है या नहीं—मितव्ययी रहने से ही अर्थ सन्तुलन ठीक रहेगा। यदि दुश्चरित्र लोगों के साथ अपनी घनिष्ठता बढ़ गई तो उसे शिथिल एवं समाप्त करने के लिए कदम बढ़ाया जाय। इन पाँच निश्चयों से उत्कृष्टता, प्रतिभा एवं प्रसन्नता की वृद्धि में असाधारण सहायता मिलती है।

गुरुवार को अस्वाद व्रत किया जाय—बिना नमक और बिना शक्कर का भोजन किया जाय। सम्भव हो तो एक समय का, पूरे दिन का उपवास किया जाय। उपवास का अर्थ है केवल जल,दूध, छाछ, रस, तरकारियों और रसा आदि पतली वस्तुओं पर निर्वाह।

घर के सदस्यों में सत्प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करने के लिए कुछ समय उनके साथ−साथ काम किया जाय। सफाई,व्यवस्था,उपासना,स्वाध्याय,नित्य कहानियाँ कहना—घर की तथा समाज की समस्याओं पर विचार विनियम, खेल, विनोद, मनोरंजन,शाक−वाटिका, टूटी−फूटी वस्तुओं की मरम्मत, गृह−शिल्प, पढ़ाना आदि कार्यों के लिए घर वालों के साथ स्वयं जुटाना चाहिए ताकि उनमें सत्प्रवृत्तियों का अभिवर्धन करके सच्चा पारिवारिक उत्तरदायित्व निवाहा जा सके।

ज्ञान−घट घर में अवश्य रखा जाय। उसमें एक युग−निर्माण साहित्य तथा पत्रिकाएँ पहुँचते रहने की व्यवस्था की जाय। इस साहित्य को घर का प्रत्येक सदस्य पढ़े और संपर्क के लोग उससे लाभ उठाते रहें ऐसा प्रबन्ध किया जाय।

स्थानीय अखण्ड−ज्योति सदस्य मिलकर एक युग−निर्माण शाखा गठित करें। परस्पर घनिष्ठता बढ़ाये और मिशन के प्रचारात्मक, रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कार्यक्रमों को अपने क्षेत्र में व्यापक बनाने में योगदान करने की योजनाएँ बनाएँ। अपना विचार परिवार बढ़ने और उसमें सक्रियता लाने के लिए आगे बढ़कर अधिकाधिक उत्साह के साथ काम किया जाय।

शान्ति−कुंज द्वारा प्रचलित शिक्षण योजनाओं में स्वयं सम्मिलित होने का तथा अन्य सुयोग परिजनों को भेजने का प्रयत्न किया जाय। प्रत्यावर्तन सत्र, कनिष्ठ वानप्रस्थ सत्र, लेखन सत्र, महिला जागरण सत्र, कब कितने दिनों के चलेंगे, इसकी सूचना अप्रैल 74 की अखण्ड−ज्योति में ‘अपनों से अपनी बात स्तम्भ में विस्तारपूर्वक छप चुकी है। परिवार के भावनाशील लोग प्रशिक्षणों के स्वर्ण सुयोग से वंचित न रहें इसकी सजगता बरती जाय।

जीवन साधना का वर्ष प्रायः गुरु पूर्णिमा से आरम्भ किया जाता है। शान्तिकुंज में प्रशिक्षण प्राप्त किये हुए सभी लोगों से गठ अंक में अनुरोध किया गया था कि वे तब से लेकर अब तक की अवधि में अपने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन में आये हुए उतार−चढ़ावों का चित्र रण भेजें। वे भेज ही रहें होंगे। इस अंक में जीवन−साधना की दस सूत्री प्रक्रिया को अपनाने के लिए सभी परिजनों से कहा जा रहा है। जो इन सूत्रों में से कुछ अपना सकें और उसके लिए संकल्पपूर्वक कदम उठायें वे ही अपने प्रयासों की सूचना ‘शान्ति−कुञ्ज सप्त सरोवर, =विज्ञापन हरिद्वार’के पते पर भेज दें। जिन्हें उत्तर की अपेक्षा हो उन्हें जवाबी पत्र भेजना न भूलना चाहिए।

आशा की जा रही है कि अखण्ड−ज्योति परिजन अपनी विशिष्ट आत्मिक स्थिति का अनुभव करेंगे। जीवन−लक्ष्य की पूर्ति के लिए साहसिक कदम बढ़ायेंगे। हम सब एक व्यवस्थित क्रम से जीवनोद्देश्य की पूर्ति के लिए एक जुट होकर बढ़ चले तो न केवल अपना—अपने परिवार का—कल्याण करेंगे वरन् समस्त मानव जाति का भविष्य निर्माण करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगे। इस दिशा में क्रमबद्ध कदम उठाने के लिए प्रस्तुत दस सूत्री साधना योजना निश्चित रूप से अति उपयोगी सिद्ध होंगी।


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