संगीत की जीवनदात्री क्षमता

August 1973

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पाश्चात्य देशों में पिछले दिनों संगीत द्वारा रोग निवारण की दिशा में बहुत शोध कार्य हुआ है। तदनुसार ऐसे सूत्र ढूँढ निकाले गये हैं, जिनके सहारे विभिन्न रोगों के रोगियों की चिकित्सा विभिन्न स्वर प्रवाहों और वाद्य-यन्त्रों की सहायता से की जाती है। इंग्लैण्ड के डाक्टर मीड़ और अमेरिका के एडवर्ड पोडीलास्की ने अपनी लम्बी शोध का निष्कर्ष यह बताया कि संगीत से नाड़ी संस्थान में एक विशेष प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है, जिसके सहारे शरीरगत मल विसर्जन की शिथिलता दूर होती है। मल, मूत्र, स्वेद, कफ़ आदि मल जब मन्द गति से रुक-रुक कर निकलते हैं, तो ही विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। यदि मलों का विसर्जन ठीक तरह से होने लगे, तो फिर रोगों की जड़ ही कट जाय। इस संदर्भ में किस मल का विसर्जन आवश्यक है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए तद्नुरूप गीतवाद्य की व्यवस्था की जा सके, तो रोगों के निवारण में सहज ही सफलता मिलेगी। संगीत चिकित्सा का यही आधार है।

सोवियत रूस के अस्पतालों में प्रो. एस. वी. फैकफ ने संगीत के प्रभाव का अन्वेषण करके यह पाया है कि उस उपचार का प्रभाव नाड़ी संस्थान की विकृतियों पर और मनोविकारों पर बहुत ही सन्तोष जनक मात्रा में होता है। डॉ. वाल्टर एच. वालसे के अनुसार जुकाम, पीलिया, अपच, यकृत शोध, रक्तचाप जैसे रोगों की स्थिति में उपयोगी संगीत का अच्छा प्रभाव होता है। जर्मनी के मनोरोग चिकित्सक डॉ. वाल्टर क्यूग का कथन है कि मनोविकारों के निवारण में संगीत को सफल उपचार के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।

लन्दन की 'हॉस्पिटल एण्ड हैल्थमैन मैनेजमेंट' नामक पत्रिका में इंग्लैण्ड के छः ऐसे अस्पतालों द्वारा 'संगीत का रोगियों पर प्रभाव, विषय पर किये गये प्रयोग-परीक्षणों का विवरण छपा है, जिसमें बताया गया है कि प्रसूति गृहों में जच्चा-बच्चा की मनःस्थिति में उत्साह बनाये रखने में संगीत ने बहुत योगदान दिया और अन्य कष्ट पीड़ितों की उदासी दूर करके उनकी जीवनी शक्ति को रोग निवारण कर सकने की दृष्टि से अधिक समर्थ बनाया। अमेरिका के डाक्टर एस. जे. लोडन ने गायकों, वादकों के स्वास्थ्य का परीक्षण करके यह पाया है कि वे दूसरों की अपेक्षा कहीं कम बीमार पड़ते हैं।

संगीत को कभी मनोरंजन का एक साधन समझा जाता था, पर वैसी स्थिति नहीं रही। वैज्ञानिकों का ध्यान उसकी जीवन दात्री क्षमता की ओर गया है और उसे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की विकृतियों के निराकरण के लिए प्रयुक्त करने के प्रयोग बड़े उत्साहपूर्वक हो रहे हैं।

संगीत चिकित्सा का प्रचलन अब क्रमशः बढ़ता ही जा रहा है। मनोविकारों के समाधान में उसके आधार पर भारी सफलता मिल रही है। शरीरगत रुग्णता पर नियन्त्रण प्राप्त करने में भी निकट भविष्य में संगीत की स्वर लहरियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करने जा रही है। इन दिनों गीत-वाद्य का उथला उपयोग मनोरंजन और लोकरंजन तक सीमित होकर रह गया है। भविष्य में उसे एक कदम आगे बढ़कर मनुष्य की शारीरिक और मानसिक स्वस्थता का सन्तुलन बनाये रखने का उत्तरदायित्व वहन करना है। इससे आगे उसे आत्मा के महासागर में से उल्लास और आनन्द के मणिमुक्तक ढूँढकर बाहर लाने हैं।

डॉ. ऐरोल्ड आईवर का एक लेख लन्दन की मेडिकल न्यूज पत्रिका में छपा है, जिसमें उन्होंने संगीत द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण और दीर्घ जीवन की सम्भावनाओं पर शोधपूर्ण प्रकाश डाला है। उन्होंने कुछ विश्व प्रसिद्ध गायकों की सूची प्रस्तुत की है और बताया है कि पूछने पर वे लोग अपने अच्छे स्वास्थ्य का आधार अपनी संगीत प्रिय अभिरुचि को ही बताते हैं। ऐसे लोगों में उन्होंने स्विट्जरलैंड के 88 वर्षीय पियेरे मोन्टी, जर्मनी के 78 वर्षीय ओट्टो क्लेपर, इटली के 80 वर्षीय सरकेट वेर्डी के नाम का विशेष रूप से उल्लेख किया है। इन लोगों ने न केवल सिद्धान्त रूप से वरन् प्रयोग-परीक्षणों द्वारा भी यह सिद्ध किया है कि संगीत को स्वास्थ्य संवर्धन का एक महत्त्वपूर्ण आधार बनाया जा सकता है और उससे औषधि उपचार जैसा ही लाभ उठाया जा सकता है।

रूस के क्रीजिया स्वास्थ्य केन्द्र ने चिकित्सा में औषधि उपचार के साथ-साथ संगीत को भी एक उपाय माना है। इस संदर्भ में वहाँ देर से प्रयोग चल रहे है, जिनमें उत्साहवर्धक सफलता मिल रही है। अनिद्रा, उदासी, सनक जैसे मस्तिष्कीय रोगों में तो इस उपचार ने औषधि प्रयोग की सफलता को कहीं पीछे छोड़ दिया है।

शरीर पर संगीत का प्रभाव पड़ता है, यह तथ्य स्वीकार करने के साथ-साथ मनोविज्ञानवेत्ताओं का प्रतिपादन यह है कि इस आधार पर मनोविकारों के नियन्त्रण पर अधिक और अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है। सनक और पागलपन के निवारण में संगीत को आवश्यक उपचार क्रम में सम्मिलित करने के लिए जोर दिया जा रहा है।

न्यूयार्क के ख्याति नामा चिकित्सक डॉ. एडवर्ड पोडीलास्की ने अपने रोगियों को गायन की शिक्षा देकर उनके फेफड़ों को मजबूत बनाने और रक्त संचार को व्यवस्थित बनाने में अच्छी सफलता पाई। वे कहते हैं स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से संगीत एक बहुत मृदुल और सुखद व्यायाम है। उसका लाभ बाल-वृद्ध, दुर्बल-समर्थ सभी अपने-अपने ढंग से प्राप्त कर सकते हैं।

एक दूसरे डॉक्टर वाल्टर एच. वालसे ने जिगर, आमाशय, आँतें और गुर्दे की बीमारी पर संगीत का उपयोगी प्रभाव स्वीकार किया है। पाचन और मल विसर्जन की क्रिया को उत्तेजित और व्यवस्थित करने में उन्होंने संगीत के प्रभाव को स्वीकार किया है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वर्नर मैकफेडन भी संगीत को उपयोगी व्यायाम मानते थे। डॉ. लीक का कथन है कि यदि संगीत को एक दैनिक, शारीरिक एवं मानसिक आवश्यकता के रूप में स्वीकार किया जा सके तो मनुष्य जाति का बहुत हित साधन हो सकता है। दार्शनिक पैथागोरस ने संगीत की उपयोगिता स्वास्थ्य-संरक्षण, चरित्र-गठन और आत्मिक-प्रगति के इन तीनों प्रयोजनों को पूरा कर सकने की तीनों दृष्टियों से स्वीकार किया है।

आमेलिटा नामक एक गायिका यूरोप और अमेरिका में बहुत ख्याति प्राप्त कर चुकी है। वह जितनी मधुर कंठी थी, उतनी ही सुन्दर और सुडौल भी। वह जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ी। अपने स्वास्थ्य की स्थिरता का आधार वह तन्मय गायन को ही बताया करती थी। उसकी अन्य सहेलियाँ भी स्वास्थ्य, सौंदर्य और दीर्घजीवन का लाभ उठा सकीं। वे भी इसे संगीत देवता का वरदान मानती थीं।

यूनान के चिकित्सक गोलमन तथा मेरिनन अपने समय के प्रख्यात संगीत चिकित्सक थे। गायन और वाद्य के विविध उतार-चढ़ावों का आश्रय लेकर कतिपय रोगियों को कष्ट साध्य बीमारी की व्यथाग्रस्त स्थिति से छुड़ाते थे। सर्प, बिच्छू जैसे विषैले जन्तुओं के काटने पर उसके दुष्प्रभाव से मुक्ति दिलाने के लिए अभी भी विशेष वाद्य यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है।

योरोप के इतिहास में ऐसे तीन सम्राटों का वर्णन मिलता है, जिन्हें पागलपन की स्थिति से छुटकारा दिलाने में औषधियाँ असफल रहीं, किन्तु संगीत ने उस प्रयोजन को पूरा किया। इंग्लैण्ड के सम्राट जार्ज तृतीय को अन्यमनस्कता - मेलेन कोलिया - ने धर दबोचा था। इसी प्रकार इसराइल के शासक - साल और स्पेन के बादशाह फिलिप पंचम लगभग पागल ही हो चुके थे। उनकी चिकित्सा कुशल कलावन्तों ने संगीत के माध्यम से की - फलस्वरूप उन्हें विपत्ति से छुटकारा भी मिल गया।

सुप्रसिद्ध संगीतकार तानसेन के बारे में यह कहा जाता है कि वे जन्मतः गूँगे थे। सात वर्ष की आयु तक उन्हें बोलना बिलकुल भी नहीं आता था। उनके पिता मकरन्द और माता कालन्दीबाई ने अपने पुत्र के गूँगेपन का उपचार करने के लिए सामर्थ्य भर उपाय कर लिया, पर कोई सफलता न मिली। अन्त में एक उपाय कारगर हुआ, उन्हें तत्कालीन मूर्धन्य गायक मुहम्मद गोस की कृपा प्राप्त हुई। वे अपने साथ-साथ तानसेन को भी गाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इस पर बच्चे की वाणी खुली। वह न केवल बोलने लगा, वरन् मधुर कंठ से गाने भी लगा। मुहम्मद गोस के बारे में कहा जाता है कि उनने अन्य कई कष्टसाध्य रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को अपने संगीत की मधुर ध्वनियाँ सुनाने का उपचार करके रोग मुक्त किया था।

उत्तर प्रदेश की रामपुर स्टेट के नवाब के यहाँ सूरज खाँ नामक एक गायक आते थे। उन्होंने संगीत के आधार पर नवाब को लकवे से मुक्ति दिलाई थी। इसी प्रकार उनने अन्य कितने ही रोगी विभिन्न राग–रागनियाँ सुनाकर रोग मुक्त किये थे।

मनुष्यों तक ही संगीत का प्रभाव सीमित नहीं है, वरन् उसे पशु-पक्षी भी उसी चाव से पसन्द करते हैं और प्रभावित होते हैं। संगीत सुनकर प्रसन्नता व्यक्त करना और उसका आनन्द लेने के लिए ठहरे रहना यही सिद्ध करता है कि वह उन्हें रुचिकर एवं उपयोगी प्रतीत होता है। अन्य जीवों की जन्मजात प्रकृति यही होती है कि उनकी स्वाभाविक पसन्दगी उनके लिए लाभदायक ही सिद्ध होती है। पशु-पक्षियों पर संगीत का अच्छा प्रभाव देखते हुए इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि वह मनुष्यों की तरह अन्य जीवों के लिए भी न केवल प्रिय वरन् उपयोगी भी है।

पशु मनोविज्ञानी डा. जार्जकेर वित्स ने छोटे जीव-जन्तुओं की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव का लम्बे समय तक अध्ययन किया है। घर में बजने वाले पियानो की आवाज सुनकर चूहों को अपने बिलों में शान्तिपूर्वक पड़े हुये उन्होंने कितनी ही बार देखा है। बेहिसाब उछल-कूद करने वाली चूहों की चाण्डाल चौकड़ी, मधुर वाद्य-यन्त्र सुनकर किस प्रकार मन्त्र मुग्ध होकर चुप हो जाती है, यह देखते ही बनता है।

दुधारू पशुओं को दुहते समय यदि संगीत ध्वनि होती रहे तो वे अपेक्षा कृत अधिक दूध देते हैं।

सील मछली का संगीत प्रेम प्रसिद्ध है। कुछ समय पूर्व पुर्तगाल के मछुआरे अपनी नावों पर वायलिन बजाने की व्यवस्था बनाकर निकलते थे। समुद्र में दूर-दूर तक वह ध्वनि फैलती तो सील मछलियाँ सहज ही नाव के इर्द-गिर्द इकट्ठी हो जातीं और मछुआरे उन्हें जाल में पकड़ लेते।

घरेलू कुत्ते संगीत को ध्यानपूर्वक सुनते और प्रसन्नता व्यक्त करते पाये जाते हैं। वन विशेषज्ञ जार्ज ह्वेस्ले ने अफ्रीका के कांगो देश में चिंपांजी तथा गुरिल्ला वनमानुष को संगीत के प्रति सहज आकर्षित होने वाली प्रकृति का पाया है। उन्होंने इन वानरों से संपर्क बढ़ाने में मधुर ध्वनि वाले टेपरिकार्डरों का प्रयोग किया और उनमें से कितनों को ही पालतू जैसी स्थिति का अभ्यस्त बनाया। नार्वे के कीट विज्ञानी डॉ. हडसन ने शहद की मक्खियों को अधिक मात्रा में शहद उत्पन्न करने के लिए संगीत को अच्छा उपाय सिद्ध किया है। अन्य कीड़ों पर भी वाद्य यन्त्रों के भले-बुरे प्रभावों का उन्होंने विस्तृत अध्ययन किया है और बताया है कि कीड़े भी संगीत से बिना प्रभावित हुए नहीं रहते।

ह्यूज फ्रेयर ने जुलूलेण्ड फार्म हाउस की एक घटना का विवरण छपाया है, जिसके अनुसार एक महिला वायलिन वादक को उस जंगल की झोपड़ी में दो भयंकर सर्पों का समाना करना पड़ा था और वह मरते-मरते बची थी। बात यों थी, कि उसे आधी रात बीत जाने पर भी नींद न आई, तो उठकर वायलिन बजाने लगी। इतने में कोबरा सर्पों का एक अधेड़ जोड़ा, उस स्वर लहरी पर मुग्ध होकर घर में घुस गया और फन फैलाकर नाचने लगा। वादन में व्यस्त महिला को पहले तो कुछ पता न चला, पर जब उसे दो छायाएँ लगातार हिलती-जुलती दिखीं, तो उसने पीछे मुँह मोड़कर देखा और पाया कि दोनों सर्प मस्ती के साथ संगीत पर मुग्ध होकर लहरा रहें है।

महिला एक बार तो काँप उठी, पीछे उसने विवेक से काम लिया और खड़े होकर वायलिन बजाती हुई उलटे पैरों दरवाजे की ओर चलने लगी। दोनों साँप भी साथ-साथ चल रहे थे। दूसरे कमरे में उसका पति सो रहा था। वहाँ उसने जोर से वायलिन बजाया - वह जगा। इशारे में महिला ने वस्तु स्थिति समझाई। पति ने बन्दूक भरी और किवाड़ों के पीछे निशाना साधकर बैठा। साँप जब सीध में आ गये, तब उसने गोली चलाई। एक तत्काल मर गया, दूसरा घायल हो गया। तब कहीं उस काल-रज्जु के रूप में आये हुए मृत्यु दूतों से महिला का पीछा छूटा।

भीलवाड़ा, राजस्थान के एक गाँव सलेमपुर का समाचार है कि वहाँ का निवासी एक युवक ट्रांजिस्टर बजाता हुआ गाँव लौट रहा था। तो संगीत की ध्वनि से मोहित एक सर्प भी पीछे-पीछे चलने लगा। बहुत दूर साथ चलने पर जब साँप का आभास युवक को हुआ, तो वह डर गया और ट्रांजिस्टर पटक कर भागा। सर्प ट्रांजिस्टर के निकट तब तक बैठा रहा जब तक कि संगीत बजता रहा। बन्द होने पर चला गया। पीछे सर्प की लकीर देखने से प्रतीत हुआ कि वह एक मील तक इस संगीत श्रवण के लिए पीछे-पीछे चला आया था।

यह घटनाएँ बताती है कि सर्प जैसे भयंकर और क्रोधी प्रकृति के प्राणी को संगीत कितना अधिक प्रभावित एवं भाव-विभोर बना देने में समर्थ है।

गन्ना, धान, शकरकन्द, नारियल आदि के पौधों और पेड़ों के विकास पर क्रमबद्ध संगीत का उत्साहवर्धक प्रभाव पड़ता है। यह प्रयोग भारत के एक कृषि विज्ञानी संगीतकार डाक्टर टी.एन सिंह ने कुछ समय पूर्व किया था। कोयम्बटूर के सरकारी कृषि कॉलेज ने अन्वेषण से पौधों पर संगीत के अनुकूल प्रभाव की रिपोर्ट दी है।

मनुष्य, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े ही नहीं, वृक्ष वनस्पतियों पर भी संगीत का उपयोगी प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं समस्त चेतन-सृष्टि की तरह जड़-सृष्टि भी उससे प्रभावित होती है। उन्हीं तथ्यों के आधार पर संगीत को विश्व का प्राण कहा गया है।



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