जीवनकला के कलाकार पं. नेहरू

July 1974

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भारत सरकार के फिल्म डिवीजन ने ‘हमारे मन्त्री’ नाम से एक वृत्त चित्र बनाया था, जिसमें पं. जवाहरलाल नेहरू की दिनचर्या, कार्यक्षमता, श्रमशीलता, चुस्ती−फुर्ती, स्वास्थ्य, सतर्कता और निस्पृहता आदि उन गुणों का दिग्दर्शन कराया था, जिनके आधार पर वे उतना अधिक कार्य करने और इतने ऊँचे पद का उत्तरदायित्व भली प्रकार वहन कर सकने में समर्थ हो सके।

नेहरूजी की दिनचर्या मशीन की तरह पूर्णतया नियमित और व्यवस्थित थी। वे प्रायः 5 घण्टे सोते थे और शेष सारे समय अपने व्यस्त कार्यक्रम में लगे रहते थे। व्यक्तिगत कार्यों को वे फुर्ती से निपटाने थे ताकि अधिक समय अपने राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों के निर्वाह में लगा सकें।

चुस्ती और फुर्ती उनका विशेष गुण था। स्टेनों से जब वे पत्रों का उत्तर लिखाते थे तो औसतन वे एक मिनट में 124 शब्द बोलते थे। कभी उत्तेजना में आ जाय तो वह चाल 201 तक जा पहुँचती थी। उनके पास महत्वपूर्ण द्वार और पत्रों की संख्या लगभग डेढ़ हजार रहती थी वे सभी को सावधानी से पढ़ते,देखते और गम्भीरतापूर्वक उत्तर लिखाते थे। चुनाव के दिनों उन्होंने तीन−तीन सौ मील की यात्राएँ लगातार हफ्तों तक की हैं और बहुत बार उन्होंने पन्द्रह−बीस सभाओं तक में भाषण दिये हैं। फिर भी कभी उन्होंने थकान की शिकायत नहीं की और न कभी बीमार पड़े।

उनकी इस सक्षमता के आधार मूल गुण थे— नियमितता, मिताहार, तत्परता, निश्चिन्तता, निश्छलता और कर्त्तव्यनिष्ठा। समय का एक क्षण भी बेकार नहीं गँवाते थे। दिनचर्या ऐसी नपी−तुली और व्यवस्थित रहती थी बेकार की बातों और बेकार के कार्यों में एक क्षण भी नष्ट न हो। जो काम करना उसे पूरी चुस्ती,मुस्तैदी और तन्मयता के साथ करना—इस गुण ने उनकी कार्य शक्ति कई गुनी बढ़ा दी थी। दूसरे लोग जबकि उतने समय में बहुत कम काम कर पाते थे, ढीले हाथ और उदास मन से किसी प्रकार समय काटते हुए बहुत समय में थोड़ा काम कर पाते थे, तब पं. नेहरू उतने ही समय में अपनी फुर्ती और मुस्तैदी के कारण दूसरे साथियों की तुलना में दस गुना अधिक काम निपटा देते थे।

वे भरपेट भोजन कभी भी नहीं करते थे। पेट को खाली रखते थे ताकि आलस्य न आये—पेट पर अनावश्यक वजन न बढ़े और पाचन−क्रिया में गड़बड़ी उत्पन्न न हो। वे शौच स्नान के उपरान्त नियमित व्यायाम का क्रम अवश्य पूरा करते थे। व्यायामों में उन्हें सर्वांगासन जैसे योगासन अधिक अनुकूल पड़ते थे।

बहुत उत्तरदायित्वों और समस्याओं में उलझे रहने पर भी वे उन्हें कभी नहीं देखा गया। निराशा क्या होती है, यह उन्होंने जाना ही नहीं। कठिन से कठिन और विपरीत परिस्थितियों में मानसिक सन्तुलन बनाये रहना और समाधान क्या हो सकता है इसकी शाँत चित्त से खोज करना उनकी मानसिक विशेषता थी। यही कारण था कि वे बिना उलझन में फंसे दुस्तर समस्याओं के हल निकालने में सफल होते रहे। जो हल नहीं निकले इन असफलताओं में भी उन्होंने खिलाड़ी की मनोभूमि कायम रखी। दुखी या खीजते, कोसते उन्हें कभी किसी ने नहीं पाया।

व्यक्ति गत द्वेष−अहंकार और लोभ, स्वार्थ से वे कोसों ऊँचे थे। साथियों पर कभी−कभी वे झल्ला भी पड़ते थे, पर वह आवेश एक क्षणभर का ही होता था। द्वेष या दुराव छू भी नहीं गया था। वे साथियों को सच्चे मन से प्यार करते थे फलतः जिन्हें खरी−खोटी सुननी पड़ती वे भी न तो बुरा मानते थे और न अपना अपमान अनुभव करते थे। जो भी उनके संपर्क में आया वह प्रेम के बन्धनों में जीवन भर के लिए बंध कर रह गया।

देश−भक्ति, लोक−मंगल की कामना, कर्त्तव्य−निष्ठा का स्तर सदा इतना ऊँचा रहा कि व्यक्ति गत लोभ, मोह और अहंकार के प्रवेश की पहुँच वहाँ तक हो नहीं सकी। पं. नेहरू का पद सम्मान और उत्तरदायित्व बहुत ऊँचा था और उससे भी ऊँचा था उनका महान् चरित्र एवं व्यक्तित्व।


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