सीधी सरल जिन्दगी जिएँ दीर्घजीवी बनें

August 1973

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अमेरिकी जन-गणना बताती है कि इस देश में कुल मिलाकर 26 हजार व्यक्ति ऐसे हैं जो लगभग सौ वर्ष की आयु पर पहुँच चुके हैं जबकि सामान्य मनुष्य उससे कहीं कम आयु में प्रयाण कर जाते हैं तब इनके लिए इतनी लम्बी अवधि तक जीवित रह सकना कैसे सम्भव हुआ? इस प्रश्न का समाधान आवश्यक समझा गया और उपयोगी भी। अस्तु इस सम्बन्ध में खोज की गई महत्त्वपूर्ण उत्तर प्राप्त किये गये।

डॉ. जार्ज गैलुष और डॉ. एविनहिल ने इस खोज में विशेष दिलचस्पी ली ओर उपरोक्त 26 हजार में से 95 वर्ष से अधिक आयु के 402 के साथ विशेष भेंट का प्रबन्ध किया और दीर्घ जीवन सम्बन्धी जानकारी के लिए कितने ही प्रश्न पूछे। उन 402 में 242 पुरुष और 250 महिलायें थीं। संख्या अनुपात के हिसाब से रखी गई, क्योंकि दीर्घ जीवियों में पुरुषों की अपेक्षा महिलायें ही अधिक थीं।

आशा यह की गई थी कि ऐसे उत्तर प्राप्त होंगे जिनसे दीर्घ जीवन सम्बन्धी किन्हीं अविज्ञात रहस्यों पर से पर्दा उठेगा और कुछ ऐसे नये गुर प्राप्त होंगे जिन्हें अपनाकर दीर्घ-जीवन के इच्छुक लोग लम्बी आयुष्य भोगने का मनोरथ पूरा कर सकें। तैयारी यह भी की गई थी कि जो उत्तर प्राप्त होंगे उन्हें अनुसन्धान का विषय बनाया जाएगा और देखा जाएगा कि उपलब्ध सिद्धान्तों को किस स्थिति में किस व्यक्ति के लिए किस प्रकार प्रयोग कर सकना सम्भव है। किन्तु जब उत्तरों का संकलन पूरा हो गया तो सभी पूर्व कल्पनायें और योजनाएँ निरस्त करनी पड़ी। जैसी कि आशा थी कोई अद्भुत रहस्य मिल नहीं सके। वरन् उलटे यह प्रतीत हुआ कि - जो इस विषय में अधिक लापरवाह रहे हैं वही अधिक जिये हैं, हाँ इतना जरूर रहा है कि उनने सीधा और सरल जीवन क्रम अपनाया था।

आप लम्बी अवधि तक कैसे जिये? इसके उत्तर में 25 प्रतिशत ने कहा - हमें इसका कोई रहस्य नहीं मालूम। यह अनायास ही हो गया। 22 प्रतिशत ने इसे ईश्वरेच्छा बताया। 27 प्रतिशत ने कहा वे अपनी समस्याओं की ओर से उदासीन रहे हैं और हँसती खेलती जिन्दगी काटते रहे हैं। 26 प्रतिशत ने परिश्रमशीलता और नियमितता को कारण बताया। 11 प्रतिशत ने कहा हमारे पूर्वज दीर्घ-जीवी होते रहे हैं सो हमें भी उनकी विरासत मिली। केवल 3 प्रतिशत ने ही नियमित आहार -बिहार और जानबूझ कर दीर्घ जीवन के लिए प्रयत्नशील रहने की बात बताई। इन वृद्ध व्यक्तियों के आहार-बिहार का अन्वेषण किया गया तो इतना पता जरूर लगा कि उनमें से तीन चौथाई सादा-जीवन जीते रहे हैं उनका आहार बिहार सरल रहा है और मानसिक दृष्टि से उन पर कोई अतिरिक्त तनाव या दबाव नहीं रहा। उनने निश्चिन्त ओर निर्द्वंद्व मनन स्थिति में जिन्दगी के दिन बिताए हैं।

दीर्घ जीवन के रहस्यों का पता लगाने के लिए शरीर शास्त्री विभिन्न प्रकार के खोजे करते रहे हैं और विभिन्न निष्कर्ष निकालते रहे हैं पर यह निष्कर्ष सबसे अद्भुत है कि हलका फुलका और सीधा सरल जीवनक्रम अपनाकर भी लम्बी आयुष्य प्राप्त की जा सकती है।

पूछताछ में दीर्घायुष्य नर नारियों द्वारा जो उत्तर डॉ. गैलुप और डॉ. हिल को मिले वे आश्चर्यजनक भले ही न हो पर कौतूहल वर्धक अवश्य है। वे ऐसे नये तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं जिन पर इन नवीन आविष्कारों की खोज में आकुल व्याकुल लोगों को सन्तोष हो सकना कठिन है पर उनसे मनोरंजन हर किसी का हो सकता है और सोचने के लिए एक नया आधार मिल सकता है कि क्या सभ्यता के इस युग में ‘दकियानूसी’ पर भी दीर्घ-जीवन का एक आधार हो सकता है?

115 वर्षीय सिनेसिनोंटी ने नशेबाजी से परहेज रखा। 65 वर्षीय राज रावर्टस ने कहा उन्नत पकवान कभी नहीं रुचे। 66 वर्षीय दन्त चिकित्सक रहैटस् को सदा से मस्ती सूझती रही है। वह गवैयों की पंक्ति का अभी भी जावेवला है और अपने पुराने गीतों तथा भर्राये स्वर से लोगों का मनोरंजन नहीं कौतूहल आवश्यक बढ़ाता है।

लुलु विलियम ने बताया उनने सदा पेट की माँग से कम भोजन किया है और पेट में कभी कब्ज नहीं होने दिया। श्रीमती मौंगर 103 वर्ष की है वे कहती है आलू और रोटी ही उनका प्रिय आहार रहा है तरह तरह के व्यंजन न तो उन्हें रुचे न पचे।

स्त्रियों में से अधिकांश ने कहा अपनी चर गृहस्थी में वे इतनी गहराई से रमी रहीं कि उन्हें यह आभास तक नहीं हुआ कि इतनी लम्बी जिन्दगी ऐसे ही हँसते खेलते कट गई। उन्हें तो अपना बचपन कल परसों जैसी घटना लगता है।

106 वर्षीय हैफगुच नामक गड़रिया ने कहा उसने अपने को भेड़ों में से ही एक माना है और ढर्रे के जीवनक्रम पर सन्तोष किया है। न बेकार ही महत्त्वाकाँक्षाएँ सिर पर ओढ़ी और न सिर खपाने वाले झंझट मोल लिये। केलोरडे का कथन है एक दिन जवानी में उसने ज्यादा पीली और बीमार पड़ गया। तब से उसने निश्चय किया कि ऐसी चीजें न खाया पिया जायेगा जो लाभ के स्थान पर उलटे हानि पहुँचाती है। मेर्नवोके ने जोर देकर कहा उसे भली भाँति मालूम है कि जो ज्यादा सोचते ओर ज्यादा खोजते हैं वे ही जल्दी मरते हैं इसलिए उसने मस्तक को चिन्ता और बेचैनी से सदा बचाये रखा है, लड़कपन को उसने मजबूती से पकड़ा है और इस डूबती उम्र तक उसे हाथ से जाने नहीं दिया।

यह एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया कि दीर्घ जीवी परिवार की सन्तानें भी दीर्घजीवी होती है। जिनके बाप दादे कम उम्र में चल बसते रहे हैं उनकी सन्तानें भी बहुत करके बिना किसी बड़े कारण के अल्पायु ही भोग सकी है ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे क्या रहस्य है यह निश्चित रूप से तो नहीं मालूम पर इतना कहा जा सकता है कि इस प्रकार के वातावरण में यह निश्चिन्तता रहती होगी कि पूर्वजों की तरह हम भी अधिक दिन जिये। विश्वास भी तो जीवन का एक बहुत बड़ा आधार है।

गहराई से इन दीर्घजीवियों के चारित्रिक स्तर का विश्लेषण किया गया तो यही तथ्य सामने आया कि उन्होंने, किसी के साथ छल, विश्वासघात या निष्ठुर व्यवहार नहीं किया, उन्होंने सज्जनता की नीति बरती और अपनी जीवन पुस्तक का हर पृष्ठ खुला रखा। छिपाने जैसी कोई घटना उनके पास थी ही नहीं। उन्होंने न किसी का बुरा चाहा और न किया। फलतः कोई भी तो उनका दुश्मन बना न रहा। कभी भी नोंक झोंक हुई भी तो वह ऐसे ही कुछ समय बाद हवा में उड़ गई। किसी अप्रिय घटना क्रम को उन्होंने मस्तिष्क में गाँठ बाँध कर नहीं रखा। बेकार की बातों को अनसुनी कर देने और भुला देने के स्वभाव ने ऐसा मानसिक तनाव नहीं पड़ने दिया जिसके कारण उन्हें उद्विग्न होकर रहना पड़ता।

नियमित व्यायाम करने वाले तो इन वृद्धों में से 10 प्रतिशत भी नहीं थे। शेष ने यही कहा हमारा दिन भर का काम ही ऐसा था जिसमें शरीर को थक कर चूर-चूर हो जाना पड़ता था, फिर हम क्यों बेकार व्यायाम के झंझट में पड़ते? वर्ग विभाजन के अनुसार आधे से अधिक लोग ऐसे निकले जो श्रम जीवी थे। स्त्रियाँ मजदूर श्रमिक थी। दिमागी काम करने पर भी दीर्घ-जीवन का आनन्द ले सकने वाले केवल 8 प्रतिशत ही निकले।

सैन फ्रांसिस्को के 203 वर्षीय विलियम मेरी ने कहा युद्धों में उसे कई बार गोलियाँ लगी और हर बार गहरे आप्रेशनों के सिलसिले में अस्पतालों में रहना पड़ा। पर मरने की आशंका कभी उसे छू तक नहीं पाई। उन कष्टकर दिनों में भी कभी आँसू नहीं बहाये वरन् यही सोचा इस स्कूल से जल्दी ही छुट्टी लेकर वह और भी शानदार दिन गुजारेगा। आशा की चमक उसकी आँखों में से एक दिन के लिए भी बुझी नहीं है।

सुगृहिणी मेरुचीने का कथन है उसने पड़ोसी परिवार के बच्चों से अपना विशेष लगाव रखा है। उन्हीं के साथ हिलमिल कर रहने में खुद को इतना तन्मय रखा है कि अपना आप भी, बचपन जैसी हर्षोल्लास भरी सरलता का आनन्द लेता रहे। शरीर से वृद्धा होते हुए भी मन से मैं अभी भी एक छोटी, लड़की ही हूँ।

दीर्घजीवियों में व्यवसाय के हिसाब से वर्गीकरण करने पर जाना गया है कि नौकरी पेशा लोगों की अपेक्षा स्वतन्त्र व्यवसायी अधिक जीते हैं। उन्हें मालिकों की खुशामदी नहीं करनी पड़ती है और न डाँट-डपट सहनी पड़ती है। उससे शारीरिक काम भले ही अधिक करना पड़े, हीनता और खिन्नता का दबाव उन पर नहीं पड़ता। कई व्यक्ति नौकरी की अवधि तक अस्वस्थ रहते थे पर रिटायर होने के बाद नीरोग रहने लगे इसका कारण था, उनने निश्चित दिनचर्या और भावी योजना अपने ढंग से बनाई थी उस पर किसी दूसरे का अंकुर या दबाव नहीं था।

बहुत जीने के लिए अलमस्त प्रकृति का होना जरूरी है। इसके बिना गहरी नींद नहीं आ सकती और जो शान्ति पूर्ण निद्रा नहीं ले सकता उसे लम्बी जिन्दगी कैसे मिलेगी? इसी प्रकार खाने और पचने की संगति जिन्होंने मिला ली उन्हीं को निरोग रहने का अवसर मिला है और वे ही अधिक दिन जीवित रहे हैं। एक बूढ़े ने हँसते हुए पेट के सही रहने की बात पर अधिक प्रकाश डाला और कहा कब्ज से बचना नितान्त सरल है। भूख से कम खाया जाय तो न ही किसी को कब्ज रह सकता है और न इसके लिये चिकित्सक की शरण में जाना पड़ सकता है।

हेफकुक ने कहा- मैंने ईश्वर पर सच्चे मन से विश्वास किया है और माना है कि वह आड़े वक्त में जरूर सहायता करेगा। भावी जीवन के लिये निश्चिन्तता की स्थिति मुझे इसी आधार पर मिली है और शान्ति सन्तोष के दिन काटता हुआ लम्बी जिन्दगी की सड़क पर लुढ़कता आया हूँ। जेम्स हेनरी ब्रेट का कथन है वह एक धार्मिक व्यक्ति हैं विश्वासों की दृष्टि से ही नहीं आचरण की दृष्टि से भी। धार्मिक मान्यताओं ने मुझे पाप पंक में गिरने का अवसर ही नहीं आने दिया। शायद सदुद्देश्य भरा क्रिया कलाप ही दीर्घ जीवन का कारण हो।

पेट्रिस अपने भूत काल की सुखद स्मृतियों को बड़े सुख पूर्वक सुनाता था। साथ ही उस बात की उसे तनिक भी शिकायत नहीं थी कि अब वृद्धावस्था में वह सब क्यों तिरोहित हो गया। उसे इस बात का गर्व था कि उसका अतीत बहुत शानदार था। वह कहता था-भला यह भी क्या कोई कम गर्व और कम सन्तोष की बात है? आज के अवसान की तुलना करके अतीत की सुखद कल्पनाओं की क्यों धूमिल किया जाय? हेन्स बेर्ड का कथन था उसने जिन्दगी भर आनन्द भोगा है। हर खट्टी मीठी घटना से कुछ पाने और सीखने का प्रयत्न किया है। अनुकूलता का अपना आनन्द और प्रतिकूलता का दूसरा। मैंने दोनों प्रकार की स्थितियों का रस लेने का उत्साह रखा और आजीवन आनन्दी बन कर रहा।

दीर्घ-जीवियों में से अधिकांश वर्तमान स्थिति में सन्तुष्ट थे। वे मानते थे बुढ़ापा अनिवार्य है और मौत भी एक सुनिश्चित सच्चाई फिर उनसे डरने का क्या प्रयोजन? जब समर्थता की स्थिति थी तो मन को स्थिति के अनुरूप ढाल कर सन्तोष के दिन क्यों न काटे।

इन में से सब लोग सदा निरोग रहे हों ऐसी बात नहीं बीच-बीच में बीमारियाँ भी सताती रही है और दवा दारू भी करनी पड़ी है। पर मानसिक बीमारियों ने उन्हें कभी त्रास नहीं दिया। लम्बी अवधि में उन्हें अपने स्त्री बच्चों तक को दफनाना पड़ा। कितनों से तलाक ली और कितनों के बच्चे कृतघ्न थे पर इन सब बातों का उन्होंने मन पर कोई गहरा प्रभाव पड़ने नहीं दिया और सोचते रहे जिंदगी में मिठास की तरह ही कड़वापन भी चलता है।

उपरोक्त अन्वेषण के आधार पर हम नये निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। हलके फुलके-सीधे सरल जीवन क्रम को अपना कर भी लम्बी आयुष्य प्राप्त की जा सकती है। भले ही बहुचर्चित स्वास्थ्य साधनों का अभाव ही क्यों न बना रहे।


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