सिंह भी पालतू कुत्ते जैसे सौम्य हो सकते हैं।

August 1973

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सिंह जैसी खूँखार और क्रूर प्रकृति के प्राणी को भी स्नेह सौजन्य के बन्धनों में बाँधा जा सकता है और उसे मृदुलता एवं सौजन्य के ढाँचे में ढाला जा सकता है।” यह सिद्धान्त या आदर्श ही नहीं एक व्यवहार भी है जिसे हॉलैण्ड निवासी एक बन संरक्षक दम्पत्ति ने अफ्रीका में साकार करके दिखा दिया।

उन्होंने समय समय पर छः सिंह शावकों को उन्मुक्त वातावरण में पाला और बड़ा किया। स्नेह दिया और स्नेह पाया। विश्वास किया और विश्वास पाया। परम्परा गत क्रूर प्रकृति को सौम्य सौहार्द में बदला जा सकता है या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर दार्शनिक विवाद के रूप में नहीं वरन् प्रत्यक्ष उदाहरण के साथ पिछले ही दिनों प्रस्तुत किया गया है।

सिंहों के बारे में आमतौर से इतना ही जाना गया है कि वे बड़े भयंकर बलवान और क्रूर होते हैं। अपनी सशक्तता ओर क्रूरता से सारे बन प्रदेश को आतंकित रखते हैं। उनसे सभी वनचर भय खाते हैं। अस्तु आतंकवादियों को भूतकाल में जैसे शासक मानने की परम्परा थी उसी के अनुसार सिंहों को भी ‘वनराज’ कहते हैं। यद्यपि उस क्षेत्र की शासन व्यवस्था तथा सुविधा संचालन में उनका कोई योगदान नहीं होता।

सिंह स्वच्छता प्रिय प्राणी है। भोजन के बाद वह अपने मुँह के बाहरी भाग को पंजों और जीभ से चाट कर इस तरफ साफ करता है जैसे हम भोजन के बाद साबुन पानी और तौलिया की सहायता से मुँह ओर हाथ की सफाई करते हैं। गन्दगी उसे बिलकुल नापसन्द है। इसी प्रकार सिंह अपनी जाति वालों की हत्या नहीं करते जबकि मनुष्यों ने अगणित मनुष्यों को लड़ाइयाँ लड़कर मृत्यु के मुख में पहुँचाया है।

इंग्लैण्ड निवासी मि. जार्ज नेशनल पार्क के वरिष्ठ वन अभियन्ता के पद काम करते थे। उनका निवास अधिकतर इन्हीं के साथ रहा। उनकी पत्नी का नाम था- जाय एडमसन। इस युगल दम्पत्ति को स्वभावतः वन जीवों से प्रेम था पर जाय एडमसन तो उनके साथ इतनी अधिक घनिष्ठता स्थापित करने में सफल हुई कि उन्हें वनदेवी ही समझा ओर कहा जाने लगा।

संसार का सबसे बड़ा चिड़िया घर तंज़ानिया। पूरी लम्बाई 280 मील और क्षेत्रफल 4500 वर्ग मील है। ऊँचाई समुद्र तल से 4 हजार से लेकर 23 हजार फुट है। वन जीवों के लिए बने इस उन्मुक्त उद्यान को देखने के लिए संसार भर से लाखों यात्री लम्बी यात्राएँ करके आते हैं। कुछ समय पूर्व उसमें जानवरों की संख्या 366980 जाँची गई थी। और अनुमान था दस हजार के करीब ऐसे होगे, जो गिने नहीं जा सके। इसी उद्यान के पशु संरक्षक थे मि. जार्ज।

एक दिन गश्त पर गए पार्क के एक वन-रक्षक कर्मचारी की खोज खबर ली गई और पाया गाया कि उसे किसी सिंह ने मार डाला। बची हुई लाश से लेकर जहाँ तक सिंह के पंजे गये थे वहाँ तक पीछा किया गया और अन्ततः झाड़ी में छिपी सिंहनी को ढूँढ़ निकाला गया। मनुष्य के रक्त का एक बार चस्का लग जाने पर सिंह प्रायः नर भक्षी हो जाते हैं। इस संकट से बचने के लिए उन्हें समाप्त ही करना पड़ता है जार्ज को यही करना पड़ा। वन अभियन्ता के उत्तरदायित्व को निबाहने के लिए यह आवश्यक भी था कि वे उस नर-भक्षी को समाप्त करें। वे सधे हुए निशानेबाज थे सो गोलियाँ चलाकर आसानी से उस नर भक्षी को ढेर कर दिया।

मृत सिंहनी के माँद में कुछ ही दिन के जन्मे बहुत छोटे तीन बच्चे पाये गये। जार्ज को न जाने क्या सूझी कि वे उन बच्चों को पकड़ लाये और पत्नी के सामने खिलौनों के रूप में प्रस्तुत किया। उस समय उनका प्रयोजन कुछ समय मन बहलाने भर का था। सिंहों को पालने की बात उनके मस्तिष्क में रही भी नहीं थी। इतना बड़ा दुस्साहस करने और झंझट मोल लेने की उनकी तनिक भी इच्छा नहीं थी।

पत्नी ने पहले तो सिंह शावकों को आश्चर्य से देखा पीछे वे डरी किन्तु बाद में उनका वात्सल्य उभर आया और माता सदृश सहृदय व्यवहार करने लगीं। उन्होंने तीनों बच्चों को उसी चाव दुलार से पालना शुरू कर दिया जैसे कोई अपने बच्चों को सम्भालता है। आरम्भ में उन्हें दूध पीना सिखाना तक बड़ा कठिन प्रतीत हुआ। मुँह में रबड़ की नली डालकर दूध पिलाया गया। एक बार तो लगा कि वे इसके अभ्यस्त न हो सकेंगे ओर भूखों मर जायेंगे पर पीछे उन्हें समझ आई ओर दूध पीने को तैयार हो गये। इस सुधार के कारण ही उन्हें मृत्यु के मुख से बचाया जा सका।

कुछ ही महीनों में बच्चे उछलने कूदने लायक हो गये। परिवार के सदस्यों की तरह वे रहने में तो अभ्यस्त हो गये थे पर अपनी उछलने कूदने की आदत को क्या करते। घर में रखी वस्तुओं को मौका पाते ही वे तोड़ फोड़ डालते और फाड़ चीर कर रख देते। लालन पालन से भी यह कठिनाई अधिक बड़ी थी। इस शिर दर्द को हलका करने के लिए घर के एक हिस्से में उनके लिए बाड़ा बनाया गया, पर बन्द करते ही वे आसमान सिर पर उठा लेते और बाहर निकलने के लिए बेतरह हैरान करते। जार्ज महोदय उन्हें जल्दी ही किसी चिड़ियाँ घर में भेज देने के पक्ष में थे। उनकी पत्नी ने एक बच्चे को अपने पास ही रखने का आग्रह किया। निदान दो बच्चे हवाई जहाज से हॉलैण्ड के चिड़ियाँ घर के लिए भेज दिये गये। एक घर पर रखा गया। यह मादा थी। उसका ना रखा गया -एल्सा।

जाय एडमसन ने उस छोटी सिंहनी को अपनी दत्तक पुत्री की तरह पालना शुरू किया। वे अपने हाथ से उसे भोजन कराती। उसी के लिए बनाई गई चारपाई पर सुलाती, मच्छरों से बचाने के लिए मशहरी लगातीं। सर्दी न लग जाय इसके लिए रजाई ओढ़ाती। इस प्रेम व्यवहार से प्रभावित हुए बिना एल्सा भी न रह सकी। वह अपनी इस नर शरीर धारी मौसी के कृतज्ञता पूर्ण हाथ पैर चाटती, गोदी में जा बैठती, और सिर खुजलाए जाने का आनन्द लेती। बिल्ली की तरह वह पीछे ही लगी फिरती। इन मौसी भतीजी में प्यार का रिश्ता दिन-दिन सघन होता गया और स्थिति यहाँ तक पहुँची कि कभी एल्सा अपना सिर जाय एडमसन की गोदी में रखकर घण्टों निद्रा मगन रहती और कभी मौसी को तकिया बना एल्सा चुपचाप पड़ी रहती।

जब तक तीनों बच्चे साथ रहे तब तक उन्हें बहुत प्रसन्नता रही। पर जब दो बच्चे हॉलैण्ड भेज दिये गये तो एल्सा अकेलापन महसूस करके उदास रहती। वह अपनी बहिनों को ढूँढ़ने दूर तक आस-पास को झाड़ियों में जाती और जब वे नहीं मिलते तो दुखी होकर वापिस लौट आती। जिस गाड़ी में बिठा कर उसकी बहिनों को हवाई अड्डे तक पहुँचाया गया था उसे वह पहचान गई थी वस्तु उस से सदा दूर रहती उसे भय हो गया था कि कही वही गाड़ी उसे भी कही न भगा ले जाय। भाई-बहिनों का प्यार सिंह शावकों में आमतौर से नहीं होता।

दो वर्ष बाद एडम्स दम्पत्ति हॉलैण्ड के अजायब घर में भी दोनों सिंहनियों को देखने गये। कई वर्ष तक बिछुड़े रहने के बाद भी जब दोनों ने एक दूसरे को देखा तो प्यार की मधुर स्मृति बह निकली। दोनों सिंहनियाँ कटघरे के पास एडम्स से सट कर आ खड़ी हुई और संतुष्ट नेत्रों से उन्हें चाटती रही। उन्होंने भी अपनी इन पोष्य सन्तानों की पीठ पर देर तक हाथ फिराने का क्रम जारी रखा दर्शकों के लिए यह दृश्य अनोखे कौतूहल का विषय था।

यों एल्सा की चारपाई अलग रखी गई थी और जार्ज दम्पत्ति की चारपाईयों के पास ही था। फिर भी उससे अलग सोने में सन्तोष न होता और यह प्रयत्न करती कि अपनी खाट छोड़कर उन्हीं के पलंग पर जा सोये। कई बार तो उसे गहरी नींद में से जगाना उचित न समझा जाता तो वे लोग अलग सोकर किसी प्रकार गुजर करते। यों भोजन उसे स्वयं ही करने को दिया जाता था पर वह चाहती यह भी कि उसे प्यार पूर्वक हाथ से खिलाया जाय। जब इसकी इच्छा पूरी न होती तो ही उदास मन अपने आप खाना खाती।

यह स्नेह सद्भावना का ही चमत्कार था कि सिंह की क्रूरता इस कदर मृदुल हो गई कि उसको परम्परागत आक्रमणकारी स्वभाव में ममता और आत्मीयता के गहरे अंकुर जम गये और उसकी भयंकरता एक प्रकार तिरोहित हो गई।

वातावरण ने एल्सा की प्रकृति ही बदल दी थी, वह मास तो खाती थी पर शिकार मारना नहीं आता था। जाय एडमसन के घर के आस-पास तरह-तरह के पक्षी और हिरन, जिराफ़ आदि पशु निर्भय होकर घूमते रहते थे। उसने कभी किसी पर हाथ साफ नहीं किया। मरे हुए जानवर जब सामने डाले जाते तो वह भली प्रकार देख लेती कि कही यह जीवित तो नहीं है। उसने अपनी प्रकृति में शाकाहारी भोजन को सम्मिलित कर लिया था। रोटी, सब्जी और फल भी उसे प्रिय लगते थे, और उन्हें वह चावपूर्वक खाती थी।

एल्सा को बहुत से शब्दों का और इशारों का अर्थ मालूम हो गया था। इसलिए उसे कुछ निर्देश करना उतना कठिन नहीं रह गया था। जो उसे कहा जाता उसे वह कभी उत्साहपूर्वक, कभी आलस के साथ पूरा करती थी। अवज्ञा तो उसने शायद ही कभी की हो।

एल्सा क्रमशः बड़ी होती चली गई। दूसरे लोग उसे शेरनी समझ कर डरते पर वस्तुतः उसका आदत बहुत की सौम्य थी। आक्रमण करने की बात उसे सूझती ही न थी। ऐडम्स वन यात्रा पर जाते तो अपने काफ़िले के साथ एक पतली जंजीर में बाँधकर उसे भी ले जाते। गधे, खच्चर, कुत्ते, आदमी और यह पालतू शेर जब बिना किसी भेद भाव के आपस में नोंक-झोंक करते हुए रास्ता काटते तो किसी को भी ऐसा नहीं लगता था कि कोई खतरा साथ चल रहा है।

धीरे-धीरे एल्सा प्रौढ़ हो गई। उसके भीतर प्रौढ़ता की उमगे उभरी और साथ की आवश्यकता अनुभव करती हुई व्याकुलता प्रदर्शित करने लगी। जार्ज ने उसकी मनःस्थिति को समझा और जंगल के उस क्षेत्र में जा छोड़ा जिधर सिंह रहा करते थे। यौवन गन्ध के आकर्षण ने उसे सिंह साथी मिला दिया और वह फिर उधर ही रहने लगी।

एल्सा इन उलझन भरे दिनों में भी अपनी मौसी को भूल नहीं पाती थी और उनसे मिलने जा पहुँचती थी पर साथ में क्रूर प्रकृति का साथी रहने के कारण उसे वहाँ से जल्दी ही भगा दिया जाता या भागना पड़ता।

सिंह जाति की सुहागरातें भी विचित्र होती है। वे लगातार चार-पाँच दिन तक हर दिन कई कई बार जोड़ा मिलाते रहते हैं। तब कहीं वे गृह स्थापना में सफल होते हैं। इन दिनों सिंह दम्पत्ति अपने ही गोरखधन्धे में उलझे रहते हैं और खाने पीने तक की सुध भूल जाते हैं। एल्सा की लगातार गैर हाजरियों से जाय एडम्सन को बहुत चिन्ता हुई पर जब उसे सिंह प्रणय प्रक्रिया की जानकारी मिली तो चुप हो गई। गर्भधारण करने के उपरान्त फिर नया क्रम चलने लगा। एल्सा को पतिव्रता धर्म के अनुसार अधिक समय तो ससुराल में ही रहना पड़ता था, पर नैहर को सर्वथा छोड़ बैठने को भी तैयार न हुई। पति ने आखिर समझौता कर लिया और ससुराल तक अपनी नव वधू को हर रोज पहुँचाने ओर वापिस लाने के लिए सहमत हो गया।

एल्सा अपने पति के साथ रहती तो भी उसे अपने नैहर की याद भूलती न थी। वह सायंकाल एक फेरी लगाने जरूर आती । उसका पति भी साथ आता पर वह दूर ही बैठा रहता और यह इन्तजार करता रहता कि उसकी पत्नी कब वापिस आये और कब घर चले। बहुत दिन बाद वह भी बँगले को पहचान गया तो ससुराल में स्वादिष्ट भोजन पाने के लालच में कुछ आगे तक खिसक आता और स्वागत सत्कार का लाभ लेकर फिर पीछे खिसक जाता। ऐडम्स परिवार के साथ वह घनिष्ठता तो न जोड़ सका पर इतना जरूर समझ गया कि यह हमारे शुभ-चिन्तकों का घर है। इसलिए उसने न तो कभी इस क्षेत्र में स्वयं कुछ उपद्रव किया और न किसी अन्य सजातीय को इधर पैर रखने दिया। वह घर-जमाई तो न बन सका पर वफादार सुरक्षा अधिकारी तो आजीवन ही बना रहा।

गृहस्थ बन जाने के बाद एल्सा यों वनवासी हो गई थी और उसका निश्चित निवास पति गृह बन गया था तो भी वह अपने मौसी-मौसा को भूली नहीं और न वे लोग ही उसे भुला सके। जार्ज और जाय ऐडम्सन जब कभी बन बिहार को जाते एल्सा से भेंट करने का उनका प्रोग्राम अवश्य रहता। उन्हें पता रहता था कि वह किधर कहाँ होनी चाहिए। अस्तु वे पुकार लगाते और देखते कि एल्सा किधर से भी दौड़ी चली आ रही है और उनसे लिपटकर अपनी पूर्व स्थिति पर आँसू बहा रही है। यों उसे गृहस्थ बनना तो पड़ा ही पर उसे यह बहुत महँगा पड़ा। माता-पिता के प्यार से उसे पति का प्यार घटिया भी लगा और महँगा भी पड़ा।

कुछ समय बाद एल्सा ने तीन बच्चे दिये। दो नर एक मादा। सिंहों की प्रकृति है कि वे अपने बच्चों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और उनकी सुरक्षा के सन्दर्भ में किसी का भी विश्वास नहीं करते। यह प्रकृति एल्सा की भी रही। वह अपने बच्चों को छिपाकर झाड़ी में रख आती और तब नैहर आती। जार्ज को उसकी चालाकी मालूम थी। वे एक दिन बच्चों की झाड़ी के समीप जा पहुँचे। इस पर एल्सा ने नाराजगी व्यक्त की, और दूसरे दिन दूर की झाड़ी में उन्हें छिपा आई। लेकिन यह छिपाव-दुराव अधिक दिनों तक न रहा। बच्चे थोड़े बड़े हो गये तो वह उन्हें ननिहाल दिखाने ले गई। नानी ने उनका भी स्वागत सत्कार किया फिर तो वे भी अभ्यस्त हो गये और माँ को धकेल कर नानी के यहाँ जल्दी-जल्दी चलने के लिए विवश करने लगे वहाँ उन्हें अधिक सुविधाएँ अधिक आव भगत और अधिक खेलने-कूदने का अवसर जो मिलता था।

बच्चे भी धीरे-धीरे ननिहाल में इतने घुल-मिल गये कि नानी का कुर्ता पकड़कर लटकने में उन्हें आनन्द आने लगा। कुछ समय तक तो एल्सा का यह प्रयत्न रहा कि बच्चों के साथ कोई अधिक घुलने मिलने न पाये। इसमें उसे सुरक्षा में खतरा पड़ने का डर रहता होगा पीछे जब उसने समझ लिया कि उसका भय आशंका मात्र ही था तो उसने पूरी छूट दे दी और कभी कभी बच्चों को वहीं छोड़कर घूमने चली जाने लगी।

नानी ने अपने धेवती धेवतों का चाव पूर्वक नामकरण किया दो लड़के थे उनके नाम रखे गये जस्फा और गोपा, लड़की का नाम रखा गया-छोटी एल्सा माँ बड़ी एल्सा बेटी छोटी एल्सा

यह लाड़ दुलार विधाता से अधिक दिन न देखा गया। प्रसूति के छः महीने वाद एल्सा बीमार पड़ी और मर गई। धेवती धेवतों के लालन पालन का भार नानी-नाना के कन्धों पर आया। बाप तो उन्हें अनाथ छोड़कर एक तरफ खिसक गया। पर नानी के मन पर एल्सा के प्रति जो स्नेह वात्सल्य था उसने अपनी धारणा कुंठित नहीं होने दी और यह तीनों बच्चे भी उन्हीं के आश्रम में भली प्रकार पाले गये। पीछे जब वे प्रौढ़ हो गये तो नेशनल पार्क में सर्वथा स्वतन्त्र जीवन जीने के लिए उन्हें उन्मुक्त छोड़ दिया गया।

एडम्सन द्वारा उन्मुक्त वातावरण में सिंह पाले जाने ओर उनकी क्रूरता निरस्त करके सौम्य स्वभाव उत्पन्न करने की कुशलता को सर्वत्र सराहा गया और उस अद्भुत कर्तृत्व हो देखने के लिए संसार भर के लोग उनके पास आये। पत्र प्रतिनिधियों ने इस संदर्भ में उनसे तरह-तरह के प्रश्न पूछे। उनका जो उत्तर वे देते उसका संक्षिप्त सारांश यही होता कि प्रेम और सौजन्य की शक्ति सर्वोपरि है। यदि हमारी सद्भावना एवं आत्मीयता बनावटी न हो तो उसका प्रभाव दूसरों पर भी अवश्य पड़ेगा फिर भले ही उसका प्रकृति कितनी ही क्रूरता युक्त क्यों न रही हो। वे इस बात पर बहुत जोर देती थीं कि यह भटके हुए दुराग्रही और अपराधी प्रकृति के मनुष्यों को स्नेह सौजन्य भरे वातावरण में रखा जा सके तो उन्हें सज्जन ओर संभ्रान्त बनाया जा सकना न तो अशक्य ही होगा और न कठिन ही प्रतीत होगा।


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