कितने ही धर्म प्रेमी हसीदी धर्मगुरु बालशेम के पास जाकर आग्रह करने लगे—’गुरु देव! आपके शिष्य यहीएल मिरवाल से हम लोग कई बार गुरु का पद स्वीकार करने के लिए कह चुके हैं, पर वह हर बार अनसुनी कर देते हैं। यदि आप उनसे कहें तो सम्भवतः आपके आदेश की अवहेलना वह न कर सकेंगे।’
धर्मगुरु बालशेम ने मिरवाल को बुलाकर कहा− ‘तुम्हें अपनी जिद छोड़ देनी चाहिए। जानते हो मेरे आदेश की अवहेलना तुम्हें न इस लोक का रखेगी और न परलोक का।’
शिष्य का उत्तर था—’भले ही मेरे दोनों लोक चले जायें मुझे इस बात की चिन्ता नहीं है, पर मैं यह उचित नहीं समझता कि जिस पद के योग्य नहीं हूँ उसे स्वीकार कर लोगों को गुमराह करूं।’