लघु कहानी– दो सन्तान थी (kahani)

August 1973

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किसी एक अमीर के दो सन्तान थी, एक लड़का एक लड़की। दोनों आराम से  तलबी ओर विलासिता के वातावरण में पले, तो वयस्क होते ही उन्होंने व्यसन व्यभिचार की राह पर सरपट दौड़ना शुरू कर दिया।

बच्चों को कैसे सुधारा जाय, यह प्रश्न अमीर को चिन्तित किये हुए था। उपाय पूछने पर मित्रों ने अनेक सुझाव दिये। बहुत सोच विचार के बाद यह निश्चय हुआ कि उन्हें एक महीने तक महर्षि व्यास कृत महाभारत की कथा सुनाई जाय। उसमें धर्म, सदाचार के सभी तत्त्व मौजूद हैं।

कथा का प्रबन्ध हो गया। दोनों बच्चों ने उसे सुना भी। कुछ दिन बाद उसका परिणाम देखा पूछा गया तो मालूम पड़ा कि लड़का अपने दोस्तों से कहता है कि श्रीकृष्ण भगवान के जब 16 हजार रानियाँ थी तो 10-20 के साथ सम्बन्ध रखने में क्या हर्ज है। उसी प्रकार लड़की ने अपनी सहेलियों को बताया कुन्ती कुमारी अवस्था में पुत्र जन्म दे सकती है, द्रौपदी पाँच पति रख सकती है तो हम कौन सा बड़ा अनर्थ कर रहे हैं।

सुधार प्रयत्नों पर फिर विचार हुआ और यह निष्कर्ष निकाला गया कि कथा श्रवण की धर्म चर्चा अपर्याप्त है। दृष्टिकोण बदलने के लिए ऐसा प्रभावी वातावरण भी होना चाहिए जहाँ चर्चा और क्रिया में उत्कृष्टता का समुचित समन्वय हो। अगले कदम उसी आधार पर उठाये गये और वे सफल भी हुए।


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