उस दिन लड़के के मन में घर से उच्चाटन हुआ सो जंगल में निकल गया। कुछ समय तो सुहावने दृश्य बहुत भले लगे पर पीछे से एकाकीपन खलने लगा और किसी अज्ञात आपत्ति के भय से उसका मन शंकाकुल हो उठा।
आशंका उठने की देर थी कि झाड़ी के पत्ते खड़खड़ाये। उसे नानी द्वारा सुनाई गई वनपरी की कहानी याद आ गई। हो न हो झाड़ी में भूत ही बैठा है। लड़का जल्दी घर वापिस लौटने के लिए तेजी से चलने लगा। उसे स्पष्ट सुनाई दे रहा था कि कोई पैर पर पैर रखता हुआ पीछे-पीछे बढ़ता चला आ रहा है। पीछे मुड़ कर देखा तो चमकते चाँद के कारण उत्पन्न हुई अपनी ही परछाई वनपरी की प्रतिमा बन कर अपना रूप प्रकट करने लगी।
लड़के को भरोसा हो गया कि वनपरी ही पीछा कर रही है। दिल जोर से धड़कने लगा तो पूरा साहस समेट कर वह जोर से चिल्लाया-कौन है, अपना नाम बता” ठीक उन्हीं शब्दों में बन पर्वतों से टकराती हुई आवाज गूँजी-कौन है अपना नाम बता? लड़का बेतरह डर गया। अब की बार उसने पूरी हिम्मत समेटी ओर प्रतिपक्षी को ललकारा-खबरदार-दौड़ना मत” चौगुने स्वर से प्रतिध्वनि गूँजी-खबरदार-दौड़ना मत।”
लड़का थर-थर काँपने लगा और मुट्ठी बाँध कर घर की ओर भागा। बड़ी कठिनाई से घर तक पहुँचा और जाते-जाते बेहोश हो गया। रह-रह कर वनपरी-वनपरी चिल्लाता था।
माँ ने शान्ति पूर्वक उसकी बात सुनी-और समझाया बेटा, वह वनपरी अपनी ही कुलदेवी है। वह हम लोगों की हानि नहीं सहायता करती है।
कई दिन में लड़के का डर दूर हुआ तब उसने सुनसान जंगल में रहने वाली कुलदेवी वनपरी के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए माता से आग्रह किया।
माँ ने फिर वनपरी की बहुत बड़ाई की और कहा आज फिर उसी जंगल में जा और जोर से पुकारना स्नेह और सहायता का उपहार स्वीकार करो।
लड़का हिम्मत बाँध कर फिर गया और उसने माँ के बताये शब्द बार बार स्थान स्थान पर दुहराये। वनपरी ने ठीक उन्हीं शब्दों में दूने चौगुने उद्घोष के साथ दुहराया-स्नेह और सहायता का उपहार स्वीकार करो।
लड़का बहुत प्रसन्न था। माँ से चिपट गया और बोला- माँ उस भली वनपरी का नाम तो बताओ जो मुझे इस प्रकार दुलारती और सहायता का आश्वासन देती है।
मां ने गम्भीर स्वर में कहा- बेटा उनका नाम है- प्रतिध्वनि। पर उस में एक ही कमी है वह हमें देख अपना रुख बदल लेती है कभी वह बहुत डरावनी लगती है और कभी बहुत सुहावनी।