लघु कहानी

August 1973

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कमरे के एक कोने पर धूपबत्ती जल रही थी दूसरे पर मोमबत्ती।

मोमबत्ती ने तिरस्कार पूर्वक धूपबत्ती की ओर देखा और कहा - देखती नहीं मैं कितनी भाग्यवान हूँ। चारों ओर मेरा प्रकाश फैल रहा है। सबकी आँखें मेरी ओर रहती है।

धूपबत्ती ने कहा - बहिन सो तो ठीक है, पर परीक्षा के कठिन समय में धैर्य और साहस के साथ अपनी जगह अड़ी रह सको, तभी तुम्हारी चमक की सार्थकता है। मोमबत्ती ने बात अनसुनी कर दी।

हवा का एक तेज झोंका आया। मोमबत्ती बुझ गई, पर धूपबत्ती ने अपनी सुगन्ध और भी तेजी से बिखेरना शुरू कर दिया।

कमरे का आकाश बोला - वह चमक किस काम की, जो एक झोंके का सामना भी न कर सके।



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